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छत्तीसगढ़ में अप्रासंगिक होता शिक्षा का अधिकार

Aug 27, 2023
RTE becomes irrelevant in Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) के तहत आरक्षित 10598 सीटें खाली रह गईं हैं. इनमें 5395 बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने लॉटरी में नाम आने के बाद भी एडमिशन नहीं लिया. इस बार आरटीई के तहत 6571 स्कूलों की 55191 सीटें आरक्षित थीं. पिछले साल आरक्षित सीटों की संख्या 80 हजार थी. इस बार 1.18 लाख से भी ज्यादा आवेदन आए थे. पर केवल 44593 छात्रों ने ही आरटीई की सीट का लाभ लिया है. शासन ने इसके लिए दो बार – 10 अप्रैल और 15 जुलाई तक आवेदन लिये थे. प्रवेश के लिए डेडलाइन 20 अगस्त थी. आरटीई के नोडल अफसर अशोक कुलदीप के मुताबिक आरटीई के तहत अब और दाखिले का कोई मतलब नहीं है. इसका कारण बताते हुए वो कहते हैं कि स्कूलों में दो महीने की पढ़ाई पूरी हो चुकी है. निजी स्कूलों में टेस्ट हो चुके हैं. त्रैमासिक परीक्षाएं प्रारंभ होने वाली हैं. ऐसे में नए बच्चों को दाखिला देकर उनका कोर्स पूरा करवाना असंभव होगा. प्रवेश प्रक्रिया में विलम्ब को वे खाली रह गई सीटों की वजह मानने से भी इंकार करते हैं. शायद वे सही कह रहे हैं. छत्तीसगढ़ में जीवन स्तर में तेजी से बदलाव हुए हैं. इसके साथ ही राज्य शासन ने स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति का सूत्रपात कर दिया है. आत्मानंद उत्कृष्ट विद्यालयों की लगातार बढ़ती संख्या ने एक तरफ जहां निजी स्कूलों के माथे पर बल ला दिया है वहीं आरटीई को भी लगभग अप्रासंगिक बना दिया है. वैसे भी निजी स्कूलों में आरटीई के तहत प्रवेश लेने वाले बच्चों से वहां दोयम दर्जे का ही व्यवहार किया जाता रहा है. एक ही क्लासरूम में 2-2, 3-3 कक्षा के विद्यार्थियों को बैठाना, प्रार्थना सभा में इन्हें अलग कतार में खड़ा करना, शालेय प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी से वंचित करना आम घटनाएं थीं. शिक्षा प्राप्त करने के लिए बेइज्जती सहना अब जरूरी नहीं रह गया है. इसलिए पिछले दो सालों में एक तरफ आत्मानंद स्कूलों की संख्या तेजी से बढ़ी है तो दूसरी तरफ आरटीई के लेवाल भी कम हुए हैं. बच्चों के पालक आरटीई के तहत आवेदन तो करते हैं पर आत्मानंद या ऐसे ही किसी उत्कृष्ट विद्यालय में प्रवेश मिल जाने पर उसे छोड़ भी देते हैं. यही वजह है कि लाटरी में नाम आने के बाद भी बड़ी संख्या में बच्चों ने प्रवेश नहीं लिया. इसलिए शासन ने जब दूसरा मौका दिया तब भी आरटीई की सीटें नहीं भरी जा सकीं. इसका एकमात्र कारण यही हो सकता है कि अप्रवेशी बच्चे थे ही नहीं. सभी ऐसे किसी स्कूल में दाखिला ले चुके थे जहां सम्मान के साथ शिक्षा प्राप्त करने का अवसर हो. राज्य शासन ने शिक्षा का बजट बढ़ा दिया है. आत्मानंद स्कूलों के साथ ही सरकारी स्कूलों के भी दिन बहुर रहे हैं. बच्चे ही नहीं, अब शिक्षक भी निजी स्कूलों को छोड़कर आत्मानंद स्कूलों में बेहतर भविष्य की तलाश कर रहे हैं.

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