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गुस्ताखी माफ : पेड़ों, पौधे और जंगलों से ही है अपने खून की लाली

Jun 12, 2023
Save forests to save life

हममे से प्रत्येक इंसान के पास एक-एक जोड़ा फेफड़ा है. फेफड़ों को कुछ भी होता है तो हमें नानी याद आ जाती है. मामूली खांसी-सर्दी भी हलाकान कर देती है. अभी-अभी कोरोना आकर समझा गया है कि फेफड़ा ही सबकुछ है. खून की लाली भी फेफड़े की देन है. धरती के जंगल समूचे प्राणी जगत के लिए फेफड़े का काम करते हैं. जंगल हैं तो धरती पर जीवन है. पेड़ पौधे न केवल हवा, पानी और मिट्टी से हमारे लिए भोजन तैयार करते हैं बल्कि हमें जिन्दा रखने के लिए वातावरण में प्राणवायु (ऑक्सीजन) भी घोलते हैं.छत्तीसगढ़ के पहाड़ी इलाके कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर इलाके के बीच एक लाख सत्तर हजार हेक्टेयर में फैला एक जंगल है. यह जैव विविधता से भरपूर है. यहां तरह-तरह के पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं का वास है. जंगलों के कारण ही यहां की परिस्थितियां जीवन के अनुकूल हैं. हाथी, तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा जैसे वन्यप्राणियों के साथ ही यह 82 तरह के पक्षियों का भी घर है. यहां दुर्लभ प्रजाति की तितलियां के साथ ही 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई गई है. यही वजह है कि इन जंगलों को मध्यभारत का फेफड़ा भी कहा जाता है. ये जंगल दस हजार आदिवासियों का भी घर है. पर इन्हीं जंगलों के नीचे दबा है कोयला. कोयले के इस भंडार को राजस्थान की बिजली कंपनी ने खऱीदा है. यह पूरा मामला केन्द्र सरकार का है, जिसमें राज्य सरकार पर केवल क्रियान्वयन का भार है. केन्द्र ने खदानें आवंटित की. खोदने का ठेका राजस्थान की बिजली कंपनी ने अदानी की कंपनी को सौंप दिया. राज्य सरकार अदानी कंपनी को सहयोग देने के लिए बाध्य है. कोयला निकालने के लिए जंगलों को काटना जरूरी है. वैसे तो काटे गए जंगलों को पुनः लगाने और उत्खनन स्थल के टॉप सॉयल को सुरक्षित रखने के तमाम नियम कायदे हैं पर देश में इनका पालन सरकारी कंपनियों ने भी कभी ठीक से नहीं किया. जो कुछ भी पर्यावरण को बचाने के लिए किया गया, उनका कभी कोई नतीजा नहीं निकला. इस अंचल में एक खदान 2012 में शुरू हो गयी थी. अब इसे विस्तार देना है. इन खदानों को ‘परसा केते बासन’ के नाम से जाना जाता है. इसके दूसरे और तीसरे चरण के लिए अब जंगलों की और कटाई होनी है. इसमें सैकड़ों हेक्टेयर जंगल कटेंगे और कम से कम दो आदिवासी गांव विस्थापित हो जाएंगे. पेसा कानून के तहत प्रभावित आबादी इसका विरोध कर सकती है. आदिवासी लंबे समय से पेड़ों की कटाई का विरोध कर रहे हैं. अब उन्हें स्थानीय विधायक टीएस सिंहदेव का साथ मिल गया है. मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि यदि स्थानीय विधायक, अर्थात बाबा साहब नहीं चाहेंगे तो पेड़ तो क्या कोई पेड़ की एक शाख भी नहीं काट पाएगा. हालांकि भाजपा और कांग्रेस इसे फिलहाल राजनीति का मुद्दा बनाए हुए हैं पर सोचना पूरी मानवजाति को है कि क्या वे धरती के इन फेफड़ों को यूं ही चुपचाप नष्ट होते देखते रहेंगे. विश्व गुरू जब बनेंगे तब बनेंगे, पहले प्रकृति ने जो कुछ दिया है, उसे तो सहेज लें.

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