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हठी किसानों ने बदल दी बीहड़ों की तस्वीर

Dec 23, 2017

मुरैना। बढ़ते बीहड़ रोकने में जब सरकार और सेना नाकाम हो गई तो इलाके के किसान बीहड़ की तस्वीर बदलने के लिए आगे आए। किसानों ने 20 साल में बीहड़ के बड़े भाग को खेती योग्य बना दिया। 40 साल (1955-95) में सरकार व सेना तीन लाख हेक्टेयर बीहड़ में से सिर्फ 76 हजार हेक्टेयर को ही खेती योग्य बना पाए, लेकिन पिछले 20 साल में अंचल के किसानों ने दो लाख हैक्टेयर से अधिक बीहड़ को खेती के लायक बना दिया है। मुरैना। बढ़ते बीहड़ रोकने में जब सरकार और सेना नाकाम हो गई तो इलाके के किसान बीहड़ की तस्वीर बदलने के लिए आगे आए। हठी किसानों ने बदल दी बीहड़ों की तस्वीर. किसानों ने 20 साल में बीहड़ के बड़े भाग को खेती योग्य बना दिया। 40 साल (1955-95) में सरकार व सेना तीन लाख हेक्टेयर बीहड़ में से सिर्फ 76 हजार हेक्टेयर को ही खेती योग्य बना पाए, लेकिन पिछले 20 साल में अंचल के किसानों ने दो लाख हैक्टेयर से अधिक बीहड़ को खेती के लायक बना दिया है। मालूम हो कि हर साल चंबल के किनारे 8 सौ हेक्टेयर जमीन बीहड़ में बदल जाती है। भूमि कटाव रोकने के लिए खेतों के किनारों पर मेड़ बंधान कर रहे। बीहड़ी जमीन को ढाल के विपरीत जुताई कर फसल ले रहे। पिछले 20 सालों में मल्हन का पुरा, कैलारस के चिन्नोनी, जौरा के नंदपुरा, बरहाना, खांडोल, मुरैना के रिठौरा खुर्द सहित चंबल किनारे के अधिकतर गांवों में किसानों ने बीहड़ी जमीन को खेती योग्य बनाया है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक दो लाख हेक्टेयर बीहड़ जमीन में सुधार होने पर 150 लाख टन फसल का उत्पादन होता है, जिससे करीब 60 करोड़ की आय किसानों को हो रही है।
यह हुए थे सरकारी प्रयास
1955 में सरकार ने एक समिति का गठन कर बीहड़ सुधार कार्यक्रम शुरू किए। 1981 में चंबल आयकट का गठन कर बीहड़ क्षेत्र में कटाव रोकने के लिए चेकडैम बनवाए और बबूल का छिड़काव किया। साल 85 से 95 तक बीहड़ कटाव रोकने के लिए सेवानिवृत्त सैनिकों का एक टास्कफोर्स बनाया गया और बीहड़ कटाव रोकने के प्रयास किए गए।
सरकार ने सुधारी गई बीहड़ी जमीन का रखरखाव नहीं किया। सुधार कार्यक्रम केवल मशीनी थे। विशेषज्ञों की मदद नहीं ली गई। ग्रामीणों के सुझावों को नहीं माना गया।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
सरकार ने 1955 से कई प्रोजेक्ट बीहड़ सुधार के लिए शुरू किए, लेकिन सभी प्रयास यांत्रिकी थे। भूमि कटाव रोकने के लिए जो भी चेकडैम व अन्य संरचनाएं बनाई गईं, उनकी देखरेख नहीं की गई। जो समर्थवान किसान हैं, वे तो बीहड़ी जमीन को सुधार रहे हैं। लेकिन सभी को लाभ देना है तो सहकारिता के सिद्धांत का पालन कर सभी किसानों को बीहड़ की जमीन देनी होगी और सुधारने के लिए आर्थिक मदद भी।
डॉ. शोभाराम बघेल,
बीहड़ विशेषज्ञ

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