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स्वरूपानंद कालेज में आधुनिक शिक्षा प्रणाली एवं गांधी दर्शन पर अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठि

Feb 4, 2020

भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में शिक्षा विभाग एवं जिला शिक्षा संस्थान एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) के संयुक्त तात्वावधान में आधुनिक शिक्षा प्रणाली एवं गांधी दर्शन विषय पर आधारित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का उद्घाटन हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरुणा पल्टा ने किया। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्य डॉ. डीके बघेल एवं लियो यांग (रियॉन ग्रुप, एमडी) विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने की।भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में शिक्षा विभाग एवं जिला शिक्षा संस्थान एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) के संयुक्त तात्वावधान में आधुनिक शिक्षा प्रणाली एवं गांधी दर्शन विषय पर आधारित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का उद्घाटन हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरुणा पल्टा ने किया। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्य डॉ. डीके बघेल एवं लियो यांग (रियॉन ग्रुप, एमडी) विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने की। भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय में शिक्षा विभाग एवं जिला शिक्षा संस्थान एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) के संयुक्त तात्वावधान में आधुनिक शिक्षा प्रणाली एवं गांधी दर्शन विषय पर आधारित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का उद्घाटन हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरुणा पल्टा ने किया। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्य डॉ. डीके बघेल एवं लियो यांग (रियॉन ग्रुप, एमडी) विशिष्ट अतिथि थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने की।कार्यक्रम संयोजक डॉ. स्वाति पाण्डेय ने कहा कि वर्तमान समय में गांधी चिंतन की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाने का प्रचलन है। आजादी के बाद जन्म लेने वाली युवा पीढ़ी को अहिंसा एक काल्पनिक और कमजोर अवधारणा प्रतीत होती है पर उनके जीवन मूल्य, शिक्षा का अमूल्य प्रायोगिक सिद्धान्त है, यही मूल्य आधारित श्क्षिा और जीवन ही संगोष्ठी का मुख्य प्रतिपाद्य है।
डॉ. हंसा शुक्ला ने कहा कि गांधी ने सत्य को जितना जाना है उतना शायद किसी और ने नहीं। सत्य को उन्होंने अपने जीवन में उतारा। अनेक कठिनाइयां आयीं पर उन्होंने सत्य और अहिंसा का रास्ता कभी नहीं छोड़ा। गांधीजी ने कहा था प्रारंभिक शिक्षा विद्यार्थियों को मातृभाषा में देना चाहिये साथ ही उन्हें बुनियादी, रोजगार मूलक शिक्षा देना चाहिये जिसमें उसमें व्यवसायिक कौशल विकसित हो सकें। यह आज भी प्रासंगिक है।
डॉ. अरूणा पल्टा ने कहा कि गांधी और आधुनिक शिक्षा के बारे में वे केवल इतना कहना चाहेंगी कि गांधी अतीत ही नहीं वर्तमान एवं भविष्य भी हैं। उनकी शिक्षा प्रणाली आज भी प्रासंगिक हैं। युवाओं को उनके विचार सटीक नहीं लगते पर जब जीवन का अनुभव होता है तब लगता है आज भी गांधी के विचार प्रासंगिक है। शिक्षा मातृभाषा में देने से विद्यार्थियों को ज्ञान अर्जित करने में आसानी होती है आज स्किल डेवलपमेंट की बात करते हैं पर गांधीजी ने यह बात वर्षों पहले कही थी। वे बुनियादी शिक्षा पर बल देते थे। वे योग के भी हिमायती थे। वे मानते थे कि दिल, दिमाग व शरीर को जोड़ने का मुख्य साधन योग है। गांधी नारी शिक्षा के समर्थक थे। उनका विचार था अगर महिला पढ़ी लिखी नहीं होगी तो वह अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पायेगी। वह अपना मुकाम भी हासिल नहीं कर पायेगी। आज इसी बात पर संशय की स्थिति बन जाती है कि बच्चों को क्या पढ़ाना है। आज शिक्षा को हम स्किल व ज्ञानार्जन से नहीं अपितु रोजगार व धनोपार्जन से जोड़ दिये हैं। नालेज व शिक्षा में अंतर होता है यह हमें समझना होगा।
चीन से आये विशिष्ट अतिथि एवं सत्र वक्ता लियो यांग ने कहा कि आज के समय में जब संपूर्ण विश्व में हिंसा व्याप्त है तब गांधी के विचारों व दार्शनिक आवधारणाओं का महत्व और भी बढ़ जाता है। गांधीजी के शिक्षा दर्शन में मन, शरीर एवं मस्तिष्क का सामंजस्य दिखाई देता है। गांधीजी अहिंसा व शांति के पूजारी थे आज हम उनके सिद्धांतों को अपना कर विश्व में शांति स्थापित कर सकते है।
डाइट के प्राचार्य डी. के. बघेल ने कहा कि गांधी व्यक्ति नहीं एक विचारधारा है जैसे – कबीर, सूर, राम, कृष्ण के विचार आज भी प्रासंगिक हैं वैसे ही गांधी के विचार भी आज तक प्रासंगिक है। प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. बघेल ने गांधी दर्शन और शिक्षा पर अपना वक्तव्य दिया।
प्रथम सत्र अध्यक्ष श्रीमती शिशिरकना भट्टाचार्य ने गांधी दर्शन पर अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा शिक्षा हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है। वे कहते थे कि अध्यात्मिक, पवित्रता एवं पढ़ाव के लिये दीक्षा आवश्यक है। प्रकृति का संरक्षण एवं सानिध्य में बालक का पूर्व एवं सर्वांगीण विकास संभव है।
द्वितीय सत्र वक्ता पत्रकार प्रियंका कौशल ने कहा कि पहले आप अध्ययन करें, मनन चिंतन करे फिर मुखर होकर बोलें ये आपका दायित्व है। सही बोले, सच्चा बोले देश के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करें। देश के जागरूक नागरिक बनें।
द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुये अधिवक्ता रचना यादव नायडू ने कहा कि गांधीजी भारत का विभाजन नहीं चाहते थे और विभाजन का आधार जो बनाया गया उससे वे असहमत थे। किन्तु विभाजन के बाद जो पलायन की स्थिति थी वह बहुत दुखद स्थिति थी। जिससे वे बहुत चितिंत थे विभाजन के बाद एक वे ही ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने दोनों देशों के लोगों को विश्वास दिलाया कि वे सुरक्षित रहेंगे।
इस अवसर पर आशीष दास द्वारा गांधीजी के द्वारा संपादित समाचार पत्रों की मूलप्रति प्रदर्शनी में लगायी गई। जिसे देख कर विद्यार्थी अभिभ्ूात हुये। कार्यक्रम में डॉ. शमा ए बेग, डॉ. शत्रुघ्न, आशीष दास ने अपना शोधपत्र पढ़ा।
मंच संचालन डॉ. नीलम गांधी विभागाध्यक्ष वाणिज्य व धन्यवाद ज्ञापन डॉ.पूनम शुक्ला स.प्रा. शिक्षा विभान ने किया। 70 से अधिक प्राध्यापकों व शोधार्थियों ने अपनी सहभागिता दर्ज की।

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