बस्तर के बाद कांग्रेस का दूसरा संभागीय सम्मेलन बिलासपुर में संपन्न हुआ. तीसरा संभागीय सम्मेलन दुर्ग में हुआ. राज्य का कांग्रेस नेतृत्व अच्छी तरह जानता है कि यह चुनाव पिछले चुनावों से काफी अलग होगा. पिछली बार जहां पूरा गुस्सा भाजपा की सरकार के खिलाफ था वहीं इस बार यह 50-50 हो सकता है. 30-70 या 60-40 भी हो सकता है. वजह साफ है, जनता का थोड़ा बहुत गुस्सा सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ तो होता ही है. पर कारण केवल इतना नहीं है. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में एक नई करवट ली है. युवा नेतृत्व उभर कर सामने आया है. इनके पास अपनी फौज और फटाका भी है. इसलिए संगठन से पुराने नेता लगभग कट चुके हैं. अब उसी संगठन में जान फूंकने की कोशिश की जा रही है. पिछले कुछ समय में ईडी और आईटी ने चुन-चुन कर कांग्रेस के मर्म स्थलों पर आघात किया है. डर अभी भी बना हुआ है. किस मामले में कब, क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. अब तक ईडी और आईटी केवल छापे मार रही है, पूछताछ कर रही है. इन छापों से न केवल नेता बल्कि पार्टी के समर्थक भी डरे हुए हैं. अफसरशाही भी खौफ के दौर से गुजर रही है. मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान आठ साल में ईडी के छापों में 27 गुना की वृद्धि हुई. इस अवधि में मनी-लांडरिंग के 888 मामले में चार्ज शीट दाखिल किये जा चुके हैं. 23 आरोपियों के खिलाफ दोष सिद्ध हो चुका है. 99,356 करोड़ रुपए की चल-अचल संपत्ति जब्त हो चुकी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फरवरी 2017 में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए दावा किया था कि उनके पास कांग्रेस नेताओं की पूरी जन्मपत्री सुरक्षित है. हालांकि, इसके कुछ ही दिन बाद हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव में उनकी यह जन्मपत्री फेल हो गई थी. कांग्रेस ने ढेर सारे नए चेहरों को मौका देकर भाजपा के जन्मपत्री के स्टॉक को बेअसर कर दिया था. भूपेश सरकार ने अपने मंत्रिमंडल को अब तक इसकी आंच से बचा कर रखा है. यह तो हुई चुनौती की बात. असली खतरा कुछ और है. अधिकांश कांग्रेसियों को भरोसा है कि भूपेश बघेल अकेले ही सरकार बना ले जाएंगे. यह ओवर-कांफिडेंस पार्टी को भारी पड़ सकता है. दूसरे, वो लोग हैं जिन्हें लगता है कि भूपेश नीत कांग्रेस में उनके लिए अब कोई जगह नहीं बची. इसलिए वे या ता पार्टी से कट कर बैठे हैं या बेमने से सभा-सम्मेलन और बैठकों में शामिल हो रहे हैं. कांग्रेस की संभाग सम्मेलन श्रृंखला ऐसे ही लोगों को दोबारा सक्रिय करने की कोशिश है. इससे सम्मेलन का महत्व और बढ़ जाता है. कहा जाता है कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है. वह बार-बार मृगमरीचिका के पीछे दौड़ लगाती है. योजनाओं को समझने और उसके नतीजों का इंतजार करने वाले बहुत कम लोग होते हैं.