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कविता : मेरे पापा

Jun 18, 2016

new year 2016बचपन से ही पापा मेरे लिए थे खास।
मेरे बचपन का सबसे प्यारा एहसास।।
उनकी ऊंगली पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगी।
अपनी बाते भी थोड़ी-थोड़ी उनसे कहने लगी।।
बैठती जब साइकल की कैरियर पर उनके साथ।
होता था मझे राजकुमारी होने का एहसास।।
जब पापा खिलाते अपने हाथों से खाना।
उस खाने का स्वाद हो जाता दोगुना।।
जब कभी गलती से हो जाता नुकसान।
तब मां की डांट से बचाते थे पापा।।
कभी प्यार, कभी लाड़, कभी तकरार।
सर्दी में गुनगुनी धुप का एहसास है पापा।।
चुन ली अपनी मंजिल हो गई मेरी शादी।
लगा मेरे और पास आ गये मेरे पापा।।
क्या है मेरा गम और क्यूं हूं मैं उदास।
बिना कहे सब राज समझ जाते है पापा।।
कभी दोस्त, कभी मां और कभी भाई।
हर रिश्ते का एहसास कराते हैं पापा।।
– डॉ हंसा शुक्ला

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