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गर्ल्स कॉलेज में भाषा-संप्रेषण एवं प्रस्तुति पर व्याख्यान

Dec 8, 2018

Language Orientation Programmeदुर्ग। शासकीय डॉ. वावा पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के आईक्यूएसी के अन्तर्गत प्रख्यात वक्ता और शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजनांदगांव के हिन्दी प्राध्यापक डॉ. चंद्रकुमार जैन का भाषा-संप्रेषण और प्रस्तुति पर रोचक व्याख्यान आयोजित हुआ। डॉ. जैन ने छात्राओं को बताया कि शब्द तो अपने आप में जड़ होते है उसमें चेतना का प्राण फूँकने वाला तो वक्ता होता है। शब्द केवल शोर और तमाशा नहीं है शब्द तो ब्रम्ह है। भाषा सधी हुई होनी चाहिए और सधी भाषा साधना का काम हैै। साधना अभ्यास से आती है। ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।’ डॉ. जैन ने कहानी के माध्यम से छात्राआेंं को समझाया कि निर्भय होकर अपने आपको पहचानिए और अभिव्यक्ति का कोई भी अवसर न चूकिए। संप्रेषण की अनिवार्य शर्त अच्छा श्रोता बनना होता है। संप्रेषण में वक्ता को विषय की अवधारणा बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए। विषय और परिवेश के अनुसार स्वर के अनुपात, प्रवाह, आरोह-अवरोह के साथ ही भाव-भंगिमा में परिवर्तन होना जरूरी है। अगर अच्छा बोलना कला है तो उचित अवसर पर बोलना आवश्यक न हो तो खामोश रहना उससे बड़ी कला है। जिसको मुक्तिबोध ने ‘समझदार चुप्पी’ कहा है। अपने कहे को दूसरे की जीवन का अनुभव बना देना तुलसी और कबीर जैसी क्षमता है। जिसके मूल में संप्रेषण की कला है।
डॉ. जैन ने सम्प्रेषण की व्यापकता में संकेत, छात्राओं द्वारा परीक्षा में लिखे उत्तर को तथा स्नेह और संवेदना के हाथ को भी शामिल किया। शक्ति, कमजोरी, अवसर और चुनौती के ये चार तत्व व्यक्ति की भाषा, संप्रेषण, कला एवं व्यक्तित्व के विकास में बड़ी भूमिका निभाते है। प्रस्तुति से ही व्यक्तित्व उभरता है। प्रस्तुति चाहे किसी भी माध्यम से क्यों न हो आकर्षक एवं सटीक होना चाहिए।
उन्होनें कहा कि शब्द, भाषा के अनुसार ही भाव-भंगिमा संकेत प्रस्तुति को मुकम्मल बनाती है। डॉ. जैन ने अपने कविता संग्रह से कुछ पंक्तियों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने छात्राओं को व्यक्तित्व विकास की जीवन में अहमियत समझायी। सरकारी या प्राईवेट नौकरी या जीवन संघर्ष में भाषा और सम्प्रेषण व्यक्ति के सबसे सशक्त और भरोसेमंद हथियार होते है। महाविद्यालय का काम शिक्षा के साथ ही ऐसे कायर्शालाओं के माध्यम से छात्राओं के व्यक्तित्व को विशिष्ट बनाना भी है।
आईक्यूएसी की प्रभारी डॉ. अमिता सहगल ने आज के आयोजन की सार्थकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ऋचा ठाकुर ने किया। इस अवसर पर डॉ. अनिल जैन, डॉ. केएल राठी, डॉ. मीरा गुप्ता, डॉ. अल्का दुग्गल, डॉ. मीनाक्षी अग्रवाल, डॉ. शशि कश्यप, डॉ. रेशमा लाकेश, डॉ. यशेश्वरी धु्रव, डॉ. ज्योति भरणे तथा छात्रायें बड़ी संख्या में उपस्थित थी। कार्यक्रम के अंत में महाविद्यालय परिवार की ओर से डॉ. जैन का शाल एवं श्रीफल से सम्मान किया गया। छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध रचनाकार स्व. लक्ष्मण मस्तूरिया को भावांजली अर्पित की गई। डॉ. जैन ने ‘मोर संग चलव रे गीत’ प्रस्तुत किया।

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