• Sun. May 5th, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

महाकाल के पुजारी परिवार में अकाल मौतें, गढ़कालिका माता को अब मदिरा नहीं चढेगी

Nov 12, 2017

महाकाल की नगरी में भैरव और देवी को मदिरा अर्पित करने की प्राचीन परंपरा है। हालांकि महाकवि कालिदास की आराध्य देवी गढ़कालिका को अब मदिरा का प्याला अर्पित नहीं किया जा रहा है। पुजारी परिवार ने इस पर हाल ही में रोक लगा दी है। पुजारी परिवार में लगातार अकाल मौतों के चलते यह निर्णय लिया गया है।उज्जैन। महाकाल की नगरी में भैरव और देवी को मदिरा अर्पित करने की प्राचीन परंपरा है। हालांकि महाकवि कालिदास की आराध्य देवी गढ़कालिका को अब मदिरा का प्याला अर्पित नहीं किया जा रहा है। पुजारी परिवार ने इस पर हाल ही में रोक लगा दी है। पुजारी परिवार में लगातार अकाल मौतों के चलते यह निर्णय लिया गया है। मंदिर में पूजा-अर्चना नाथ संप्रदाय के पुजारी परिवार द्वारा की जाती है। फिलहाल ब्रह्मलीन महंत सिद्धनाथजी महाराज के परिवार के लोग परंपरागत रूप से पूजा-अर्चना कर रहे हैं। हाल ही में नाथ संप्रदाय की बैठक गढ़कालिका मंदिर में हुई थी। इसमें पुजारी परिवार में निरंतर अकाल मौतों का मामला उठा।बताया जाता है कि डेढ़ दशक में परिवार के चार सदस्यों की अकाल मृत्यु हो चुकी है। इस पर भर्तृहरि गुफा के पीर योगी रामनाथ महाराज ने कहा कि मंदिर में देवी को मदिरा चढ़ाने की परंपरा गलत है, क्योंकि यहां माता कालिका के साथ महालक्ष्मी और सरस्वती भी विराजित हैं। यहां मदिरा अर्पित करना धर्मशास्त्र के विरुद्ध है। इससे कुल के नाश की आशंका होती है। इसके बाद पुजारी परिवार ने यहां मदिरा अर्पित करने पर रोक लगा दी।
चार दिनों से देवी को मदिरा नहीं चढ़ रही है। प्रसाद रूप में शराब लेकर आने वाले भक्तों को लौटाया जा रहा है। महंत रामनाथ ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि धर्मशास्त्र की मान्यता के अनुसार मदिरा न चढ़ाने का सुझाव दिया था। दो माह पूर्व विद्वत परिषद ने भी देवी को मदिरा अर्पित करने को लेकर आपत्ति जताई थी।
7वीं और 10वीं शताब्दी में हुआ जीर्णोद्धार
मंदिर में माता गढ़कालिका, माता लक्ष्मी तथा माता सरस्वती की मूर्तियां विद्यमान हैं। कालिका माता की मूर्ति भव्य और आकर्षक है। प्रतिदिन सैकड़ों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। सम्राट हर्षवर्धन ने 7वीं तथा परमार राज्यकाल में 10वीं शताब्दी में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था, जिसके अवशेष मिलते हैं। इस स्थल से 4-5वीं शताब्दी की यक्षिणी की सुंदर प्रतिमा भी प्राप्त हुई है, जिसे पुरातत्व संग्राहलय में रखा गया है।

Leave a Reply