भिलाई। 60 वर्षीय यह मरीज पेट फूलने की शिकायत लेकर अस्पताल आया था. उसे व्हीलचेयर पर लाया गया था. जब चिकित्सकों ने इसकी वजह जाननी चाही तो घर वाले ज्यादा कुछ नहीं बता पाए. शंका होने पर मरीज की एमआरआई की गई और कारण जानकर मरीज और उसके परिजन हैरान रह गए. उन्हें तो यही लगा था कि उम्र की वजह से टांगें कमजोर हो गई हैं. मरीज को स्पाइन टीबी था जिसे पॉट्स स्पाइन भी कहा जाता है. रोग पुराना होने कारण मरीज पैराप्लेजिया का शिकार हो गया था.
हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ आशीष देवांगन ने बताया कि मरीज ने आरंभिक तौर पर पेट में भारीपन, पेट फूलने और दर्द की शिकायत की थी. उसने बताया कि पिछले लगभग दो महीने से उसके पैरों में बहुत कमजोरी थी जिसके कारण वह उठना बैठना और चलना फिरना जैसे सामान्य कार्य भी नहीं कर पा रहा था. मल-मूत्र त्यागने में भी उन्हें दिक्कत हो रही थी.
राजनांदगांव के डोमारटोला से आए इस मरीज की क्लिनिकल जांच में पता चला कि मूत्रत्याग नहीं कर पाने के कारण उसका मूत्राशय फूल गया है. मूत्र इकट्ठा होने के कारण पेट सख्त हो गया था और दर्द की शिकायत थी. कैथेटर लगाकर मूत्र विसर्जन कराते ही पेट नर्म पड़ गया और दर्द भी खत्म हो गया. मरीज के पैरों की स्थिति न्यूरोलॉजिकल समस्या की ओर इशारा कर रही थी. यह पैराप्लेजिया का मामला हो सकता था. इसमें शरीर के निचले अंगों में शिथिलता आ जाती है.
डॉ देवांगन ने इसके बाद मरीज को न्यूरोलॉजिस्ट डॉ नचिकेत दीक्षित को रिफर कर दिया. एमआरआई जांच करने पर पाया गया कि मरीज की रीढ़ में टीबी है. इसे “पॉट्स स्पाइन” कहा जाता है जो फेफड़ों की टीबी के बाद संभवतः सबसे ज्यादा पाई जाने वाली टीबी है. इसकी वजह से शरीर के निचले अंगों पर नियंत्रण समाप्त होने लगता है. रोग बढ़ने पर इसका प्रभाव पाचन तंत्र समेत पेट के अन्य अंगों पर पड़ने लगता है. इस रोगी के मामले में ऐसा ही हुआ था.
इसके बाद मरीज को न्यूरो सर्जन डॉ दीपक बंसल को रिफर कर दिया गया. डॉ बंसल ने बताया कि “पॉट्स स्पाइन” ने मरीज की रीढ़ के डी-8 और डी-9 हिस्से को अपनी चपेट में लिया था. इसकी वजह से शरीर के निचले हिस्सों को जाती नसों पर दबाव बन गया था. मरीज के पैरों की ताकत जा चुकी थी और पेट चपेट में था. मरीज की सर्जरी कर इस कम्प्रेशन को दूर कर दिया गया. अब मरीज की तकलीफ काफी कम हो गई है.
डॉ बंसल ने बताया कि ऐसे मामलों में रोगी की पूर्ण रिकवरी इस बात पर निर्भर करती है कि यह स्थिति कब से बनी हुई है. इस मामले में मरीज दो माह या शायद उससे भी पहले से इस समस्या से जूझ रहा था. मरीज की रिकवरी इसपर निर्भर करेगी कि कम्प्रेशन की वजह से उसके पैरों की नसों को कितना स्थायी नुकसान पहुंचा है. फिलहाल मरीज को आराम है और स्थिति में सुधार हो रहा है.