रायपुर। 2008 में शुरू हुई मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के तहत अब तक 5441 बच्चों का सफल ऑपरेशन-इलाज हो चुका है, जबकि 266 बच्चों की मौत हुई है। मृत्यु वाले प्रकरण में एक भी अनुबंधित अस्पताल को शासन ने भुगतान नहीं किया है, इसकी वजह डेथ ऑडिट का न होना है। Read More
संचालनालय में बाल हृदय योजना की टेक्निकल कमेटी की बैठक हुई, जिसमें इलाज के दौरान मृत्यु क्यों हो रही है और बच्चों में हृदय संबंधी बीमारियां क्यों बढ़ रही हैं, इन दोनों के कारणों का पता लगाने के निर्देश दिए गए। लेकिन यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि मेडिकल गाइड-लाइन के मुताबिक 10 हृदय संबंधी बीमारियों के ऑपरेशन-इलाज में 10 फीसदी मृत्यु हो सकती है, छत्तीसगढ़ में स्थिति अच्छी है, लेकिन कारण तक पहुंचना जरूरी है। इसे देखते हुए बाल हृदय योजना के तहत ऑपरेशन और ऑपरेशन के बाद बच्चों की मृत्यु की वजह जानने इसकी बात की पड़ताल की जाएगी कि अनुबंधित अस्पताल में कोई लापरवाही तो नहीं हुई, अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टाफ है कि नहीं, अस्पतालों द्वारा सभी मानकों का पालन किया जा रहा है कि नहीं. डेथ ऑडिट करने के लिए अंबेडकर अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. स्मिथ श्रीवास्तव को निर्देश दिया गया है।
बाल हृदय योजना के लिए शुरुआत में यूरोपियन कमीशन और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत इलाज का खर्च वहन किया जाता था यानी फंडिंग होती थी। वर्तमान में यूरोपियन कमीशन और राज्य सरकार इलाज के खर्च को वहन करती है। जो सालाना करोड़ों में है। क्योंकि हृदय संबंधी 7 बीमारियों जो चिन्हित हैं, उनमें 1 लाख 30 हजार से 1 लाख 80 हजार रुपए तक बजट का प्रावधान है।
डेथ ऑडिट नहीं होने के कारण उन अस्पतालों को भुगतान नहीं किया गया है, जिनमें मरीज की मृत्यु हुई है। इसकी समीक्षा की जाएगी।
– आर. प्रसन्ना, संचालक, चिकित्सा शिक्षा संचालनालय