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हम खुद ले रहे अपने बच्चों की जान : डॉ. हंसा शुक्ला

Mar 18, 2016

new year 2016आत्महत्या की प्रवृत्ति पिछले कुछ दिनों में स्कूली बच्चों में बढ़ी है कारण अपरिपक्व उम्र। बड़े शहरों के अलावा छोटे शहर, गांव और कस्बों के बच्चों में आत्महत्या की दर बढ़ गई है। आत्महत्या क्षणिक आवेश (भावनात्मक निर्णय) का परिणाम होती है। स्कूली विद्यार्थी अर्थात् टीनएजर। वह उम्र जो भविष्य बनाने का आधार होता है। उस उम्र में बच्चे आत्महत्या जैसी पलायनवादी दृष्टिकोण को क्यूं अपनाते हैं। कही इसका कारण आप और हम, मीडिया और बच्चे की अपनी भावनाओं को किसी से शेयर ना कर पाने से मजबूरी तो नहीं है। कारण कुछ भी हो लेकिन हमें इन बच्चों को ऐसा मजबूत आधार देना होगा जिससे ये आत्महत्या जैसी दूषित मानसिकता से दूर रहें। Read More
यह उम्र जब बच्चे वय:संधि से गुजरते हैं, हार्मोन परिवर्तन के कारण वह बड़ा होने का अनुभव तो करते हैं लेकिन परिपक्व न होने के कारण सही निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते है। यह उम्र जब इन्हें बाहरी दुनिया बहुत खूबसूरत लगती है, लेकिन किताब कॉपी में उनका मन नहीं लगता है। यह उम्र का सबसे नाजुक मोड़ होता है, इस उम्र में बच्चों को माता-पिता या घर के बड़े भाई-बहन के प्यार के साथ विशेष केयरिंग की जरूरत होती है जो उनके मनोभाव को समझ सके, उन्हेें छोटी-छोटी गल्तियों पर डॉटने के बजाये प्यार भरी समझाईश दे सके। पालकों को चाहिए कि वो बच्चों की बातों को ध्यान से सुने चाहे बात दोस्तों की हो, या स्कूल की, फिल्मों की या कोई और बात हो।
एक चूक जो पालकों से होती है, वह अपने बच्चों को हर स्र्पधा में भाग लेते देखना चाहते हैं। साथ ही भाग लेने पर प्रथम, द्वितीय या तृतीय स्थान पर आने के लिए प्रोत्साहित तो करते हैं लेकिन उनके प्रोत्साहन में एक अहम का भाव छुपा होता है जिसे बच्चे आसानी से समझ जाते हैं। अपने आस-पास में बहुत से पालकों को बच्चों को यह कहते हुये देखा गया है – तुम्हे अमुक प्रतियोगिता में आगे आने के लिए जी तोड़ मेहनत करनी है। देखे नहीं पिछले बार मिसेज बत्रा का बेटा फस्र्ट आया था, पूरे साल भर उनके पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे, हर फंक्शन में अपने बेटे की तारीफ करते थकती नहीं थी। इस बार तो तुम कुछ भी करों लेकिन फस्र्ट आओ फिर देखो मैं क्या करती हूं। शायद पालक ऐसा बोलकर भूल जाये लेकिन बच्चों के मन में ये बात गहराई से घर कर जाती है, और कभी-कभी प्रतियोगिता में परिणाम की पूर्व आशंका से घिर कर वो गलत कदम उठा लेते हैं।
उम्र के इस नाजुक दौर में बच्चों को भी अपने को मानसिकरूप से मजबूत बनाना होगा। कक्षा में टीचर के डांटने का अर्थ कभी भी यह नहीं होता कि वह बच्चों का इनसल्ट करना चाहते हैं, बल्कि यह डांट बच्चों की भलाई के लिए होती है। बच्चों को शिक्षक की डांट को चुनौती के रूप में लेते हुयें अपनी कमी को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। पढ़ाई हो या कोई प्रतिस्पर्धा बच्चों को परिणाम की चिंता किये बिना मन लगाकर तैयारी करनी चाहिए। परिणाम के पश्चात् उन्हें आत्म आकलन करना चाहिए की पीछे क्यूं रह गये? विद्यार्थी एक बात ध्यान रखें कि स्वआकलन पूरी इमानदारी से करें जिससे आगे बढऩे के लिए अपनी कमजोरियों को ताकत में बदल सकें। विद्यार्थियों से एक गलती यह होती है, कि वे डांटने वाले को दुश्मन समझ लेते हैं। एक बात आप हमेशा याद रखिए, कि जो आपको डांटता है, आपकी गलती बताता है, वह आपका सबसे बड़ा शुभचिन्तक है। आप सोचिए, आपके माता-पिता या शिक्षक भी आपको हारते हुये नहीं देखना चाहते यही कारण होता है, कि आप आगे बढ़ें, आप अपनी योग्यतानुसार काम कर पाये इसलिए वो आपको डांटते हैं।
जो बच्चे स्र्माट फोन यूज करते है, उनके अभिभावक विशेषरूप से ध्यान दें कि बच्चे कौन से साइट में सर्च करते हैं यदि बच्चा बहुत ज्यादा सोशल मीडिया के साइटस से जुड़ा रहता है, तो उन्हें इसकी हानियों से अवगत कराये। पालक हमेशा ध्यान रखें कि स्मार्ट फोन यदि सही तरीके से यूज किया जाय तो यह वरदान है पूरी दूनिया की खबरे हमें इसमें मिल जाती है किन्तु यदि बच्चा इसके गलत साइट का उपयोग करना सिख जाए तो इससे बढ़ा अभिशाप और कुछ नहीं हो सकता। इस उम्र में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण एक वैज्ञानिक पहलू है अत: माता-पिता बच्चों को बहुत ज्यादा दबाव में ना रखें बल्कि बच्चों की काउसिंलिंग करे कि लड़का हो या लड़की दोस्त अच्छे होने चाहिए। इस उम्र में फिल्म या टी.वी. सीरियल को देख कर प्रेम संबंध या शादी संबंधी निर्णय नहीं लिये जाते। हफ्ते में तीन से चार बार बच्चों के फोन के कॉल डिटेल, मैसेज वॉटसएप एवं फेसबुक को चेक करे किसी एक लड़के या लड़की के अधिक मैसेज या डिटेल पाये जाने पर बच्चे से प्यार से उनके संबंधों के बारे में पूछे अनावश्यक शक ना करे। आवश्यक हो तो बच्चे के उस दोस्त से मिल कर बाते करें। कुछ केस में पाया गया है कि माता-पिता या बड़े भाई-बहन के सही तरीके से समझाने पर बच्चे गलत रास्ते में जाने से बच जाते है।
कुछ बातें जो पालकों को बच्चे से कभी नहीं कहना चाहिए-
1. तुम तो यह काम कभी कर ही नहीं पाओगे।
2. तुम्हारा मन तो पढ़ाई में लगता ही नहीं।
3. भगवान ने तुमको किस मिट्टी से बनाया है?
4. तुम फेल हुये तो अपनी शक्ल मत दिखाना।
5. तुम इस घर के लिए बोझ हो।
उपरोक्त बातें आप गुस्से में कहते हैं, लेकिन बच्चे इसे दिल में उतार लेते हैं। यदि आपकी कसौटी पर खरा नहीं पाते तो, गलत कदम उठा लेते हैं। तब आपके पास पछतावे के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं होता है। आप बच्चों को ऐसे प्रोत्साहित कर सकते हैं-
1. तुम ठान लो तो हर काम कर सकते हो। शुरूआत करो, मैं तुम्हारे साथ हूं।
2. भगवान ने तुमको एक ही बनाया है, तुम्हारे जैसा पूरी दूनिया में कोई और नहीं है।
3. पढ़ाई में मन नहीं लगता, तो तुम जिस क्षेत्र में आपना कैरियर बनाना चाहते हो, निश्चित कर लो, लेकिन आगे बढऩे के लिए पढ़ाई जरूरी है।
4. अगर किसी कारण से तुम्हारा रिजल्ट अच्छा न आये तो कोई बात नहीं, यह जिन्दगी का आखिरी इम्हिहान नहीं है, आगे अच्छी मेहनत करना।
5. तुम्हारे बिना यह घर अधूरा है।
यह तो हुई पालकों की बात, बच्चों को भी अपने माता-पिता और बड़ो एवं षिक्षकों से व्यवहार करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. माता-पिता से पढ़ाई या अन्य बात को लेकर झूठ न बोले।
2. माता-पिता के प्यार की तुलना उनके डॉंट से न करे।
3. अगर पढ़ाई में आप बहुत अच्छे नहीं है तो अपने इच्छा के क्षेत्र में कैरियर की संभावना की चर्चा माता-पिता एवं बड़ों से करे।
4. षिक्षक का सम्मान करे, कक्षा संबंधी कोई भी बात जो जरूरी हो उसे षिक्षक को जरूर बताये।
5. अगर आपसे कुछ गलत काम हो गया हो, तो आप पैरेट्स को जरूर बताऐं, उनकी डॉट की डर से कई बार आप बातों को नहीं बताते और बात बिगड़ जाने पर आप गलत कदम उढ़ाते है।
बच्चों को मैं एक ही बात कहना चाहूंगी, कि आपका जीवन बहुमुल्य है, इसे सहेजिए और अच्छा बनाइये। आपका जीवन आपके अपनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आपके माता-पिता की सारी उम्मीद आपसे है। जिन्दगी एक संघर्ष है, चुनौती है इसका सामना आप जितनी जिन्दादिली से करेंगे आप स्वयं खुश रहेंगे और दूसरों को भी खुश रख पायेंगे। प्रत्येक सफल इंसान के जीवन में कई असफलताएं होती हैं।
प्राचार्य, स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय, भिलाई (छग)

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