• Sun. May 5th, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

साइंटिस्ट थे ऋषि और शास्त्र हैं रिसर्च रिपोर्ट

Jan 15, 2016

स्कूल नहीं थे, इसलिए नहीं बंट पाया ज्ञान, संस्कारों को आगे बढ़ाने से ही बचेगी मनुष्यता

vinod agarwal, santosh rungtaभिलाई। श्रीकृष्ण भक्त भजन गायक विनोद अग्रवाल का कहना है कि हमने चीजों को सही ढंग से देखने की कोशिश नहीं की इसलिए लोगों ने उनका गलत मतलब निकाल लिया। जिसे हम धर्म कहते हैं वह विज्ञान स मत आचरण है। हमारे ऋषि मुनियों ने गहन शोध से यह सार निकाला था। चूंकि उन दिनों स्कूल कालेज नहीं थे इसलिए उसे धर्म और आचरण के रूप में समाज को दे गए। श्री अग्रवाल यहां संतोष रूंगटा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स के कोहका स्थित कै पस में मीडिया से चर्चा कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमने ऋषियों को साधु बाबा बना दिया। लोग उन्हें टोना टोटका करने वाला समझने लगे। दरअसल ऐसा नहीं था। ऋषि दरअसल वैज्ञानिक थे। उनके आश्रम उनके शोधागार या प्रयोगशाला थीं। शोध से प्राप्त ज्ञान को वे समाज के हित में लगाते थे। चूंकि उन दिनों स्कूल कालेज नहीं थे इसलिए ज्ञान को आगे बढ़ाना संभव नहीं था। ऋषियों ने इसका भी रास्ता निकाला और उसे दैनन्दिन आचरण से जोड़कर धर्म का रूप दे दिया। Read More
उन्होंने कहा कि ऋषियों और आज के मनुष्य के बीच की कडिय़ां टूट गई हैं। हमें यह तो पता है कि मंदिर में घंटा होता है पर यह नहीं जानते कि इतना भारी पीतल का घंटा भक्त के सिर के ऊपर क्यों टंगा रहता है। इसलिए हमने घंटा की घंटी बना ली और उसे हाथ में पकड़कर टुनटुनाते रहते हैं। वैज्ञानिक रूप से देखें तो मंदिर में हमारे आकर्षण की वस्तु देव विग्रह हमारी आंखों के सामने होता है और घंटा सिर पर। जैसे ही हम घंटा बजाते हैं तो वहां से निकलनी वाली ध्वनि तरंगें हमारे मस्तिष्क पर वार करती हैं और चिंताओं को हटा देती हैं। हम एकाग्र होकर प्रार्थना कर पाते हैं।
अब तो सिर्फ रिसर्च हो रहे
उन्होंने कहा कि ऋषियों ने अपनी श्रेष्ठ शोध पद्धति से भूगोल, खगोल, शरीर विज्ञान सबकुछ जान लिया था। अब तो हम री-सर्च (पुन: खोज) कर रहे हैं। हमने पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी नाप ली थी। हमें पता था कि ब्रह्माण्ड में \ का निनाद होता है। साइंस ने अब जाकर इसका पता लगाया है। हमें यह भी पता था कि कौन सा ग्रह कब कहां होता है और किसकी कैसी चाल है। हमने धरती पर बैठे बैठे ही सारी गणनाएं कर ली थीं। हमारा पंचांङ इसी ज्ञान पर आधारित है। दिक्कत यह है कि हम इसे इसी रूप में लोगों के सामने नहीं रख पाते जिसके कारण विवाद और विरोध होता है।
वार कर लौटने वाले तीर
श्री अग्रवाल ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि ऋषि मुनि तपस्या कर शक्ति प्राप्त किया करते थे। ये शक्तियां अस्त्र-शस्त्र के रूप में होती थीं। इनका वे स्वयं उपयोग नहीं करते थे। योग्य पात्र देखकर, उसकी परीक्षा लेकर, शक्तियां उन्हें सौंपते थे। ये अद्भुत मिसाइलें होती थीं। हम जानते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध के समय की मिसाइलों से आज की मिसाइलें छोटी और अधिक घातक हैं। तो फिर कल्पना कीजिए कि वो मिसाइलें कितनी घातक रही होंगी जिन्हें श्रीराम आदि तरकश में लेकर चला करते थे। ये ऐसी मिसाइलें या शक्तियां थीं जो निशाने पर मार करने के बाद वापस लौटकर तरकश में आ जाती थीं।
हर युग में हुए हैं आतंकी
आतंकवादी प्रत्येक युग में हुए हैं। ऋषि अपने आश्रम में तपस्या (शोध) कर रहे होते थे और असुर तथा राक्षस उनपर हमला करते थे। ऐसे ही एक प्रसंग में ऋषि विश्वामित्र अयोध्या नरेश दशरथ के पास पहुंचे तथा उनसे उनके सबसे प्यारे पुत्र राम को ही मांग लिया। राजा दशरथ ने अपनी पूरी सेना भेजने का प्रस्ताव रखा किन्तु विश्वामित्र अटल रहे। अब इस घटना को इस रूप में देखें कि ऋषि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से उनका सबसे प्यारा पुत्र आतंकियों से लोहा लेने के लिए मांग लिया। जब व्यक्ति अपने सबसे प्यारे व्यक्ति को ही दांव पर लगा देता है तो आतंकवाद टिक ही नहीं सकता। यह तब भी उतना ही प्रासंगिक था जितना आज प्रतीत हो रहा है।
लाभ जब लोभ बन जाए
श्री अग्रवाल ने कहा कि व्यक्ति कोई भी काम बिना लाभ के नहीं करता। सभी कार्यों के पीछे उसका कोई न कोई हित, कोई न कोई इच्छा छिपी होती है जिनकी पूर्ति होती है। इसे ही हम लाभ कहते हैं। हम पूजा स्थान पर, घर और दुकान के सामने भी शुभ और लाभ लिखते हैं। भगवान श्रीगणेश लाभ के देवता हैं। पर यही लाभ जब लोभ में परिवर्तित हो जाता है तो सबकुछ बिगड़ जाता है। लाभ पूज्य है पर लोभ त्यज्य है।
इसलिए इतने भगवान
प्र यात भजन गायक ने कहा कि आज मनुष्य की महत्वाकांक्षाएं छलांगें लगाकर आगे बढ़ रही हैं जबकि तपस्या करने जैसे धीरज का सर्वथा अभाव है। वह जानता है कि इतना सबकुछ वह नहीं कर सकता। इसलिए वह अपने प्रयोजन के लिए एक भगवान बना लेता है और फिर उसके पास डिमांड नोट लगा देता है। हंसते हुए वे कहते हैं, अभी तो शुरुआत है। सौ साल बाद इतने भगवान हो जाएंगे कि इंसान ढूंढना मुश्किल हो जाएगा।
भक्ति भी तीन प्रकार के
श्री अग्रवाल ने कहा कि भक्ति भी तीन प्रकार के हैं। एक मीरा जैसी भक्ति जिसमें व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है और पूरी तरह से ईश्वर में लीन हो जाता है। दूसरा सांसारिक व्यक्ति की भक्ति जो गृहस्थी, भक्ति और कर्म का सही तालमेल बनाकर चलता है। तीसरी भक्ति संतों वाली होती है जिसमें अपना जीवन लोक कल्याण के लिए लगा दिया जाता है और इसी में आनंद लिया जाता है।
सबकुछ अच्छा हो रहा है
उन्होंने कहा कि वे अतीत में नहीं जीते। जो है वह अच्छा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। उनका मानना है कि बच्चे की शिक्षा घर से ही शुरू हो जाती है। घर और स्कूल के वातावरण में एकरूपता लाना, सामंजस्य बैठाना सत्ता का काम है। यदि भारतीयता को वैज्ञानिक रूप से पाठ्यसामग्री में शामिल किया जा सके तो यह अति उत्तम रहेगा। इस तरह व्यक्ति संस्कारवान होगा।

Leave a Reply