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इन्होंने बनाया था रामदेव को बाबा

Dec 27, 2014

bangali baba swami anand chaitanya, ramdevबिजनौर। बाबा रामदेव के गुरु स्वामी आनंद चैतन्य उर्फ बंगाली बाबा का देहावसान हो गया। उन्होंने 103 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। वह पिछले चार साल से लकवा से पीडि़त थे। शिष्य भोगराज ने उन्हें मुखाग्नि दी। योग गुरु बाबा रामदेव को बुलंदियों पर पहुंचाने वाला और कोई नहीं, बल्कि स्वामी आनंद चैतन्य महाराज उर्फ बंगाली बाबा रहे हैं। उन्होंने ही रामदेव को योग के साथ आयुर्वेद की शिक्षा भी दी थी। आंखों को रोशनी देने वाली दृष्टि दवा भी बंगाली बाबा ने ही रामदेव को बताई थी। यह खुलासा खुद बाबा रामदेव ने बिजनौर आने पर किया था। रामदेव बंगाली बाबा से मिलने उनके आश्रम भी गए थे। >>>
स्वामी आनंद चैतन्य करीब 47 साल पहले महात्मा विदुर कुटी से कुछ ही दूरी पर गंज में आश्रम बनाकर आ बसे थे। बंगाली बाबा को योग के साथ आयुर्वेद की अच्छी जानकारी थी। दूरदराज से लाइलाज मरीज उनके पास उपचार कराने आते थे। प्रत्येक रविवार को आश्रम में मरीजों की भीड़ रहती थी।
स्वामी आनंद चैतन्य महाराज बंगाली बाबा का पूरा परिवार पूर्वी बंगाल वर्तमान में बांग्लादेश में हुए दंगों में नेस्तनाबूद कर दिया गया था। इस दंगे में अकेले चैतन्य महाराज ही बचे थे। नानी ने चावल के बुगों में छिपाकर उनकी जान बचाई थी। इसके बाद वे भारत में आ बसे थे और योग के साथ आयुर्वेद के प्रकांड विद्वान बन बैठे।
बांग्लादेश के नुआखाली शहर के रहने वाले स्वामी आनंद चैतन्य महाराज बताते थे कि जब वे छोटे थे तो उनके यहां दंगे हो रहे थे। महात्मा गांधी शांति के लिए आए थे और उनके घर रुके थे। रात में परिवार के 96 सदस्यों को दंगाइयों ने मार डाला था।
उनका वहां का सम्मानित हिंदू परिवार था। दंगों के दौरान नानी ने चावल के बुगों में उन्हें छिपा दिया था। इस कारण वह दंगाइयों के हाथ नहीं लग पाए थे। दो दिन बाद बुगों से जिंदा निकले तो एक रिश्तेदार उन्हें किसी तरह कलकत्ता ले आया और अपने पास रखा। रिश्तेदार उनके साथ नौकरों जैसा व्यवहार करने लगा। परेशान हो कर वे यहां से निकलकर हरिद्वार आ गए और आयुर्वेद की पढ़ाई की।
यहां से उनकी जिंदगी बदलनी शुरू हो गई। इसी दौरान वे बिजनौर के सांसद रतनलाल जैन के संपर्क में आ गए। सांसद उन्हें बिजनौर ले आए और गंज ले गए। इसके बाद वे गंज में बस गए और फिर कहीं नहीं गए।
योग गुरु रामदेव भी आंख में चोट लगने पर उपचार कराने गंज आए थे। पूर्व राज्यमंत्री स्वामी ओमवेश के आश्रम में आने पर उन्हें पता चला गंज में रहने वाले स्वामी आनंद चैतन्य महाराज पर आंखों को रोशनी देने वाली कोई दवाई है। रामदेव बंगाली बाबा की शरण में गए और उपचार कराया तो उनकी आंख ठीक हो गई थी।
रामदेव बंगाली बाबा से बेहद प्रभावित हुए और उन्हें गुरु बना बैठे। बंगाली बाबा भी रामदेव से खुश रहे। रामदेव को बंगाली बाबा ने आंखों की रोशनी देने वाली दृष्टि दवा बनाने के बारे में बताया। बंगाली बाबा के भक्तों के मुताबिक उन्होंने यह शर्त रखी कि इस दवा का कभी कोई पैसा नहीं लिया जाए।
अदरक, प्याज व शहद को मिलाकर यह दवा बनाई जाती है। इसके अलावा आयुर्वेद की कई और दवाओं के बारे में बताया तथा विधि की किताब बाबा रामदेव को दे दी। साथ ही योग की शिक्षा भी दी। रामदेव बंगाली बाबा की दी हुई शिक्षा के बल पर इस मुकाम तक पहुंच गए।
पिछले दिनों बिजनौर आने पर बाबा रामदेव ने जब मंच से यह खुलासा किया कि आंखों को रोशनी देने वाली दवा उन्हें बिजनौर के ही एक संत ने दी है। यह संत कोई और नहीं, गंज में बैठे बंगाली बाबा हैं। रामदेव की यह बात सुनकर सब दंग रह गए थे। इसके बाद रामदेव बिजनौर का कार्यक्रम पूरा करके गंज अपने गुरु से मिलने गए थे। काफी देर तक दोनों में गुप्त मंत्रणा हुई थी।
बंगाली बाबा के आश्रम के पास रहने वाले 70 वर्षीय किसान विजय के मुताबिक उन्होंने लाइलाज को सही सलामत होकर जाते देखा है। बंगाली बाबा के आश्रम में ऐसे मरीज खूब आते थे, जो चल फिर भी नहीं सकते थे। फिर वह अपने पैरों से चलकर जाते थे। रात दिन मरीजों का आश्रम में आना जाना रहता था।
आश्रम में उगा रखी थी औषधि
बंगाली बाबा ने आयुर्वेद की दवा बनाने के लिए औषधि के वृक्ष आश्रम में ही उगा रखे थे। हरे भरे आश्रम में औषधि के हर वृक्ष की बंगाली बाबा को बखूबी पहचान थी। आश्रम में जाने वाला हर कोई इन वृक्षों की जानकारी लेने को उत्सुक रहता था।
रामदेव से बाबा करते थे बेहद प्यार
बंगाली बाबा के बड़े भक्त मुरादाबाद निवासी रिटायर्ड डिप्टी डायरेक्टर 70 वर्षीय नंद किशोर त्यागी के मुताबिक बंगाली बाबा रामदेव से बेहद प्यार करते थे। बंगाली बाबा अखबार व पत्रकारों से दूरी बनाए रखते थे, पर रोज शिष्यों से यह जरूर मालूम करते थे कि उन्हें बताओ रामदेव के बारे में अखबार में कोई बुरी बात तो नहीं छपी।
बंगाली बाबा के असली रूप को कोई नहीं पहचान पाया। वे बड़े योगी व संत थे। अपने आश्रम से बाहर नहीं जाते थे। पिछले कुछ सालों से उन्होंने सब से मिलना जुलना बंद कर दिया था। अपने चुनिंदा भक्तों से ही वह मिलते थे। एक बार बंगाली बाबा के साथ वह वृंदावन गए तो वहां एक बड़े योगी आ गए। बंगाली बाबा को देखकर उन्होंने कहा कि इतना बड़ा योगी उन्होंने कोई नहीं देखा।

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