भिलाई। प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक शिवदास घोड़के का मानना है कि थिएटर से न केवल आपका सिविक सेन्स जागृत होता है बल्कि यह आपको संवेदनशील मनुष्य भी बनाता है। श्री घोड़के भिलाई में आर्टकॉम द्वारा आयोजित नाट्य शिविर में युवाओं और गृहिणियों को अभिनय एवं नाट्य कला का प्रशिक्षण दे रहे हैं।श्री घोड़के ने बताया कि मंच पर कलाकार यह सीखता है कि किस तरह से खुद को प्रेजेन्ट करना है। किस तरह अपने भावों को अभिव्यक्त करना है। इससे उसकी संप्रेषण क्षमता का विकास होता है। इसके साथ ही वह अपने साथी कलाकारों को पूरा मौका देना भी सीखता है। धीरे धीरे यह उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है। सह अस्तित्व का पाठ रंगमंच से बेहतर और कोई नहीं पढ़ा सकता।
श्री घोड़के कहते हैं, ‘हम अकसर देखते हैं कि लोग पार्किंग करते समय इस बात का ख्याल नहीं रखते कि जिस गाड़ी के आगे या पीछे हम गाड़ी लगा रहे हैं, उसे निकलने में दिक्कत हो सकती है। जब दो लोग बात कर रहे होते हैं तो हम उनके बीच में घुस जाते हैं, बिना यह सोचे कि उनके वार्तालाप की लय टूट रही है। न हम अपनी बात कह पा रहे हैं और न वे अपनी बात पूरी कर पा रहे हैं। रंगमंच का कलाकार इन दोनों में से कोई भी गलती नहीं करता।’
उन्होंने कहा कि आज चारों तरफ तनाव और तनाव से उभरने वाली बीमारियों की चर्चा होती है। तनाव इसलिए होता है कि हम सिचुएशन के अनुसार रिएक्ट नहीं कर पाते। रिएक्ट करते भी हैं तो अकसर वह मर्यादा में नहीं होता। रंगमंच आपको हालातों का मुकाबला करने, अपने भावों को मर्यादित रूप से अभिव्यक्त करने का गुर सिखाता है। आप सिचुएशन्स को बेहतर हैंडल कर पाते हैं।
रंगमंच के एक और बड़े लाभ को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि जीवन की आपाधापी में हम अकसर जीना छोड़ देते हैं। इससे हमारा मन मर जाता है। कल्पना अधूरी रह जाती है। रंगमंच आपको जीने का मौका देता है। आप बड़ी सहजता से बिना कोई बखेड़ा खड़ा किए अपनी बात लोगों तक पहुंचा सकते हैं।
बातचीत के दौरान आर्टकॉम के निदेशक संचालक निशु पाण्डेय भी उपस्थित थे। निशु पाण्डेय ने बताया कि रंगमंच की इन्हीं बातों ने उनके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला। इसके बाद उन्होंने रंगमंच की विधा को आगे बढ़ाने के कार्य को मिशन के तौर पर आगे बढ़ाने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि आज रंगमंच का अनुभव आपके लिए करियर के भी नए दरवाजे खोलता है। इसलिए आर्टकॉम अब लगातार प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करता रहेगा।