मुंबई। विवाद के बावजूद भारतीय विज्ञान कांग्रेस में एक लेक्चर में यह जानकारी दी गई कि भारत में 7000 साल पहले हवाई जहाज थे। यह भी कहा गया कि इनके जरिए एक देश से दूसरे देश में, एक ग्रह से दूसरे में जाया जा सकता था। विज्ञान कांग्रेस के दूसरे दिन मुंबई यूनिवर्सिटी में यह लेक्चर एक पायलट ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट के रिटायर्ड प्रिंसिपल कैप्टन आनंद जे. बोडास ने पेश किया। लेक्चर में वेदों में वर्णित प्राचीन उड्डयन तकनीक पर गौर किया गया। इस लेक्चर के हिस्सों की कुछ वैज्ञानिकों ने हाल में आलोचना की थी। more
इस बीच, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन के इस बयान का समर्थन किया है कि बीजगणित और पाइथागोरस थियरम की खोज भारत में हुई थी, लेकिन इसका श्रेय दूसरे लोगों को मिल गया। थरूर ने कहा कि हिंदुत्व ब्रिगेड की अतिशयोक्ति से भरी बातों के चलते प्राचीन भारतीय विज्ञान की वास्तविक उपलब्धियों को खारिज नहीं किया जाना चाहिए। थरूर ने ट्वीट किया, ‘हर्षवर्धन का उपहास करने वाले आधुनिकतावादियों को जान लेना चाहिए कि वह सही हैं।Ó
महर्षि भारद्वाज का उल्लेख करते हुए कैप्टन आंनद जे बोडास और अमेय जाधव ने अपने पेपर में कहा कि प्राचीन भारत की विमानन तकनीक इतनी उन्नत थी कि आज भी दुनिया उस तकनीक के आस-पास तक नहीं फटक सकी है। इन दोनों वैज्ञानिकों ने बताया कि विमान तकनीक का ज्ञान संस्कृत ग्रंथों के 100 सेक्शन, आठ चैप्टर, 500 निर्देशों और 3,000 श्लोकों में दर्ज है। लेकिन, दुख की बात है कि आज इनमें से सिर्फ 100 निर्देश ही रह गए हैं। इससे एक दिन पहले भारत के साइंस और टेक्नॉलजी मिनिस्टर डॉ. हर्षवर्धन ने यहां दावा किया था कि पाइथागोरस के प्रमेय की खोज भी भारत ने कर ली थी।
डॉ. हर्ष वर्धन ने पाइथागोरस प्रमेय और ऐलजेब्रा की खोज का श्रेय भारतीयों को दिया था।
रविवार को साइंस कांग्रेस में चर्चा के केंद्र रहे बोडास का कहना था कि आज से करीब 7,000 साल पहले ऐसे विमान बना लिए गए थे जिनसे एक देश से दूसरे देश, एक द्वीप से दूसरे द्वीप और एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक भी पहुंचा जा सकता था। उन्होंने अपनी बात और विमानन तकनीक की ऐसी जानकारी के लिए 97 किताबों का रेफरेंस भी दिया। रविवार को पढ़े गए एक और खास रिसर्च पेपर में कहा गया कि भारतीयों ने सर्जरी के लिए 20 तरह के उन्नत यंत्र और 100 तरह के सर्जरी नाइफ बना लिए थे। ये दिखने में आजकल के सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स की तरह ही थे। यही नहीं, फोड़े की सर्जरी के बाद स्किन का कलर और आकार पहले की तरह बनाने के लिए हमारे पास सात चरणों वाला उपचार भी था। बताया गया कि, यह तकनीक भी आज के मॉर्डन साइंस के पास नहीं है।
नागपुर से आए सिविल इंजिनियर प्रफेसर एएस नेने ने कहा कि भारत के प्राचीन इंजिनियर्स को भारतीय वनस्पति विज्ञान का भरपूर ज्ञान था और उन्होंने भवन निर्माण में इसका भरपूर इस्तेमाल किया था। रविवार को साइंस कांग्रेस में ज्यादातर इसी तरह के पेपर पढ़े गए। इन रिसर्च पेपर ने सबसे ज्यादा युवा भारतीय वैज्ञानिकों और शोधार्थियों का ध्यान अपनी ओर खींचा और इनसे उम्मीद भी जताई गई कि ये युवा प्रचीन संस्कृत के ग्रंथों से ज्ञान लेने का काम करेंगे।
मुंबई यूनिवर्सिटी के वीसी राजन वेलुकर का कहना था कि हमें कम से कम वेदों की बातें पढऩी चाहिए भले ही इन्हें माना न जाए। जाने-माने भारतीय वैज्ञानिक विजय भटकर का कहना था कि हमारी गुलाम मानसिकता की वजह से हम उन्हीं बातों को मानते हैं जो विदेशी कहते हैं।
इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि वह आज भी सुबह की शुरुआत संस्कृत में खबरें देखकर ही करते हैं। उन्होंने कहा कि सारी पुरानी चीजें काम की न हों लेकिन सारी चीजें बेकार भी नहीं हैं। उन्होंने वैज्ञानिकों से संस्कृत में मौजूद ज्ञान का मानवता की बेहतरी के लिए इस्तेमाल करने की अपील की। जावड़ेकर ने कहा कि जब जर्मनी हम भारतीयों के कॉन्सेप्टस का इस्तेमाल करके दुनिया भर को चमत्कृत करने वाले आविष्कार दे सकता है तो ये काम हम क्यों नहीं कर सकते हैं।
हालांकि, इतनी कोशिशों और अपीलों के बावजूद रविवार को मौजूद वैज्ञानिक इन बातों से सहमत नजर नहीं आए। अमेरिका से इस सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे एक भारतीय वैज्ञानिक का कहना था, ‘ज्ञान हमेशा बढ़ता है, यह कभी थमता नहीं है। अगर यह सब ज्ञान पहले से ही मौजूद था तो मैं जानना चाहता हूं कि इसका विकास क्यों रुक गया?
इसके बाद कोई विकास क्यों नहीं हुआ? यह कहां पर आकर रुका था? मैं इन आविष्कारों के घटनाक्रम के बारे में नहीं जानता हूं लेकिन अब तो वाकई जानना चाहता हूं।Ó
इस मौके पर मौजूद एक और एक्सपर्ट ने कहा कि वैज्ञानिक को हमेशा सवाल खड़े करने चाहिए। उन्होंने कहा, अगर यह ज्ञान और तकनीक किताबों में मौजूद थी तो इस पुरानी तकनीक को इस्तेमाल क्यों नहीं किया गया? अगर ऐसा कुछ करके आविष्कार किया जाता तो इस पर यकीन करना ज्यादा आसान हो जाता।
आपको बता दें कि प्राचीन भारतीय विमानन तकनीक वाले इस पेपर के पढ़े जाने से पहले ही इसका विरोध शुरू हो गया था। नासा के एक वैज्ञानिक ने एक ऑनलाइन पिटिशन साइन करने का अभियान चलाया है जिसे 200 से ज्यादा वैज्ञानिकों का समर्थन मिल चुका है। इसमें विज्ञान को मिथक से जोडऩे का विरोध किया गया है और भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के भगवान गणेश को प्राचीन भारत की प्लास्टिक सर्जरी बताने वाला उदाहरण देकर राजनेताओं के विज्ञान को मिथक से मिलाने का विरोध किया गया है।