चंडीगढ़। भारतीय जेलों में बंद लोगों के अधिकारों पर दूरगामी असर डालने वाला एक फैसला देते हुए पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि किसी भी कैदी का ‘प्रजनन करने का अधिकारÓ जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में आता है, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई है। कई देशों में कैदियों को संभोग के लिए जेल से बाहर जाने या कृत्रिम गर्भाधान का अधिकार मिला हुआ है। भारत में इसकी इजाजत नहीं है। हाई कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत ने रूलिंग दी है कि कैदियों को वैवाहिक संबंधों के दायरे में प्रजनन करने का अधिकार है। moreउन्होंने कहा है कि कैदियों को कृत्रिम गर्भाधान का भी अधिकार है। हालांकि संबंधित राज्य सरकार ही तय करेगी कि किस कैटिगरी के कैदियों को ये अधिकार दिए जाएं। जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, कैद में रहते हुए बच्चे पैदा करने के अधिकार का नियम हालांकि राज्य की तय नीति से होगा। हो सकता है कि उस नीति के तहत किसी कैटिगरी के कैदियों को ऐसे अधिकार नहीं दिए जा सकते हों।
हाई कोर्ट में एक कैदी दंपती ने याचिका दाखिल कर कहा था कि पति अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र है, लिहाजा उसे बच्चा पैदा करने का अधिकार दिया जाए। पति-पत्नी दोनों हत्या की सजा काट रहे हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि हाई कोर्ट के एक पूर्व जज की अध्यक्षता में जेल रिफॉम्र्स कमिटी बनाई जाए। इसमें एक समाज विज्ञानी, जेल सुधार और जेल प्रबंधन पर एक विशेषज्ञ सहित दूसरे लोगों को मेंबर बनाने का निर्देश दिया गया है। कमिटी कैदियों के प्रजनन कर सकने के लिए फैमिली विजिट्स का माहौल बनाने की स्कीम तैयार करेगी। साथ ही, वह देखेगी कि किन श्रेणियों के कैदियों को ऐसी विजिट्स का मौका दिया जा सकता है। इसमें यह ध्यान रखना होगा कि कैदियों को सुधारने का लक्ष्य हासिल करने में इन कदमों से मदद मिले।
जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, जो समाज इस वक्त समलैंगिकों के अधिकारों या थर्ड जेंडर को मान्यता देने पर बौद्धिक बहस कर रहा हो, वह जेल में बंद लोगों को प्रजनन के मकसद से जेल से बाहर जाने देने के विचार से मुंह नहीं चुरा सकता है।