भिलाई। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि हम यदि केवल अपना लाभ देखकर काम करते हैं तो इससे कषाय की वृद्धि होती है। पर यही काम यदि हम परमार्थ को उद्देश्य बनाकर करते हैं तो साथ में स्वहित भी अपने आप सध जाता है। इसके साथ ही चूंकि भाव में परोपकार है, परहित है इसलिए कषाय धुलते चले जाते हैं। इसलिए स्वहित के कार्यों के लिए भी परहित को निमित्त करें। आचार्यश्री ने उ कहा, रूआबांधा स्थित श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में यहां के लिए मंगवाई गई जिन प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा तो होगी ही, साथ ही बिलासपुर में निर्मित जिनालय के लिए प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा भी यहीं की जाएगी। यह घोषणा आज परम् पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने की। बिलासपुर में श्वेत संगमरमर से बने मंदिर निर्माण के उद्योक्ता श्रीमती सोनाली – मनीष जैन को बीती शाम यहां आदिनाथ भगवान के माता-पिता क्रमश: मरूदेवी नाभिराय की पदवी के लिए पात्र चुन लिया गया। आचार्यश्री ने उक्त घोषणा करते हुए कहा कि रविवार दोपहर को 10-12 लोग पात्र चयन के लिए उपस्थित हुए थे। पर उनकी अंतरात्मा को किसी और का इंतजार था। यह इंतजार पूरी हुई बिलासपुर से मनीष जैन एवं उनकी पत्नी सोनाली जैन के यहां पहुंचने से। उन्होंने 21 कलश का संकल्प लेते हुए बिलासपुर के लिए आई भगवान की प्रतिमाओं की प्राणप्रतिष्ठा भी यहीं करवाने का संकल्प लिया है। इसके पश्चात भगवान को यहां से बिलासपुर ले जाया जाएगा जहां विधि विधान से मंदिर में उनकी स्थापना कर दी जाएगी।
संत शिरोमणि यहां रूआबांधा स्थित श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में पूजा अर्चना के बाद भक्तों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हम सभी कुछ विचारों को लेकर प्रयत्न करते हैं, पर सबकुछ इसी पर निर्भर नहीं होता। कुछ चीजें पहले से तय होती हैं। जो जिसे प्राप्य होगा, वह उसी को मिलेगा।
बिलासपुर में बनाया भव्य मंदिर
मनीष एवं सोनाली जैन के विषय में बताते हुए उन्होंने कहा कि वहां भी चैत्यालय काफी पहले से चल रहा है जैसा कि रूआबांधा में चल रहा है। यहां राजीव जैन की अगुवाई में विशाल मंदिर बना तो वहां भी मनीष जैन की अगुवाई में विशाल मंदिर बना। इसका पुण्य तो उनको मिलना ही था। अब उनके यहां के विग्रहों की प्राणप्रतिष्ठा भी यहीं होगी और वे यहां बड़ी भूमिका भी निभाएंगे। उन्होंने कहा कि इससे पहले भी इस तरह की प्राणप्रतिष्ठाएं हुईं हैं। इसका भी इतिहास है।
मंडला में चल रहा प्रकल्प
मनीष ने इसके अलावा भी समाज को बहुत कुछ दिया है। मंडला में उन्होंने 5-6 एकड़ भूमि खरीदकर दान कर दी थी। उस भूमि पर आज गौशाला के साथ-साथ हथकरघा का भी काम हो रहा है। वहां के वनवासी समुदाय के 50-60 स्त्री पुरुषों ने स्वयं को पूरी तरह से बदल दिया है। हिंसा छोड़कर वे अहिंसा के जीवन में आ गए हैं। उन्होंने हथकरघा का काम अच्छे से संभाल रखा है। उनका जीवन बदल गया है और वे भगवान के बताए मार्ग पर चल पड़े हैं।
अहं का विसर्जन और अहं का सृजन
आचार्यश्री ने कहा कि भगवान की भक्ति में लीन होने का मतलब मैं को भुला देना है। इसे हम अहं का विसर्जन कह सकते हैं। पर इसके साथ ही मैं कौन हूँ और इस जीवन का उद्देश्य क्या है कि तलाश शुरू हो जाती है। यह दूसरा अहं है जिसका सृजन होता है।
गलत राह से नहीं मिलती मंजिल
आचार्यश्री ने कहा कि हमें मार्ग का चयन सावधानी से करना चाहिए। गलत राह हमें हमारी मंजिल तक नहीं ले जा सकती। गलत रास्ते पर चलकर व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। यदि राह सही हो तो विश्वास होगा कि मार्ग कल्याणकारी है और कदम अपने आप आगे बढ़ते चले जाएंगे।
पंच कल्याणक प्रतिष्ठा समिति के मीडिया प्रभारी प्रदीप जैन बाकलीवाल ने बताया कि 22 जनवरी से होने जा रहे पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सौधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य राजीव ऊषा जैनको को मिला है। धनपति कुबेर इन्द्र ऊषा अनिल जैन भिलाई, महायज्ञ नायक इन्द्र भूपेन्द्र जैन, राजा श्रेयांश, आलोक निलांजना जैन, राजा सोम इन्द्र, राजेश, रजत जैन, भरत चक्रवर्ती इन्द्र, अजीत सेसई, बाहूबली इन्द्र राहुल जैन, ईसान इन्द्र अर्पित ऋचा जैन, महेन्द्र इन्द्र राजेश, मुकेश सुपर बाजार परिवार, सनत इन्द्र विशाल जैन, आदि को इन्द्र बनने का सौभाग्य मिला जिसमें ध्वजा रोहणकर्ता अनिल सिंघई है।