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मौलिक एवं उद्देश्यपूर्ण हो शोध : कुलपति

Feb 9, 2015

durg science collegeदुर्ग। मौलिक एवं उद्देश्य पूर्ण शोध आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। युवा पीढ़ी को इस दिशा में गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। ये उद्गार पं. रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति डॉ. शिवकुमार पाण्डेय ने आज शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, दुर्ग में वयक्त किये। डॉ. पाण्डेय महाविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग एवं जुलाजिकल सोसायटी ऑफ छत्तीसगढ़ द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन्न समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। डॉ. पाण्डेय ने कहा कि प्रकृति के संरक्षण से ही हमारा अस्तित्व जुड़ा हुआ है। हमें प्रकृति का उपयोग सदैव जैव, विविधता के संरक्षण को ध्यान में रख कर करना चाहिये। शोधकर्ताओं को नकल से बचना चाहिए। read more
govt science college durgइससे पूर्व कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ. अनिल कुमार ने कहा कि भविष्य में जुलाजिकल सोसायटी ऑफ छत्तीसगढ़ द्वारा अंतरविषयक शोध को बढ़ावा, शोधकर्ताओं को प्रयोगशालाओं की सुविधा उपलब्ध कराना, जैव विविधिता तथा औषधीय पौधों से संबंधित शोध कार्य हेतु शोध कर्ताओं को प्रोत्साहित किया जायेगा। डॉ. अनिल कुमार के अनुसार संगोष्ठी में कुल 12 आमंत्रित व्याख्यान, 86 शोधपत्रों की मौखिक प्रस्तुति तथा 42 पोस्टर प्रस्तुत किये गये। मौखिक प्रस्तुति में प्रथम पुरस्कार साइंस कालेज दुर्ग के शोधकर्ता निखिल मिश्रा को तथा द्वितीय पुरस्कार घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर की कु. गीता मिश्रा को मिला। पोस्टर प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार संयुक्त रूप से एमएम प्रकाश, एसआर सोनी, एस गहरवार तथा द्वितीय पुरस्कार एमआर साहू, गौतमदास एवं साथियों को मिला।
महाविद्यालयके प्राचार्य डॉ. सुशीलचंद्र तिवारी ने दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन को सफल बताते हुये महाविद्यालय एवं शोधकर्ताओं हेतु इसे मील का पत्थर निरूपित किया। छ.ग. जुलाजिकल सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. एके पति ने प्राणिशास्त्र की शाखा टेक्सोनमि से संबंधित शोध कार्य पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह शाखा शोधार्थियों की रूचि की शाखा नहीं बन पा रही है। डॉ. पति ने सोसायटी द्वारा वर्ष में दो शोध पत्रिकाएं प्रकाशित करने तथा त्रिमासिक न्यूज लेटर सहित विभिन्न अकादमिक एवं साइंटिफिक गतिविधियों के आयोजन के जानकारी दी।
govt science college durgजुलाजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रो. बीएन पाण्डेय ने कहा कि प्रकृति के किसी एक भी प्रजाति का विनाश संपूर्ण जैव संपदा का विनाश होता है। उन्होंने संगोष्ठी में उपस्थिति युवा शोधकर्ताओं के उत्साह की प्रसंशा की। प्रतिभागियों कु. ब्यूटी कन्डा तथा कु. मेघा दुबे ने अपने विचार व्यक्त किये। धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक डॉ. कांति चौबे ने किया। इससे पूर्व इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के 12 राज्यों महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, जम्मू काश्मीर, पं. बंगाल, गुजरात, उड़ीसा आदि के प्राध्यापकों एवं शोधकर्ताओं ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। छ: तकनीकी सत्रों में विभाजित इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सबसे ज्यादा लाभ नये शोधाथ्रियों एवं स्नातकोत्तर विद्यार्थियों को मिला। संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. अनिल कुमार के अनुसार अंतिम दिन बिलासपुर के प्रोफेसर डी. के. श्रीवास्तव ने साइनो बैक्टीरिया की विविधता एवं उसके अनुप्रयोग पर आमंत्रित व्याख्यान दिया। इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के प्रोफेसर एमपी ठाकुर ने मशरूम कलचर की छत्तीसगढ़ में संभावनाएं विषय पर आमंत्रित व्याख्यान दिया। वहीं नागपुर के डॉ. एसबी नंदेश्वर ने कॉटन प्लांट पर तथा नागपुर के ही हिसलाब कालेज के एके झा ने मिट्टी में उपस्थित कार्बन से संबंधित शोध पत्र प्रस्तुत किया। साइंस कालेज रायपुर की डॉ. रेणु माहेश्वरी के निर्देशन में एचएन टंडन ने देवभोग एवं आसपास के क्षेत्र में चिडिय़ों की प्रजातियों में विविधता एवं पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का आकर्षक चित्रण प्रस्तुत किया। कन्या महाविद्यालय दुर्ग की डॉ. नसरीन हुसैन ने औषधीय पौधों की एन्टी ऑम्सीडेंट गुणों का कहराई से विश्लेषण किया। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर की डॉ. आरती परगनिहा का क्रोनोबालाजी पर आधारित शोधपत्र सराहनीय रहा है। साइंस कालेज दुर्ग की कु. चेतना ने साइनो बैक्टीरिया की सहायता से भारी धातुओं के निष्कर्षण पर आधारित शोध पत्र पढ़ा।
डॉ. शुभा गुप्ता एवं निखिल मिश्रा द्वारा प्रस्तुत शोध पत्र भी शोधार्थियों के आकर्षण का केंद्र रहे। पोस्टरों द्वारा भी अनेक शोधार्थियों ने अपने शोधकार्य को प्रस्तुत किया। लगभग 50 से ज्यादा पोस्टर संगोष्ठी में प्रस्तुत किये गये । एक अन्य आमंत्रित व्याख्यान में भारतीय वन सेवा के अधिकारी डॉ. शिशिर अग्रवाल ने औषधीय एवं सुंगधित पौधों की छत्तीसगढ़ में विविधता पर सारगर्भित जानकारी दी। डॉ. शशिकला बेलसरे तथा प्रोफेसर बी. एन.झा ने तकनीकी सत्रों का संचालन किया।
इससे पूर्व उद्घाटन सत्र में छत्तीसगढ़ में बायोटेक्नोलॉजी विभाग, भारत सरकार के चीफ सलाहकार प्रोफेसर अरूण एस. निनावे ने कहा कि छत्तीसगढ़ प्रदेश खनिज संपदा के साथ-साथ जैव संपदा के क्षेत्र में भी अग्रणी है। इस प्रदेश में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध तथा अन्य कार्य करने की अपार संभावनाएं है। उन्होंने भारत सरकार द्वारा शोधकर्ताओं, प्राध्यापकों एवं विद्यार्थियों हेतु चलाई जा रही विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी देते हुए आव्हान किया कि छत्तीसगढ़ अंचल के लोग इन योजनाओं का लाभ लेकर अपने प्रदेश को लाभान्वित करें।
जुलाजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रो. बीएन पांडेय ने पंचतत्व की व्याख्या करते हुए उपस्थित प्रतिभागियों से आग्रह किया कि शिक्षा, पर्यावरण, उर्जा तथा रोजगार सभी एक दूसरे के पूरक है। इनमें से कोई एक भी घटक प्रदूषित होता है तो पूरा वातावरण प्रभावित होता है। खाद्य सुरक्षा एवं कुपोषण पर विचार व्यक्त करते हुए प्रो. पांडेय ने नई युवा पीढ़ी से इस दिशा में शोध करने का अनुरोध किया।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने जुलाजिकल सोसायटी ऑफ छत्तीसगढ़ के गठन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि देश के शीर्षस्थ वैज्ञानिकों के एक साथ विचार विमर्ष करने का प्रत्यक्ष लाभ नवीन पीढ़ी के शोधकर्ताओं तथा स्नातकोत्तर विद्यार्थियो को मिलेगा।
छत्तीसगढ़ जुलाजिकल सोसायटी के अध्यक्ष रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के प्रोफेसर एके पति ने छत्तीसगढ़ जुलाजिकल सोसायटी के गठन का उद्देश्य एवं भविष्य की कार्ययोजनाओं पर प्रकाश डाला। डॉ. पति ने बताया कि यूजीसी के निर्देशानुसार हमें प्राणीशास्त्र की कक्षाओं में प्राणियों के डिसेक्शन की कोई वैकल्पिक खोज करनी होगी।

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