दुर्ग। तामस्कर विज्ञान महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापक डॉ सुचित्रा शर्मा ने कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में एलजीबीटी समुदाय की समस्याओं तथा उनकी जरूरतों पर अपने विचार रखे। तृतीय लिंग पर कोविड महामारी के प्रभाव पर केन्द्रित इस राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन शासकीय माता कर्मा गर्ल्स कालेज, महासमुन्द द्वारा किया गया था। वेबिनार को हरिशंकर गौर विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ दिवाकर सिंह राजपूत, लाइफ कोच रवि अरमानी एवं ट्रांसजेंडर वेलफेयर बोर्ड की सदस्य विद्या राजपूत ने भी संबोधित किया।
शासकीय वीवाय तामस्कर स्नातकोत्तर महाविद्यालय में समाजशास्त्र सहायक प्राध्यापक डॉ सुचित्रा शर्मा ने एलजीबीटीक्यू समुदाय के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि यह वह समुदाय है जो सामान्य स्त्री पुरुष की परिभाषा में फिट नहीं बैठते। इनमें लेस्बियन्स हैं जिनमें दो स्त्रियों के बीच आसक्ति हो जाती है। कभी-कभी इनमें से एक स्त्री पुरुषोचित हाव भाव का प्रदर्शन करती है। जब ऐसा ही संबंध दो पुरुषों के बीच होता है तो उसे गे कहा जाता है। ऐसे लोग जो स्त्री तथा पुरुष दोनों के प्रति तीव्र यौनाकर्षण महसूस करते हैं उन्हें बाइसेक्सुअल कहा जाता है। ट्रांसजेन्डर उन लोगों को कहते हैं जो जन्म से जिस लिंग से होते हैं आगे जाकर उसके ठीक विपरीत हरकतें करने लगते हैं। सामान्य से भिन्न यौनाकर्षण रखने वाले सभी लोगों को क्वीयर कहा जाता है।
डॉ सुचित्रा ने रामायण एवं महाभारत काल का उल्लेख करते हुए कहा कि यह कोई आज की समस्या नहीं है। समय के साथ इनकी समाज में स्थिति काफी बदल गई है। शिखंडी, वृहन्नला आदि का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि उस कालखण्ड में ये लोग साधारण समाज का ही हिस्सा थे। पर आगे चलकर इनकी स्थिति बिगड़ती चली गई। एक समय ऐसा भी आया जब तृतीय लिंग के लोगों का एक ही काम रह गया, शुभ अवसरों पर नाच-गाकर पैसे मांगना और अपना गुजारा करना। अब जाकर इन लोगों ने भी स्वतंत्र रूप से अपने करियर पर फोकस करना शुरू किया है। इनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई कानून बने हैं। उन्होंने ऐसी एलजीबीटीक्यू समुदाय के ऐसे दर्जनों लोगों का उदाहरण दिया जिन्होंने समान अवसर मिलने पर अपना अलग मुकाम बनाया है।
उन्होंने कहा कि हालांकि लक्षमीनारायण किन्नर, मधु, साधना, जोईता मंडल जज, गंगा कुमारी जैसे इस समुदाय से जुड़े कुछ लोगों ने अपनी अलग पहचान बना ली है तथापि बड़ी संख्या में इस समुदाय के लोग आज भी उपेक्षित हैं। कोविड-19 के संकट का इनके जीवन पर भी गहरा असर पड़ा है। चूंकि सभी सार्वजनिक कार्यक्रम बंद हैं, इसलिए इनके सामने आजीविका की समस्या उत्पन्न हो गई है। उन्होंने इनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए कुछ सुझाव भी दिए जिसमें भोजन, आवास, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षा एवं सुनिश्चितता के उपाय किया जाना शामिल है।