माइलस्टोन के बच्चों ने वार्षिकोत्सव में समाज से किए बुनियादी सवाल
भिलाई। बेटों को बंदूक-बल्ला तो बेटियों को तोहफे में गुड़िया और बर्तन देने का रिवाज है। बेटियों के जन्म पर मायूस और बेटों के जन्म पर खुशिया मनाता यह समाज लैंगिक असमानता के बीज बचपन में ही बो देता है। यह और बात है कि बेटियों की तरह बेटे भी समाज और परिवार की अपेक्षाओं के बोझ चले दब कर कराह रहे हैं। ऐसे में खुशहाल परिवारों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह मसला माइलस्टोन के बच्चों ने अपने 24वें वार्षिकोत्सव ‘जेस्ट-2019’ ने पूरी शद्दत के साथ उठाया। कक्षा 6वीं से 12वीं तक के बच्चों ने अकादमिक निर्देशक कुहू शुक्ला की इस अवधारणा को बेहद खूबसूरती से मंच पर उतारा। पार्श्वसंगीत बेंगलुरू के ‘ड्रीमबो’ के सदस्य मनु श्रीवास्तव, राकेश दत्त एवं अनिर्बान बसाक ने दी। बेहद विचलित करने वाली इस धुन के बीच बच्चों ने बताया कि हिन्दू मिथकों में भी नारी को ही शक्ति बताया गया है। अलग अलग समय में देवी दुर्गा, देवी काली ने अस्त्र शस्त्र उठाए और धरती को राक्षसों से मुक्त कराया। उधर नटराज श्रीशिव, श्रीगणेश, श्रीकृष्ण के माध्यम से ललित कलाओं का संदेश दिया गया।
बच्चों ने मंच पर विभिन्न दृश्यों को खूबसूरती से उकेरा। अपने अधिकारों की मांग करते युवक इंडिया गेट पर धरना देते हैं। आगे की कहानी यहां होते समाज से उनके वार्तालाप पर आधारित है। इसमें बताया जाता है कि असामनता के बीज तो बचपन से ही बो दिये जाते हैं। बेटी के जन्म पर जहां लोग मायूस होते हैं वहीं बेटे के जन्म की खुशियां मनाते हैं। बेटे को खेले के लिए बल्ला, बंदूक जैसे उपहार दिये जाते हैं तो बेटी को गुड़िया और रसोई का सामान। बेटी को जहां पराए घर में जाने के लिए तैयार किया जाता है वहीं बेटे की परवरिश अपने बुढ़ापे के पेंशन के रूप में। समाज और परिवार की इन अपेक्षाओं के नीचे इनका अवना वजूद मिट जाता है।
कार्यक्रम के एक दृश्य में दसभुजा स्त्री को परिवार के विभिन्न कार्यों की जिम्मेदारी उठाते दिखाया गया तो वहीं समानान्तर में पुरुष को परिवार की जिम्मेदारी, बच्चों की शिक्षा, माता-पिता की सेवा, बहनों के विवाह, बड़ा घर, बड़ी कार जैसे अपेक्षाओं पर खरा उतरने की जद्दोजहद करता दिखाय गया। गुड़िया से खेलती बेटी और क्रिकेट खेलते बेटों का दृश्य भी बेहद प्रभावी बन पड़ा था।
कार्यक्रम के माध्यम से समाज को यह संदेश देने का भी प्रयास किया गया कि न तो बेटों को रसोई में जाने या अन्य गृहकार्यों में रुचि लेने से रोका जाना चाहिए और न ही बेटियों को अपने करियर के प्रति ईमानदार होने से। जिस तरह बाहर के काम दोनों मिलकर कर सकते हैं उसी तरह घर के काम भी दोनों को मिलकर करने चाहिए। यही आदर्श स्थिति है और इसी से परिवार खुशहाल हो सकते हैं।
अंतिम दृश्य में एक समतामूलक स्वस्थ समाज के आवश्यक तत्वों को रेखांकित किया गया। प्रकाश संयोजन, रूपसज्जा एवं लयबद्ध समूह नृत्य अलौकिक अनुभव देने में सफल रहे।