कोरबा। इंजीनियर चंद्रशेखर बघेल पिछले 15 सालों से आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर उनका जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर रहे हैं। सीएसईबी पूर्व के सहायक अभियंता चंद्रशेखर छह दिन की पूरी ड्यूटी के बाद रविवार को वे जिले के आदिवासी बहुल गांवों में पहुंच जाते हैं और महिलाओं को सशक्त व आत्मनिर्भर बनने प्रेरित करते हैं। उन्होंने न केवल आदिवासियों को नशामुक्ति का पाठ पढ़ाया, स्वरोजगार का जरिया भी उपलब्ध कराया। डेढ़ दशक के प्रयास के बूते उन्होंने 90 समूह की डेढ़ हजार से ज्यादा महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा। उनके बनाए उत्पाद की मार्केटिंग में मदद कर आर्थिक उन्नति में भी सहायक बन रहे।55 साल के चंद्रशेखर के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी आदिवासी समुदाय को मदिरापान की आदत से निजात दिलाना। उन्होंने महिला स्व-सहायता समूह के जरिए नियम बनाए। पहले अपना परिवार, फिर मोहल्ला और फिर पूरे गांव को नशामुक्त कर दिया। स्थायी स्वरोजगार दिलाने समूह के जरिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की। वर्तमान में ग्राम कोई, बोतली, नवापारा, घिनारा, मदवानी, पीडिय़ा, तराईमार, कल्गामार जैसे कई गांव की महिलाएं सक्षम व आत्मनिर्भर बन अपनी आजीविका चला रहे।
चंद्रशेखर बघेल की पत्नी श्रीमती भारती व कटक यूनिवर्सिटी में एग्रीकल्चर की प्रोफेसर होने के साथ रूरल वूमन इंपावरमेंट में पीएचडी कर रही बेटी रिचा भी सहयोग प्रदान करती रहीं हैं। महिलाओं को सक्षम कर मुख्यधारा में लाने उसका विशेष योगदान रहा। पुत्र गौरव भुवनेश्वर में बीबीए का स्टूडेंट है।
महिलाओं को जैविक खेती, जैविक खाद, साबुन, अगरबत्ती व किचन गार्डन में सब्जी उत्पादन की ट्रेनिंग श्री बघेल ने दिलाई। वे ग्रामीणों में स्वस्थ शरीर सेहतमंद जीवन शैली विकसित करने प्रोत्साहित भी करते हैं। इसके लिए वे उन्हें योग की बारीकियां भी सिखाते हैं और नियमित योगाभ्यास करने प्रेरित करते हैं।