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‘स्वयंसिद्धा’ की सखियां सीख रहीं मंच की बारीकियां

May 20, 2018

भिलाई। लब्धप्रतिष्ठ संस्था ‘स्वयंसिद्धा’ की सखियां इन दिनों रंगमंच की बारीकियां सीख रही हैं। रंगमंच के नियम जीवन को भी प्रभावित करते हैं। रंगमंच पर आप अपने प्रत्येक साथी को बराबर का मौका देना सीखते हैं, सहयोग, समर्पण, परस्पर सम्मान और धैर्य जैसे गुणों को निखारते हैं। इन्हें थिएटर निर्देशक शिवदास घोड़के प्रशिक्षण दे रहे हैं। स्वयंसिद्धा विवाहित महिलाओं की एक ऐसी संस्था है जो परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के बाद थोड़ा वक्त अपने लिए निकालकर स्वयं को तलाशती हैं। गीत-संगीत, नृत्य-नृत्यनायिका और नाटकों के जरिए समाज को संदेश देती हैं। स्वयंसिद्धा अभियान की सूत्रधार सोनाली चक्रवर्ती का मानना है कि इससे महिलाओं में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास का विकास होता है जिससे परिवार को भी ऊर्जा मिलती है। भिलाई। लब्धप्रतिष्ठ संस्था ‘स्वयंसिद्धा’ की सखियां इन दिनों रंगमंच की बारीकियां सीख रही हैं। रंगमंच के नियम जीवन को भी प्रभावित करते हैं। रंगमंच पर आप अपने प्रत्येक साथी को बराबर का मौका देना सीखते हैं, सहयोग, समर्पण, परस्पर सम्मान और धैर्य जैसे गुणों को निखारते हैं। इन्हें थिएटर निर्देशक शिवदास घोड़के प्रशिक्षण दे रहे हैं। स्वयंसिद्धा विवाहित महिलाओं की एक ऐसी संस्था है जो परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के बाद थोड़ा वक्त अपने लिए निकालकर स्वयं को तलाशती हैं। गीत-संगीत, नृत्य-नृत्यनायिका और नाटकों के जरिए समाज को संदेश देती हैं। स्वयंसिद्धा अभियान की सूत्रधार सोनाली चक्रवर्ती का मानना है कि इससे महिलाओं में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास का विकास होता है जिससे परिवार को भी ऊर्जा मिलती है। भिलाई। लब्धप्रतिष्ठ संस्था ‘स्वयंसिद्धा’ की सखियां इन दिनों रंगमंच की बारीकियां सीख रही हैं। रंगमंच के नियम जीवन को भी प्रभावित करते हैं। रंगमंच पर आप अपने प्रत्येक साथी को बराबर का मौका देना सीखते हैं, सहयोग, समर्पण, परस्पर सम्मान और धैर्य जैसे गुणों को निखारते हैं। इन्हें थिएटर निर्देशक शिवदास घोड़के प्रशिक्षण दे रहे हैं। स्वयंसिद्धा विवाहित महिलाओं की एक ऐसी संस्था है जो परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के बाद थोड़ा वक्त अपने लिए निकालकर स्वयं को तलाशती हैं। गीत-संगीत, नृत्य-नृत्यनायिका और नाटकों के जरिए समाज को संदेश देती हैं। स्वयंसिद्धा अभियान की सूत्रधार सोनाली चक्रवर्ती का मानना है कि इससे महिलाओं में आत्मसम्मान और आत्मविश्वास का विकास होता है जिससे परिवार को भी ऊर्जा मिलती है। सोनाली के निर्देशन में अनेक मंचीय प्रस्तुतियां दे चुकीं इन महिलाओं को मंच की बारीकियां अपने ढंग से सिखा रहे हैं श्री घोड़के। उनकी यह विशेषता है कि वे कलाकारों के ‘स्व’ को निखारते हैं। उनकी सोच को पंख फैलाने का अवसर देते हैं और उनके भीतर छिपे कलाकार को मुखरित करते हैं। कार्यशाला के चौथे दिन उन्होंने महिलाओं को अलग अलग चुनौतियां दीं जिसे उन्हें खूब निभाया। सुबह का दृश्य प्रस्तुत करने के लिए कोई लोटा लेकर चली तो कोई दातुन घिसती नजर आयी। कोई आंगन को बुहारती दिखी तो कोई कपड़े धोने या पानी भरने के लिए जाती नजर आयी। इसी तरह जब देवी देवताओं का स्वरूप लेने की बारी आई तो कोई दुर्गा, कोई काली, कोई असुर तो कोई शेर बन गई। छोटे-छोटे टास्क से उन्होंने प्रत्येक महिला को अपनी बुद्धि, चातुर्य और अभिनय को प्रदर्शित करने का मौका दिया। साथ ही टिप्स भी देते चले।
कार्यशाला के शेष दिनों में ये महिलाएं अलग अलग नाटक प्रस्तुत करेंगी। नाटक का विषयवस्तु वे स्वयं चुनेंगी, संवाद भी खुद लिखेंगी और स्वयं ही प्रस्तुत भी करेंगी। अब तक गूढ़ विषयों पर नाटक खेलने वाली इन महिलाओं की ये प्रस्तुतियां देखने योग्य होंगी। कार्यशाला में आर्टकॉम के निदेशक निशु पाण्डेय भी सहयोग कर रहे हैं।

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