कुछ लोगों की फितरत होती है दूसरों के परिवार में आग लगाने की. उनके निशाने पर किसी परिवार की वो बहू-बेटियां होती हैं जो किसी न किसी वजह से असंतुष्ट चल रही होती हैं. वो असंतोष को हवा देकर सब्जबाग दिखाते हैं और अपनी हवस पूरी कर निकल लेते हैं. फिर विवाहेत्तर संबंध बनते हैं और कभी-कभी बात जघन्य अपराध तक पहुंच जाती है. परिवार टूट जाते हैं. कभी पति दूसरा घर बसा लेता है तो कभी पत्नियां पति-बच्चों को छोड़कर चली जाती हैं. भारतीय समाज ऐसे लोगों को पसंद तो नहीं करता पर ऐसे लोगों को समाज से अलग करने की कोई रणनीति भी उसके पास नहीं है. केवल समझदार लोग ही ऐसे लोगों को अपने परिवार से दूर रख पाते हैं. कुछ ऐसा ही खेल चलता है राजनीति में. तमाम विसंगतियों, अभावों और दिक्कतों के बीच एक सरकार काम कर रही होती है. व्यवस्था ठीक करने की कोशिश कर रही होती है. स्वस्थ विपक्ष भ्रष्टाचार और गलत परम्पराओं का विरोध करता है, चूकों और गलतियों की तरफ सत्ता का ध्यान आकर्षित करता है. सत्ता और विपक्ष दोनों का उद्देश्य जनता का भला करना होता है. पर ऐसी बातें केवल सैद्धांतिक तौर पर ही अच्छी लगती हैं. हकीकत में तो विपक्ष उस कुटिल व्यभिचारी की तरह होता है जो लगातार असंतोष को हवा देता है, जायज-नाजायज हर बात को उछालता है. वह खूब जानता है कि जो सब्जबाग वह दिखा रहा है, उसे वह तो क्या, उसके फरिश्ते भी पूरा नहीं कर सकते. सुकमा के कुम्हाररास स्थित शबरी ऑडिटोरियम परिसर में 54 अलग-अलग संगठन से जुड़े संविदा कर्मचारियों की संयुक्त हड़ताल चल रही है. नवा रायपुर के तूता स्थित धरना स्थल में भी प्रदेश के संविदा कर्मचारी आंदोलन कर रहे हैं. इनकी एक सूत्रीय मांग है नियमितीकरण की. अब प्रमुख विपक्षी दल के नेता उनसे जा मिले हैं. पूर्व मुख्यमंत्री उन्हें आश्वासन दे रहे हैं कि उनकी सरकार आयी तो सबसे पहले संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण किया जाएगा. उन्होंने कहा कि इसे पार्टी अपने घोषणापत्र में भी शामिल करेगी. कुछ लोग झांसे में आ भी जाएंगे. उन्हें तो इस बात की खबर तक नहीं होगी कि इस पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व सेना तक में संविदा नियुक्तियां कर रहा है. यह उन्हीं की पार्टी थी जो हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने का वायदा कर सत्ता में आई थी. उन्हें लगा था कि प्रो-इंडस्ट्री सरकार होगी तो धड़ाधड़ उद्योग लगेंगे और नौकरियां पैदा होंगी. पर ऐसा कुछ हुआ नहीं. उलटे सरकार बाप-दादा की छोड़ी हुई जायदाद (सार्वजनिक क्षेत्र) को बेच कर फुटानी मारने लगी. देश की प्राकृतिक संपदा को बेचने के लिए प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा से जुड़े कानूनों को बदलने पर आमादा हो गयी. नौकरी, वह भी सरकारी क्षेत्र में पैदा करना एक टेढ़ा काम है. कहीं ऐसा न हो कि झांसे में आकर जनता घर छोड़ दे और प्रेमी भी धोखा दे जाए.