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तनाव और अनिद्रा दे रही दिल का दर्द

Sep 20, 2016
5-7 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही हृदय रोगियों की संख्या

dr dilip ratnani, stroke in youngsters on the riseभिलाई। एक तरफ जहां हृदय रोग दुनिया में सर्वाधिक मौतों का कारण है वहीं दूसरी तरफ अनिद्रा एवं तनाव हृदय रोगों का सबसे बड़ा कारण बनकर उभर रहे हैं। अनिद्रा, अल्प निद्रा और स्लीप एप्नीया की चपेट में आए लोगों को पता भी नहीं होता और वे कार्डियो वैस्कुलर डिजीज सीवीडी के चंगुल में फंस जाते हैं। अपोलो बीएसआर हास्पिटल के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ दिलीप रत्नानी ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में युवा हृदय रोगियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इसका मूल कारण करियर और काम का तनाव तथा इससे उपजी अनिद्रा की स्थिति है। इन रोगियों की संख्या 5-7 फीसदी की दर से बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि नींद पूरी न होने पर व्यक्ति दिन भर थका-थका सा रहता है। कुछ लोग जहां सोने के लिए वक्त नहीं निकाल पाते वहीं कुछ लोगों की नींद रात भर टूटती रहती है।
कम नींद से बिगड़ी स्थिति
इन दिनों लोग छह घंटे की गहरी नींद भी नहीं ले पा रहे हैं। इसकी वजह से कार्डियोवैस्कुलर डिजीज बढ़ रहे हैं जिसमें उच्च रक्तचाप, कोरोनरी डिजीज और स्ट्रोक शामिल हैं। कम नींद शरीर में ग्लूकोज के प्रबंधन को असंतुलित कर डायबिटीज का कारण बन सकता है। रक्त में प्रोटीन (इंफ्लेमेटरी मार्कर्स) की संख्या बढ़ा सकती है जो धमनियों में जमा होकर रक्त वाहीनियों को नष्ट कर सकती हैं, उनमें अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। यह धड़कन में अनियमितता का कारण बन सकती है।
खर्राटों और सांस पर रखें नजर
स्लीप एप्निया की चर्चा करते हुए डॉ रत्नानी ने बताया कि अपने पार्टनर की नींद पर नजर रखें। यदि वह रुक रुक कर खर्राटे ले रहा है और बीच बीच में ऐसा लगता है कि उसकी सांसें रुक रुक कर चल रही हैं तो यह स्लीप एप्निया है। यह स्थिति कार्डिवैस्कुलर रोगों का कारण बन सकती है। ऐसी स्थिति में चिकित्सक की सलाह लेकर हृदयाघात से बचा जा सकता है।
हृदय के लिए परिवेश
प्रतिवर्ष 29 सितम्बर को विश्व हृदय दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष इसका थीम है हृदय के लिए स्वास्थ्यकर परिवेष का निर्माण। इसके लिए तम्बाकू उत्पादों, अल्कोहल व अस्वास्थ्यकर भोजन से परहेज करने के साथ ही शारीरिक श्रम को अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। दुनिया भर में प्रतिवर्ष 1.73 करोड़ लोगों की मौत हृदय रोगों से हो जाती है। इनमें से 80 फीसदी मौतें विकासशील देशों में होती हैं। सावधानी और समय पर चिकित्सा से इनमें से 60 फीसदी मौतों को टाला जा सकता है।

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