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पंथ के चक्कर में न ही पड़ें तो ठीक – विशुद्ध सागर

Sep 18, 2016

acharya-vishuddha-sagar-ji-भिलाई। आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज ने कहा कि आप सभी वेद पुराण पढ़ें। नित नये पंथ और मंदिर के कारण लोग दर्शन से भटक रहे हैं। इसलिए बेहतर होगा कि लोग पंथ के चक्कर में न पड़कर वेद और वेदांत के सार को समझ लें। इससे भ्रम मिटेगा। वेद और वेदांत के अंतर का सार बताते हुए आचार्य श्री ने कहा कि प्रत्येक मंदिर के मुख्य द्वार पर गोपिका के ऐसे चित्र उकेरें जिसमें वह रस्सी और मथनी के द्वारा मक्खन एवं छाछ निकाल रही हो। उन्होंने बताया कि एक हाथ रस्सी छोड़ता है तो दूसरा उसे खींचता है। बारी-बारी ऐसा करने के कारण मथनी दही को फेंटती है और मक्खन ऊपर आ जाता है। इस प्रक्रिया में कोई खींचातानी नहीं होती है। यही जीवन का सार है। दोनों हाथ रस्सी खीचें तो मथनी नहीं चलती। दोनों हाथ बारी बारी रस्सी को खींचते और छोड़ते हैं तभी मथनी चलती है।
ऐसे ही धर्म की व्याख्या मात्र इस बात के लिए न हो कि तुमने भूत में पाप किया था, इसलिए धर्म कर लो, पाप का क्षय हो जाएगा। वर्तमान में धर्म कर लो, भविष्य की पर्याय अच्छी मिलेगी।
आचार्यश्री ने कहा कि कहीं गाल छेदे जा रहे हैं, कहीं नाक-कान तो कहीं जिव्हा का छेदन हो रहा है। क्या शरीर को इस तरह से पीडि़त करना ही धर्म है? धर्म का कोई वैज्ञानिक तरीका होना चाहिए। धर्म विशिष्ट ज्ञान से युक्त होता है। रोटी के लिए आग जल रही है, रोटी बहुत देर बाद खाई जाएगी। लेकिन जो अग्नि जल रही है, वह रोटी को वर्तमान में सेंक रही है। पकाने वाली मां समझदार है तो चूल्हे में सिकती रोटी की सुगंध पूरे घर को महकाने लगती है। शुद्ध घी की पूडिय़ां बना रही हो तो घर ही नहीं, पूरे मोहल्ले को महकाती है। भविष्य के सुख के लिए पूडिय़ां सेंकी जाती है, लेकिन वर्तमान में उसकी सुगंध सबके ध्यान इंद्री को आनंद दे रही है। ऐसे ही जो भी धर्म की व्याख्या हो, वह इतनी तात्विक होनी चाहिए कि वर्तमान और भूत के पाप का क्षय हो, भविष्य में सुख की प्राप्ति हो। वर्तमान में जो व्याख्यान चल रहा है, उसमें भी आनंद की लहर दौड़े। जिसके वर्तमान में कोई सुख न हो, वह धर्म कैसा? वर्तमान में आनंद आना चाहिए। पानी की बूंद मिट्टी के ढेले पर डालो तो तत्काल प्रभाव दिखता है। ऐसे ही उपदेश सुनते-सुनते श्रोताओं के चेहरे पर प्रभाव दिखना चाहिए, वही प्रवचन है।

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