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मौत के मुंह से खींच लाए ट्रेन हादसे का शिकार

Jan 6, 2016

perineum burstशरीर से बह चुका था आधा खून, कंधा -बांह-पैर टूटा, कूल्हे को पहुंची भारी क्षति
भिलाई। ट्रेन हादसे का शिकार हुए एक मरीज को अंतत: नया जीवन मिल गया है। 22 नवम्बर को हादसे का शिकार हुआ यह युवक अब स्टेबल है और जल्द ही उसके हाथ और पैर की सर्जरी भी कर दी जाएगी। यह युवक 22 नवम्बर को पावर हाउस रेलवे स्टेशन पर रेल हादसे का उस समय शिकार हो गया था जब वह पटरी के किनारे किनारे चलता हुआ जा रहा था। शताब्दी एक्सप्रेस ने उसे पीछे से ठोकर मारी जिससे वह दूर जा गिरा और काफी दूर तक कूल्हे पर फिसलता चला गया। (देखें वीडियो) प्रत्यक्षदर्शियों ने उसे पं. जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र से पहुंचा दिया जहां से उसे अपोलो बीएसआर अस्पताल शिफ्ट किया गया था। Read More
मरीज जब यहां पहुंचा तो वह खून से लथपथ था। उसका ब्लड प्रेशर 70/30 तथा पल्स 160 की रफ्तार से चल रहा था। मरीज के शरीर में केवल 3 ग्राम हीमोग्लोबिन रह गया था। मरीज को तत्काल सेन्ट्रल लाइन कैजुअल्टी में डाला गया। गैस्ट्रो इंटेस्टिनल लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ हिमांशु गुप्ता ने बताया कि मरीज को 5 यूनिट खून चढ़ाया गया। ब्लीडिंग रोकने के लिए पैक लगाए गए। साथ ही रक्तचाप को ठीक करने के लिए भी दवाइयां शुरू कर दीं। सुबह 4 बजे तक मरीज की हालत में पर्याप्त सुधार आ चुका था। इसके बाद उसे आपरेशन टेबल पर लिया गया। इसमें जान जाने का खतरा
काफी ज्यादा था। इसके बाद मरीज के जख्मों की बारीकी से जांच की गई। मरीज को ट्रेन ने बाएं कंधे पर ठोकर मारी थी। इससे उसका स्कैपुला टूट गया था, कंधे का जोड़ डिस्लोकेट हो गया था।
बांह की हड्डी टूट गई थी, कुहनी से कलाई के बीच की एक हड्डी भी चटक गई थी। जांघ की हड्डी में भी फ्रैक्चर था। पर सबसे गहरा जख्म मरीज के कूल्हे में था। रीढ़ की हड्डी के ठीक नीचे से जांघ के ऊपर तक का हिस्सा पूरी तरह फट चुका था और मांसपेशियां बाहर दिखाई पड़ रही थीं। गुदाद्वार संकोचन पेशी (स्फिंक्टर) फट कर मांस के लोथड़ों में तब्दील हो गया था।
एनेस्थेटिस्ट डॉ एस दासगुप्ता के सहयोग से आपरेशन शुरू किया गया। सबसे पहले मरीज की बड़ी आंत के निचले हिस्से को गुदाद्वार से मुक्त कराकर उसे पेट के बाएं हिस्से में एक छिद्र से जोड़ दिया गया। इसके बाद जख्मों की मरम्मत शुरू की गई। लगभग दो घंटे में मरीज को मैनेज कर दिया गया। दूसरे दिन शाम तक मरीज बातचीत करने लायक हो गया था। रक्तचाप 120/60 तक आ गया। हीमोग्लोबिन 11.5 से ऊपर जा पहुंचा। मरीज ने आंखें खोलते ही सबसे पहले अपने स्वयं का हाल चाल पूछा।
इस बीच मरीज के परिजन दुआ करते रहे और डॉ गुप्ता स्वयं मरीज की तीमारदारी में लगे रहे। नितंब की मरहम पट्टी भी वे स्वयं करते रहे ताकि पस फारमेशन पर नजर रख सकें। उन्होंने बताया कि मरीज की स्थिति अब काफी बेहतर है। वह हंस बोल रहा है तथा भोजन भी कर रहा है। जल्द ही हम उनके कंधों, बांह और जांघ को दुरस्त कर सकेंगे। चूंकी मरीज को इस बीच पलटाना होगा इसलिए ये सभी सर्जरी एक के बाद एक करनी होगी।

इसलिए मिली सफलता
देर रात यहां लाए गए इस मरीज को इलाज के लिए एक मिनट का भी इंतजार नहीं करना पड़ा। अपोलो बीएसआर की टीम हमेशा तैयार रहती है। रात भर चिकित्सकों की टीम ने उसे मैनेज किया। सुबह होने से पहले ही उसका आपरेशन शुरू कर दिया गया। अपोलो बीएसआर के संक्रमण मुक्त अत्याधुनिक आपरेशन थिएटर, आईसीयू तथा सभी साधन संसाधन की एक छत के नीचे उपलब्धता के कारण ही मरीज का इलाज एक मिनट के लिए भी नहीं रुका  और आज उसे एक नई जिन्दगी मिल पाई है।

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