भिलाई। शिशु को बुखार आने पर माता पिता आतंकित न हों। बुखार संक्रमण से शरीर के संघर्ष के कारण आता है। बुखार होने पर तुरंत दवा देने से भी बचें। यदि शिशु लगातार रो रहा हो और किसी भी उपक्रम से शांत न हो रहा हो तो तुरन्त डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए। इसी तरह के सवाल जवाबों के बीच पल्स हॉस्पिटल में आज प्रेम एवं ज्ञान के साथ शिशु की देखभाल पर एक बेहद उपयोगी कार्यशाला का आयोजन किया गया।कार्यशाला में अनेक माता-पिता अपने शिशुओं के साथ शामिल हुए। कार्यशाला में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ एपी सावंत, डॉ रंजन बोपर्डीकर एवं डॉ सत्येन ज्ञानी ने पैरेन्ट्स से कुछ सवाल पूछे और उनके चार-चार विकल्प भी दिये। उन्होंने कहा कि आम तौर पर बच्चे को बुखार आते ही लोग हड़बड़ा जाते हैं। ऐसा करना कभी कभी गैरजरूरी होता है। उन्होंने पेरेन्ट्स को बताया कि किन हालातों में शिशु को तत्काल डाक्टर के पास ले जाना चाहिए।
पहला सवाल था – इनमें से कौन सी स्थिति एक इमरजेंसी है- शिशु का भोजन करने से इंकार, उच्च ज्वर, लगातार रोना या एकाएक खांसने लगना। इसका सही जवाब था बच्चे का लगातार रोना और किसी भी उपक्रम से चुप न होना।
बुखार पर विस्तार से चर्चा करते हुए चिकित्सकों ने बताया कि संक्रमण के खिलाफ शरीर स्वयं ही युद्ध करता है जिसके कारण शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। जब तापमान बढ़ रहा होता है तब दवा देने के बावजूद बुखार बढ़ता ही रहता है। तापमान एक जगह जाकर स्थिर हो जाता है। इसके बाद ही दवा असर कर पाती है। दवा बुखार आने पर ही दी जानी चाहिए। रात को बुखार न आए, इसके उपाय के तौर पर दवा नहीं देना चाहिए। उदाहरण के तौर पर बादल छाने पर छाता लेकर घर से निकलना अच्छा होता है पर उसे खोलने का कोई मतलब नहीं। छाता खोल लेने भर से इस बात की गारंटी नहीं हो जाती कि बारिश होगी ही नहीं।
उन्होंने बताया कि केवल 10 से 15 फीसदी बच्चों को ही बुखार आने पर झटके आते हैं। इनमें से अधिकांश की झटकों की फैमिली हिस्ट्री होती है। शेष बच्चों को बुखार से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। यदि बुखार आने के बाद भी बच्चा सामान्य रूप से मां का दूध पी रहा है या खेल रहा है तो बुखार को लेकर ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। पर यदि बच्चा बुखार से परेशान है और असामान्य हरकतें कर रहा है तो तत्काल डाक्टर को दिखाना चाहिए।
चिकित्सकों ने बताया कि बुखार आने पर उपाय बच्चे की इच्छा के अनुरूप होनी चाहिए। यदि उसे ठंड लग रही हो तो उसे ओढ़ाना या ढकना चाहिए। यदि उसे गर्मी लग रही हो तो एसी और पंखा चला देना चाहिए। बुखार चढ़ते समय ही बच्चे को ठंड लगती है। जब बुखार स्थिर हो जाता है तो बच्चा ओढ़ावन को फेंक देता है। यह स्वाभाविक और सामान्य है। यदि स्पंजिंग करनी हो तो पानी ठंडा नहीं होना चाहिए। सामान्य तापमान के पानी से ही बच्चे को स्पंज करना चाहिए।
इसी तरह बच्चे की खांसी, बार बार खांसी होना या बुखार के साथ खांसी होना कोई इमरजेंसी नहीं है पर यदि बच्चा एकाएक खांसने लगे और खांसता ही चला जाए तो यह एक इमरजेंसी हो सकती है।
बच्चे को दस्त लगने पर भी माता पिता घबरा जाते हैं। बच्चे ने 8 बार, 10 बार या 20 बार भी पौट्टी की हो तो हड़बड़ाने की जरूरत नहीं है। उलटियों से भी डरने की जरूरत नहीं है। पर यदि बच्चे ने कई घंटों से पेशाब नहीं किया हो तो तुरन्त डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि दस्त होने पर दूध या भोजन रोकने की भी जरूरत नहीं है बल्कि उसे ओआरएस का घोल भी लगातार देने की जरूरत होती है।
डाक्टरों ने कहा कि बच्चे को जबरदस्ती भोजन कराने से बचें। उसे टीवी के सामने बैठाकर, या मोबाइल थमाकर उसे खाना खिलाना भी गलत है। यह आगे चलकर गंदी आदत में तब्दील हो सकता है। बच्चे को यदि भूख न लगी हो तो जिद न करें। भूख लगने पर वह स्वयं ही भोजन करेगा।
कार्यशाला में डॉ राजन तिवारी, डॉ नितेश दुआ, डॉ रीमा छत्री भी उपस्थित थे। कार्यशाला का लाभ अपने बच्चों के साथ उपस्थित हुए माता पिता ने उठाया। पेरेन्ट्स ने स्वीकार किया कि यह कार्यशाला बेहद उपयोगी थी। इन जानकारियों के साथ वे अपने बच्चे की बेहतर देखभाल कर पाएंगे।