भिलाई। रायपुर में आयोजित चतुर्थ राज्य स्तरीय कार्डियोलॉजी कांफ्रेंस में आमंत्रित विशेषज्ञ एवं कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (सीएसआई) के पूर्व अध्यक्ष प्रो. पीसी मनोरिया ने मनुष्य के शतायु होने के टिप्स दिये. उन्होंने कहा कि कोई भी 80 के सूत्र और 7 एस का पालन कर शतायु हो सकता है. इंसान को ईश्वर ने कम से कम इतनी उम्र तो दी ही है.
आरंभ में सीएसआई छत्तीसगढ़ चैप्टर के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ दिलीप रत्नानी ने स्वागत भाषण देते हुए अतिथियों का परिचय करवाया. बीसी राय अवार्ड से सम्मानित डॉ संजय त्यागी आयोजन के मुख्य अतिथि थे. वे सीएसआई के आगामी अध्यक्ष चुने गए हैं. इसके साथ ही कार्डियोलॉजी के गॉड फादर माने जाने वाले प्रो. पीसी मनोरिया, आयुष विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. जीबी गुप्ता, संरक्षक एवं अतिथि वक्ता प्रो. विजयलक्ष्मी, डॉ डीएस चड्ढा, डॉ जसपाल अरनेजा, पद्मश्री प्रो. नीतीश नायक, प्रो. एसए राउतराय, डॉ कुन्तल भट्टाचार्य, डॉ पी सौमग्य सुन्दरम, डॉ संजीव खुल्बे, प्रो. शशांक गुप्ता सहित अन्य फिजिशियन भी उपस्थित थे.
प्रो. मनोरिया ने बताया कि सौ साल की आयु अच्छे स्वास्थ्य के साथ जीने के लिए 80 के सूत्र को याद रखना चाहिए. इसके लिए धूम्रपान करने वाले से कम से कम 80 मीटर की दूरी रखने, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के स्तर को 80 से नीचे रखने, कमर की नाप को 80 सेन्टीमीटर तक सीमित रखने के साथ ही साल भर में कम से कम 80 बार शारीरिक संबंध बनाना भी जरूरी है. इसके साथ ही उन्होंने सेवन-एस का सिद्धांत भी दिया. इसके अनुसार सॉल्ट (नमक), शुगर (चीनी), सैचुरेटेड फैट्स, 7 घंटे की नींद, स्लिमिंग एक्सरसाइज, स्माइल और सेक्स स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है.
डॉ रत्नानी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में हृदय रोगों के इलाज के लिए लगातार सकारात्मक मौहाल बना हुआ है. सन 2000 तक राज्य में एक भी कैथलैब नहीं था जबकि आज 25 से ज्यादा कैथलैब लगभग सभी जिलों में संचालित हैं. उन्होंने डॉ स्मित श्रीवास्तव का विशेष उल्लेख करते हुए बताया कि वे लगातार राज्य में नवीनतम तकनीकी को लेकर आ रहे हैं और छत्तीसगढ़ को हृदय रोगों के उपचार के लिए समृद्ध बना रहे हैं. आज राज्य में इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी जैसी नवीनतम विधा भी उपलब्ध है.
उन्होंने कहा कि युवा आबादी में एक्यूट एमआई के केस तेजी से बढ़ रही है जिसे रोकने की जरूरत है. इसके लिए प्रिवेन्टिव कार्डियोलॉजी एवं लाइफ स्टाइल मोडिफिकेशन के साथ ही सीपीआर और एआईसीडी जैसी तकनीकों के प्रचार प्रसार की जरूरत है ताकि जीवन को बचाया जा सके.