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किसी का सहारा बनो

Feb 10, 2016

डॉ शैलेन्द्र जैन, न्यूरोलॉजिस्ट
Dr Shailendra Jainकन्याकुमारी के पाषाण पर स्वामी विवेकानंद ने अपने विदेश प्रवास पश्चात पहला कदम रख उसकी मिट्टी को चूमा था। विवेकानंद मेरे लिए मेरी जिंदगी में सामाजिक कार्यों को करने के लिए प्रेरणाप्रद रहे हैं। मानव जीवन मानव सेवा के लिए है – मानव सेवा ही ईश्वर की सेवा है। वैसे ही इस धरती की एक शिला पर बैठे एक नौजवान पुरुष के पाषाण हृदय पर मैंने सहानुभूति दस्तक देकर आन्नंद प्रत्यारोपण मेमोरीयल अस्पताल की पहली एक मुट्टी मिटटी की आहुति डालकर आधार शिला कोचीन में रखी थी। Read More
मैं खुशबू सिंह ना ही अपनी युवावस्था में हूँ और ना ही प्रौढ़ावस्था में। उम्र का सफर इतना तय हो चुका है कि में वृद्धावस्था की दहलीज को दस्तक दे चुकी हूँ तथा कब्र में कब मेरा पैर फिसल जाये यह परमेश्वर की किताब के किसी पन्ने में अवश्य होगा। जिसका पन्ना कभी भी खुल सकता है। लेकिन मुझे फख्र है कि में अपने नाम के अनुसार खुशबू फैला सकी थी। जैसे कि मेरे पिताश्री कश्मीर की वादियों में बसे मेरे घर में मेरे जन्म के समय प्रफुल्लित होकर कहा करते थे। अपने उपनाम सिंह की भांति मैं गरीब, असहाय और जरूरतमंद लोगों के दिल में राज कर उन्हें खुशहाल जिंदगी का आश्रय देने में सफल रही थी। कन्याकुमारी के आसमान में पूर्व में सूर्य का उदय और संध्याकाल में पश्चिम की लालिमा देखने भर लेने को ही सैलानी अपनी यात्रा को सफल मानते हैं, लेकिन इस यात्रा के मध्य सूर्य को बादलों के साथ कितनी लुका छिपी करनी पड़ती है वे उससे बेखबर होते हैं। वैसे ही मेरे जीवन को इस मुकाम को हासिल करने के लिए कितने ही उतर चढ़ाव ज्वार-भाटों से गुजारना पड़ा लेकिन ‘अंत अच्छा तो सब अच्छाÓ कहावत के चरितार्थ होने पर में मेरा मन प्रफुल्लित है कि नाकामयाबी के बादल मेरे कार्यों की चादर को नहीं ढक सके ना ही मेरे जज्बातों के काले बदलों की भांति आच्छादित कर सके।
अवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। किसी वस्तु को यदि आपकी आवश्यकता पड़ी हो जो आपकी जिंदगी का स्वरूप बदल दें और अन्य असहाय के लिए जनक का प्रतिमूर्त बने तो दिल को सुकून मिलता है।
अर्धशतक पूर्व कन्याकुमारी के समुद्र के किनारे एक युवा दिल के मन में समुद्र की तरह विचारों की लहरे उठ रही थी। इसका आभास मुझे उस चेहरे से स्पष्ट झलक रहा था। मैंने पूछा किस बात के कारण यह चमकता चन्द्रमयी चेहरा कालिमा लिए हुये है। किसी अनजान शक्ति से उत्प्रेरित होकर उसने मेरी तरफ देखे बिना स्वाभाविक रूप से जवाब दिया – ‘मैं अपनी जिंदगी से हताश हो गया हूँ। सफल होने के बावजूद में ज्यादा मेहनत नहीं कर सकता। थोड़ा परिश्रम करता हूँ तो सांसे चढऩे लगती है। थकावट इतनी महसूस होती है की जैसे मीलों दूर का सफर तय कर चुका हूँ। निर्धन व बड़ा परिवार, खपरैल की छत, चिमनी की रोशनी भी मेरी तरक्की की रूकावट नहीं बन सकी। एमबीबीएस के पश्चात एमएस की सीढ़ी भी मैं तय कर सका, लेकिन दिल की ख्वाहिश कार्डियक सर्जन बनने में आने वाली अड़चन मेरे मनोबल को डांवाडोल कर रही है। इन झूलती परिस्थितियों में निराशा के बादलों में रौशनी की किरण नजर नहीं आ रही है। वह एक ही श्वांस में ऐसे बोल गया जैसे मेरी उससे लंबी अंतराल से मुलाकात हो।
मैं उसकी बातों को ध्यान पूर्वक सुनते हुये द्रवित हो उठी और पूछा ऐसा क्या है जिसने आपके कंक्रीट से बने इरादे को कमजोर किया है? निराशा की चादर क्यूँ ओढऩी पढ़ी?
मुझे लगा कोई इश्क विश्क का चक्कर होगा। दिल की बीमारी। हो सकता है गरीबी के कारण कोई महबूबा उसे छोड़ कर दूसरे के आशियाने को कूच कर गई हो। लेकिन इसके पास कम से कम सर्जरी की एमएस की डिग्री का आधार तो है। अत: मुझे नहीं लगा की इश्क, विश्क का चक्कर होगा।
मैंने आत्मीयता जताते हुए उसके मन को कुरेदा। क्या मैं तुम्हारे किसी काम आ सकती हूँ। प्यार मोहब्बत एक ऐसी चीज है जो एक नजर मैं (लव एट फस्र्ट साईट) बिना जानकारी हासिल किये हो जाती है। शायद मेरी भी वही स्थिति हो गई थी। अनायास मेरा हाथ बढ़ा और उसके गालों को सहलाने लगा।
उसने कहा, रुयुमेटिक हार्ट डिसीज। इस रोग की जानकारी मेरे हृदय को चुभ गई। मेरा हौसला पस्त हो गया। निराशा मेरी आँखों मैं भर गई। कभी-कभी आत्महत्या तक के विचार से मेरी सफलता के बढ़ते कदमों को डग मगाने मैं कुछ हद तक कामयाब हो रहे हैं।
सुन कर मैं सन्न रह गई। लेकिन मेरी भी एमबीबीएस एवं एमडी की शिक्षा मुझे उसको समझाने में सहारे की छड़ी के सामान खड़ी हो गई। रियूमेटिक हार्ट डीसिज, मेडिकल सायंस ने की तरक्की का पर्दा मेरे सामने खिंच गया। उस परदे पर लिखे शब्द मैं आसानी से पढ़ रही थी। अरे, इसका तो उपचार है।
वह बोला हाँ! लेकिन मेरा वाल्व सिकुड़ गया है। कुछ कदम चलता हूँ तो साँस फूलने लगती है। मैत्रल वाल्व एस्क्लेरोसिस व रेगुर्जेतेजीसिन हो गया है।
इसके लिए तो वॉल्व रिप्लेसमेंट या वोल्व प्रत्यारोपण कराया जा सकता है, मैंने कहा।
लेकिन अभाव धन का है, उसने सकुचाते हुए कहा।
मेरे मन को शांति पहुंची। मेरे पिताश्री आर्थिक रूप से सक्षम थे। यह मेरी पहुँच के भीतर था। कोई प्रश्न या था तो उसकी मानसिक स्थिति को ठीक करने की।
लेकिन रिप्लेसमेंट होने के बाद भी मेरी शारीरिक छमता तो पूर्ण रूप से सामान्य नहीं होगी। ऐसी जिंदगी की गाड़ी से क्या फायदा जिसकी रफ्तार छुक-छुक कर चलती हो। इससे बेहतर है जीवन की इहलीला ही समाप्त कर ली जावे। उसने कहा।
मैंने सोचा इसे थोड़ा समय दिया जाये। लेकिन दूसरे पल सोचा कही सब्र करते-करते, समय देते-देते फल ही नहीं सड़ जाएँ। अत: जब उठो तभी सबेरा। अत: अभी ही गरम लोहे पर वार किया जाए। इसकी मानसिक स्थिति पर मलहम लगाना अभी ही जरुरी है।
मैंने कहा, हम जिस चट्टान पर बैठे है वह विवेकानंद मैमोरियल का एक हिस्सा है तथा समुद्र के किनारे चट्टानों से टकराने वाली इन लहरों को भी हम देख रहे हैं।
विवेकानंद के शब्दों को याद करो। उठो, जागो और आगे बढ़ो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य हासिल न हो जावे। क्या पथप्रदर्शक थे युवाओं के। स्फूर्ति भरना, सक्षम बनाना, लक्ष्य हासिल करना, प्रेरित करना। तुम भी उठो और आगे बढ़ो। कृष्ण ने अर्जुन को विचारों का सहारा दिया था। तुम्हारी आर्थिक कमी को यदि तुम अन्यथा न लो तो मैं पूरी करुँगी। वाल्व रिप्लेसमेन्ट होगा। केवल तुम्हारे जागने की जरुरत है।
रहा सवाल रिप्लेसमेंट के पश्चात तुम्हारे कार्य की गति सामान्य से कम होने की। तुम्हारा पेशा चिकित्सक का है न की मुक्केबाजी का।
कछुवा और खरगोश की कहानी याद है? कछुवा धीरे धीरे अवश्य चला; लेकिन निरंतर चला। साथ में जीतने की भावना के साथ और जीता भी।
आत्म हत्या का विचार तो महात्मा गाँधी जी ने भी, जड़ से उखाडऩे के लिए आदेश दिया है। आत्महत्या तो कमजोर लोग करते हैं। यदि यह साहसिक कदम होता तो मैं सबसे पहले करता। यह जीवन तुम्हारा नहीं है तुमको भगवान की देन है। यह उसी की देन और लेन है। कृष्ण ने भी गीता में यह कहा कि कर्मण्ये वाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन। सभी लोग मुझी से जन्म लेते हैं और मुझ में ही समा जाते हैं। वत्स तुम्हे केवल कर्म करना है। लक्ष्य हासिल करना है। यह आत्महत्या का घृणित विचार जड़ से उखाड़ फेंको। तुम्हें लक्ष्य हासिल करना है, हार्ट सर्जन बनने का। धीरे-धीरे सही लेकिन निरंतर करने से, तमन्ना अवश्य पूरी होगी। सिर्फ इच्छा शक्ति की जरूरत है।
वाल्व रेप्लेसमेंट करवाया गया। उसने एमसीएच की डिग्री हासिल की। हमने मिलकर हार्ट सर्जरी का सेंटर कोचीन में चालू किया। अब वहां हृदय का प्रत्यारोपण भी होता है।
मुझे ज्ञात है हमारे अस्पताल में एक सुंदर युवती हार्ट फेलुअर की मरीज थी। उसको हृदय प्रत्यारोपण की जरुरत थी। लेकिन हृदय के वाल्व रिप्लेसमेंट और हृदय प्रत्यारोपण में जमीन आसमान का अंतर है। वाल्व रिप्लेसमेंट हुआ और लम्बे समय का इंतजार पूरा अवश्य हुआ, लेकिन एक दुखद घटना के साथ।
एक रोज उटी से आते समय एक भयानक हादसा देखा। एक नवयुवक मोटर साईकिल की तेज रफ़्तार से जा रहा था मैंने अपनी पति को कहा देखो कितनी तेज गाड़ी से जा रहा है बिना हेलमेट के। हेलमेट हमारे सिर ही नहीं जान की सुरक्षा के लिए भी है। सुरक्षा हटी दुर्घटना घटी। कितनी जगह लिखा है। मेरे को देख कर उन्होंने सेफ्टी बेल्ट बांधने की चेतावनी भी दी। दुपहिया वाहन के लिए हेलमेट और चौपहिया वाहन के लिए सीट बेल्ट सेफ्टी का काम करता है।
अचानक एक भारी वाहन से टकराकर नौजवान सड़क पर आ गया। सिर पर चोट थी, वह बेहोश और खून से लथपथ था।
आनंद के लिए हम ऊटी गए थे लेकिन परोपकाराय पुण्याय, हमारे दिमाग में गूंजा। हम ने रूककर चिकित्सक वाली ही नहीं, आदर्श नागरिक के उदहारण कि जिम्मेदारी भी पूर्ण की। नौजवान को अपनी गाड़ी में लेकर हम अस्पताल आ गए और उसे गहन चिकित्सा इकाई में रेस्पिरेटर पर रखा।
कई दिन गुजरने पर भी नौजवान की हालत में सुधार न देख कर अन्य चिकित्सक व न्युरोलोजिस्ट से सलाह मशविरा किया।
न्युरोलोजिस्ट व आईसीयू के चिकित्सक ने कहा इसकी आँखों की पुतली चौड़ी हो गई है। स्वांस भी नहीं है। केवल रेस्पिरेटर से ही आक्सीजन जा रहा है। यह मस्तिष्क मृत्यु की अवस्था है। यह बात उनके रिश्तेदारों को भी समझाई।
उसकी माँ जो पेशे से नर्स थी ने कहा, इसका बीपी, नाड़ी व हृदय तो चल रहा है। आश्चर्य की बात है। उसमे भी मस्तिष्कीय मृत्यु की जानकारी नहीं थी।
न्युरोलोजिस्ट ने समझाया यह तो हृदय की स्वचालित शक्ति के कारण होता है। बेहोशी की इस स्थिति में मस्तिष्क पूर्ण रूप से निष्क्रिय हो जाता है। लेकिन हृदय चलता रहता है और रक्त प्रवाह बना रहता है। रक्त प्रवाह के कारण ही अन्य अंग भी जीवित रहते है। लेकिन यह स्थिथि लंबे समय तक नहीं रह सकती। जीवन की आस नगण्य है। हां! यदि आप चाहें तो आपका बेटा दूसरे रूप में इस दुनिया में अवश्य जिन्दा रह सकता है।
दूसरे रूप मैं क्या मतलब आपका? उसके पिता ने पूछा।
धैर्य से समझाते हुए नुयुरोलोजीस्ट ने कहा यदि हम रेस्पिरेटर को हटा दें तो कुछ ही क्षणों में इसकी मृत्यु संभव हैं। लेकिन इस समय इसके हार्ट, लीवर, किडनी और पुतली को निकाल लें और अन्य व्यक्ति के शरीर मैं तुरंत प्रत्यारोपित कर दें तो आपका बेटा उन सबके शरीर में जीवित रहेगा।
उसकी मां बात को तुरंत समझ गई। आपके अंगों की स्वर्ग से ज्यादा जमीन पर जरुरत है। सलाह मशविरा कर सहमति उपरांत हृदय को उस कमसिन बालिका को प्रत्यारोपित किया जिसको इसकी जरुरत थी। लीवर त्रिवेंद्रम के अन्य अस्पताल में भेजकर किसी अज्ञात व्यक्ति को लाभ पहुंचाया तथा चेन्नई के एक अस्पताल में किडनी भेजकर उस मरीज को नया जीवन दिया जो डायलिसिस के उपरांत भी स्वस्थ नहीं हो पा रहा था। सोने पे सुहागा यह कि उसी आदमी की कॉर्निया प्रत्यारोपण से एक षोडशी बालिका सतरंगी दुनिया को अपने नेत्रो से देखने में सफल हो सकी। यह भी ट्रांस्प्लांट मुहीम के फायदे कि एक कड़ी थी।
यह तभी संभव हो सका जब प्रशासनिक अधिकारियों का पूर्ण सहयोग हमे मिला क्योंकि उनके पास भी थी अंग प्रत्यारोपण और मस्तिष्कीय मृत्यु कि जानकारी।
उस रोज से हम हर साल कन्याकुमारी और ऊटी छुट्टियां मनाने नहीं बल्कि पुरानी यादों को ताजा करने जाते हैं। मैं अपने पति के चेहरे को देखकर याद करती हूँ यदि किसी व्यक्ति का सहारा मिले तो वह अनेक लोगों का सहारा बन सकता है। गाने कि पंक्ति याद आ गई यदि ‘तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो …।Ó
मृत्यु के बाद भी जिंदगी है। हिंदू धर्म का सिद्धांत है पुनर्जन्म का। मस्तिष्कीय मृत्यु के बाद इसी जनम में जीवन है, यदि हम अपने अंग किसी अन्य जरूरत मंद को दान का दें।

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