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अंधेरनगरी में नसबंदी आपरेशन

Nov 14, 2014

बिलासपुर/रायपुर। सरकारी नसबंदी आपरेशन के बाद 15 की मौत ने अंधेरनगरी में खलबली मचा दी है। जिस स्वास्थ्य मंत्री को मुख्यमंत्री बेकसूर बता रहे थे, अब सौ तमंचे उसकी तरफ तने हुए हैं। नकली दवाओं की बात सामने आने के बाद आपरेशन करने वाले डाक्टर को बलि का बकरा बनाने वाली मीडिया अब खुद बगलें झांक रही है। तैश में आकर पत्रकारों ने डाक्टर को कातिल, हत्यारा और न जाने क्या-क्या कह डाला था। अब वह दोबारा सोच रहे हैं, शायद समझ भी रहे हैं किन्तु बेबसी में अपने बाल नोचने के सिवा उनके पास कुछ खास नहीं रह गया है।
आपरेशन शनिवार को हुए थे। सभी अखबारों ने छापा था कि पेंडारी नसबंदी शिविर में 83 आपरेशन। किसी को नहीं लगा कि एक दिन में जरूरत से ज्यादा आपरेशन हो गए हैं। आपरेशन जिस बंद पड़े कैंसर निदान केन्द्र में किए गए, उसकी धूल-मिट्टी और मकड़ी का जाला देखने की फुर्सत भी किसी को नहीं थी। वह तो किस्मत खराब थी कि मरीजों की हालत बिगडऩे लगी और एक-एक कर 15 महिलाओं ने दम तोड़ दिया।
दरअसल पूरा मामला बिगाड़ा नकली दवाओं ने। छत्तीसगढ़ और ओडिशा नकली दवाओं की बिक्री का स्वर्ग है। राजधानी रायपुर और न्यायधानी बिलासपुर इसके सप्लायरों का गढ़ हैं। इसकी सबसे तगड़ी सप्लाई सरकारी अस्पतालों को होती है। निजी क्षेत्र के डाक्टर इन दवाओं का नाम तक नहीं लेते, फिर चाहे कंपनियां उन्हें फुकेट की टिकट ही क्यों न आफर करे।
नसबंदी के दौरान स्टेरिलाइजेशन के लिए जिस स्पिरिट का इस्तेमाल किया वह नकली था। जो दवाएं मरीजों को दी गईं वो भी नकली थीं। इनमें सिप्रोफ्लॉक्सासिन और आईब्यूप्रोफेन (एक एंटीबायोटिक और दूसरा पेन किलर) था। इन दोनों दवाओं की पुडिय़ा मरीजों को दी गई थी जिसे खाने के बाद उन्हें बेचैनी महसूस हुई, उलटियां हुईं और कुछ मरीजों की हालत बेहद गंभीर हो गई। 15 मौतों के बाद अब भी लगभग आधा दर्जन महिलाओं की हालत गंभीर है। पोस्टमार्टम के आरंभिक रिपोर्ट बता रहे हैं कि मरीजों की किडनी ने काम करना बंद कर दिया था, दिल फैल गया था जिसकी वजह से शरीर को आवश्यक आक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो गई थी।
पिछड़ गई मीडिया : बड़ी संख्या में मरीजों की मौत के बाद जब मीडिया आरोपी डाक्टर को कातिल और हत्यारा बताने में मसरूफ थी तब दोषी दवा सप्लायर के आदमी गांव-गांव में मरीजों को तलाश कर उनके पास से दवाएं वापस ले रहे थे। इसके लिए वे खुद को सरकारी आदमी बता रहे थे। इधर अस्पताल के पास दवाओं को खुले में जला दिया गया और किसी को कानो-कान खबर नहीं हुई। सर्जन डॉ केके साव के मुताबिक सोमवार को एक अन्य नसबंदी शिविर में भी यही दवाएं दी गई थीं और मरीजों में इसी तरह के लक्षण दिखाई दिए। इसके अलावा इन्हीं दवाओं के कारण एक अन्य 75 वर्षीय मरीज की गुरुवार को मौत हो गई।

डाक्टर के साथ टोनही जैसा बर्ताव : इस मामले में डाक्टर के साथ भी वही हुआ जो अनपढ़ गांवों में कथित टोनही के साथ होता है। गांव में फैली बीमारी के लिए उसे दोषी ठहरा दिया जाता है और फिर उसके कपड़े नोंच लिये जाते हैं, मुंह काला कर गदहे पर बैठा दिया जाता है, कहीं कहीं सामूहिक बलात्कार किया जाता है और फिर जला कर मार दिया जाता है। इस मामले में भी मीडिया ने टोनही की पहचान कर ली और उसे हत्यारा, कातिल, दोषी और न जाने क्या क्या कह डाला। यह जानते हुए भी कि वह अभी सिर्फ आरोपी है। अब कहें तो किसी एनजीओ से एक अवेयरनेस कैंप इनका भी लगवा दें।

मोबाइल ने फंसा दिया : आरोपी डाक्टर को पता था कि पकड़ा गया तो बहुत बुरी बीतेगी। वह अपने मित्र के यहां बलौदाबाजार चला गया। पर मोबाइल स्विच आफ करना भूल गया। जैसे ही वह अपने मित्र के घर से बाहर निकला, बिलासपुर क्राइम ब्रांच ने उन्हें दबोच लिया। पर इससे पहले ही डॉ आरके गुप्ता अपना वर्शन देश विदेश की मीडिया को फोन पर दे चुके थे। उन्होंने दवा की गुणवत्ता पर सवालिया निशान लगाते हुए आपरेशन के दौरान अपनाई गई पूरी प्रक्रिया जिम्मेदार मीडिया के साथ साझा कर ली थी।

पूरी जिम्मेदारी सरकार की : घटियां दवाओं की सप्लाई की पूरी जिम्मेदारी सरकार की है। मोटे कमीशन के ऐवज में छत्तीसगढ़ में दवा कंपनी के भेष में लुटेरे कुछ भी कर रहे हैं। शासन के सूत्रों ने ही उन्हें छापों की पूर्व जानकारी दे दी थी जिसकी वजह से उन्हें दवा का पूरा बैच नष्ट कर देने की कोशिश की। सरकारी सूत्रों ने ही उन्हें मरीजों का पता ठिकाना बताया जिसकी वजह से वे आंधी की तरह उनतक पहुंच गए और सरकारी आदमी बनकर नकली दवाएं वापस ले लीं। मरीजों को डाक्टर ने नहीं, सरकारी अमले ने एकत्र किया था। वे बैगा हैं या ब्राह्मण इसे पता करना डाक्टर के लिए न तो जरूरी था और न ही संभव। अब मुख्यमंत्री बताएं कि दोषी कौन है डाक्टर या स्वास्थ्य मंत्री।

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