भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय की लैंगिक समानता (जेंंडर इक्वालिटी) इकाई द्वारा गुरू घासीदास जयंति के अवसर पर जाति विहिन समाज की आवश्यकता पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में गुरू घासीदास के मूल सिद्धांत वाक्य ‘मनखे-मनखे एक समान’ को आधार बनाया गया। जाति के आधार पर व्यक्ति की पहचान न हो अपितु कर्म के आधार पर व्यक्ति को पहचाना जाये, सभी को समान रूप से विकास करने का अधिकार हो। गुरू घासीदास का मूल सिद्धांत यहि है मनुश्य की श्रेष्ठता का आधार जाति नहीं अपितु मानवता है। यह विचार प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने अपने उद्बोधन में रखा। बी.एड. तृतीय सेमेस्टर की छात्रा रूबिया ने कहा जाति विहिनता से अनुषासन हीनता बढ़ती है इसलिये हर व्यक्ति को जाति के नियमों से बंधा रहना चाहिये। अक्षय ने कहा अंतर्जातीयता से देश की एकता को बढ़ावा मिलता है। सहायक प्राध्यापक कृष्णकांत दूबे ने कहा आरक्षण की मांग करके हम खुद को अयोग्य साबित करते हैं, हमें योग्यता के बल पर अपने आप को साबित करना चाहिये, आरक्षण आर्थिक आधार पर हो ना कि जातिग्रह आधार पर हो, इससे वर्ग वैमनस्य बढ़ता है।
स.प्रा. पूनम शुक्ला, शिक्षा विभाग ने कहा कि प्रतियोगिता परिक्षाओं के फॉर्म में श्रेणी का कॉलम न रखे बल्कि भारतीय का कॉलम होना चाहिये वहीं गणित विभाग की स.प्रा. श्वेता निर्मलकर ने कहा कि व्यक्ति की पहचान भारतीयता से होनी चाहिये न कि जाती से।
स.प्रा. शिक्षा विभाग मंजुशा नामदेव, विभागाध्यक्ष माईक्रोबायोलॉजी डॉ. शमा बेग, बी.एड. के विद्यार्थी माया, पूनित, अंजनी कश्यप आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये और घासीदास के अवदान पर प्रकाश डालते हुये उनके सामाजिक योगदान की चर्चा की। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के शैक्षणिक एवं गैर शैक्षणिक विभाग उपस्थित हुये।