भिलाई। प्रख्यात लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि फूहड़ कलाकारों ने बिहार की सतरंगी लोकसंस्कृति को अपमानित किया है। इनकी वजह से दुनिया में बिहार की संस्कृति की गलत छवि बनी। लोकगीत समय, श्रोता और स्थान सापेक्ष हैं जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। भोजपुरी रियालिटी शो से उन्होंने सख्ती से गंदगी की सफाई शुरू की और इसके अच्छे नतीजे आ रहे हैं। मालिनी यहां भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव डॉ सरोज पाण्डेय द्वारा छठ के उपलक्ष्य में आयोजित भोजपुरी संध्या में प्रस्तुति देने के लिए आई थीं। पद्मश्री मालिनी ने कहा कि आज भोजपुरी रियालिटी शो में बतौर जज उनकी अच्छी डिमांड है। वे सख्ती से पेश आती हैं और इसे लोग पसंद भी कर रहे हैं जो इस बात का सबूत हैं कि लोग फूहड़ कलाकारों को नकार रहे हैं। लोगों में इस बात का आक्रोश भी है कि फूहड़ कलाकारों की वजह से दुनिया भर में बिहार की लोकसंस्कृति अपमानित हुई है। रियालिटी शो में उनकी सख्ती का ही नतीजा है कि आज लोकगायकों में चैता, कजरी, झुमर, सोहर की तरफ रुझान बढ़ा है, इन्हें तैयार किया जा रहा है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के भारत अध्ययन केंद्र में सेंटेनरी चेयर के प्रोफेसर पद पर नियुक्त मालिनी अवस्थी कहती हैं कि लोग लोकगीतों का मतलब ही नहीं समझते। उन्हें लगता है – सैंया, खटिया, घूंघट, पनघट जैसे शब्दों से ही लोकगीतों का अस्तित्व है। ऐसा नहीं है। लोकगीत स्थान, काल, परिस्थिति के अनुसार रचे गढ़े जाते हैं। बातें गलत नहीं होतीं, उन्हें गलत जगह पर प्रस्तुत करने से जगहंसाई होती है। कुछ बातें केवल पुरुषों की महफिल के लिए होती हैं तो कुछ की जगह केवल महिलाओं के बीच होती है। स्थान बदल दें तो दोनों अश्लील हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि अब बिहार के लोग स्वयं फूहड़ कलाकारों को नकार रहे हैं। उन्हें इस बात की तकलीफ है कि उनकी इतनी सुन्दर भाषा को कुछ लोगों के कारण निकृष्टा से जोड़ा जा रहा है। उन्होंने फूहड़ता को सुनना बंद कर दिया, ऐसे कलाकारों की डिमांड कम कर दी और फूहड़ता, अश्लीलता कम होने लगी।
उन्होंने कहा उन्मुक्तता लोकगीतों की पहचान हैं। हर प्रदेश में लोकगीतों में उन्मुक्तता मिल जाएगी। सवाल यह है कि किसी लोकगीत को किस स्थान, काल, परिस्थिति के लिए बनाया गया। उसे कहां गाने के लिए बनाया गया। व्हाट्सअप पर कुछ आदमी आदमियों को जोक्स भेजते हैं। वो आदमी आदमियों को ही भेज सकते हैं। वो दस औरतों के सामने उसी जोक को सुनाने लगें तो लोग उसे बदतमीज ही कहेंगे। लेडीज-लेडीज भी चर्चा करती हैं। वही बात आदमियों के बीच नहीं कही जा सकतीं। ऐसे ही रतजगा के गाने हैं जिन्हें रात में गाया जाता है। यदि ऐसे गीतों क पचास हजार लोगों के बीच गाया जाए तो फूहड़ लगेंगे। लोकगीतों के माध्यम से शोषित, पीडि़त, एकाकी बहुएं अपने मन की व्यथा को अभिव्यक्त करती हैं। इसे वो अपनी सखियों से कहती हैं। इसे सार्वजनिक मंच पर ले जाएं तो फूहड़ और अश्लील लगेंगे।
मालिनी ने कहा, मेरा मानना है कि भाषण देने या लेख लिखने से गलत को मिटाया हीं जा सकता। आप सही की लकीर बड़ी कीजिए, गलत की लकीर अपने आप छोटी हो जाएगी। मैंने हमेशा यही किया है और कर रही हूँ। एक ऐसा भी दौर था जब ऐसे लोगों के साथ मंच शेयर करना पड़ता था। वो मंच को गंदा करके जाते थे और फिर मैं उसे ठीक करती थी। वह एक कठिन दौर था पर अब इसमें सुधार हो रहा है।
इस अवसर पर दुर्ग की महापौर श्रीमती चंद्रिका चंद्राकर, दुर्ग जिला भाजपा अध्यक्ष सांवलाराम डाहरे, राकेश पाण्डेय भी मौजूद थे।
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