बिलासपुर। छोटे बड़े पहाड़ों की गोद में बसा है ग्राम खोंदरा। यहां पानी की भारी किल्लत रहती थी। खेत सूखे रह जाते थे। गांव की 70 महिलाओं ने साहस किया और तीन साल की अथक मेहनत से पहाड़ का सीना चीरकर खेतों तक पानी ले आईं। इसके लिए उन्हें 20 फीट गहरी सुरंग भी खोदनी पड़ी, पर वे विचलित नहीं हुईं और जीवन संकट में डालकर भी काम करती रहीं। यह गांव चारों तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है। इसके कारण जब बारिश का पानी पहाड़ से नीचे गिरता तो इसकी रफ्तार भी काफी तेज होती। तब इसे सहेजना काफी मुश्किल काम होता। बारिश का पानी पहाड़ से नीचे उतरता और नालों के जरिए नदी में चला जाता। भारी बारिश के बाद भी खेत प्यासे रह जाते थे। अकाल के कारण यहां भुखमरी की स्थिति बनी रहती थी। बंजर पड़े खेतों को देखकर महिलाओं ने अपने दम पर कुछ करने की ठानी।
देखते ही देखते ही सखी महिला समूह के बैनर तले महिलाएं एकजुट हो गर्इं। सखी महिला समूह की हेमलता साहू ने एफ्रो नामक संस्था से संपर्क किया, जो इस तरह का काम करती है। संस्था के तकनीकी अधिकारियों ने खोंदरा पहुंचकर सर्वे किया। उन्होंने महिलाओं को बताया कि पहाड़ के पानी को किस तरह तालाब में सहेजा जा सकता है। योजना सामने थी। इस काम के लिए जरूरी संसाधन जुटाने थे। महिलाओं ने रोजी-मजदूरी से मिलने वाली राशि में से आधी रकम को जमा करना शुरु किया।
सखी बैंक से एक लाख रुपये कर्ज भी लिया। अब बारी थी पहाड़ से लडऩे की। लेकिन महिलाओं की दृढ़ इच्छा शक्ति के आगे पहाड़ भी नतमस्तक हो गया। एक हजार फीट की ऊंचाई पर चढ़कर महिलाओं ने पहाड़ की छाती को चीरना शुरु किया। डेढ़ साल तक 70 महिलाओं की टीम ने हाड़तोड़ मेहनत की। पहाड़ की ढलान के साथ-साथ गहरी नालियां बनाई गईं, जिन्हें बड़े पाइपों से जोड़ा गया, ताकि बारिश का पानी इनके जरिये नीचे आए। पाइप लाइन बिछाने के बाद नौ फीट गहरी सुरंग भी खोदी। इसमें भी प्लास्टिक की पाइप लाइन बिछाई। जिसे तालाब तक पहुंचाना था। पाइप लाइन के जरिए एक
हजार फीट की ऊंचाई से गिरने वाले पानी को एक जगह पर इकठ्ठा करने के लिए पांच एकड़ का तालाबनुमा गड्ढा खोदा गया। इस बड़े तालाब में पानी को सहेजने के बाद एक दर्जन छोटे तालाब भी बनाए गए। इस पूरे काम में तीन साल का वक्त लग गया। तीन साल बाद अब खोंदरा के बंजर खेतों में हरियाली लौट आई है।
जल प्रबंधन की जिम्मेदारी भी महिलाओं के हाथ में
यह जल संरक्षण से लेकर खेती किसानी के दौरान खेतों में सिंचाई की व्यवस्था भी महिलाओं की देखरेख में ही होती है। किस खेत में कितना पानी देना है और कब देना है, यह उनके ही जिम्मे है। मवेशियों और निस्तार के लिए अलग-अलग तालाब की व्यवस्था की गई है। दूरस्थ वनांचल ग्राम होने और महिलाओं के कम पढ़े लिखे होने के बावजूद यहां स्वास्थ्य के प्रति सजगता देखते ही बनती है।