भिलाई। भिलाई की पहली पीढ़ी के सदस्य एवं सहकारिता पुरुष श्री राघवेन्द्र नारायण पाल का आज देहावसान हो गया। वे पिछले कुछ दिनों से जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र में चिकित्साधीन थे। वे सीए प्रदीप पाल, डॉ राजीव पाल, इंजीनियर संदीप कुमार पाल एवं संदीप कुमार पाल के पिता थे। भिलाई इस्पात संयंत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सहकारिता के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें मुख्यमंत्री सहकारिता पुरुष का खिताब दिया गया था।श्री पाल का जन्म 01 जनवरी, 1938 को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के ग्राम सिक्तहा में हुआ। आरंभ से ही मेधावी राघवेन्द्र नारायण बचपन से ही बेहद संवेदनशील थे और समस्याओं को पहचानने एवं उनका हल ढूंढने में उन्हें महारत हासिल थी। 1959 में भिलाई इस्पात संयंत्र से जुड़ने के बाद उनके इन्हीं गुणों ने केवल उन्हें कार्यस्थल पर लोकप्रिय बना दिया बल्कि उनकी सामाजिक सक्रियता भी अपना असर दिखाने लगी। राघवेन्द्र नारायण पाल भिलाई इस्पात संयंत्र की पहली पीढ़ी के सदस्य थे।
उन दिनों भिलाई शहर धीरे-धीरे आकार ले रहा था। अधिकांश साथी युवा थे। भविष्य की चिंता जैसी कोई बात तब तक उन्हें छूकर नहीं गई थी। पर युवा टेक्नोक्रैट राघवेन्द्र नारायण पाल इसके अपवाद थे। उन्हें इन युवाओं की भविष्य की जरूरतों का अंदाजा था। छोटी छोटी रकम के लिए संयंत्र कर्मियों को होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए उन्होंने सहकारिता को अपना हथियार बनाया। उनका मानना था कि यदि सब मिलकर कुछ सोचें तो बड़े से बड़ा काम किया जा सकता है। वे इस्पात कर्मचारी क्रेडिट कोआपरेटिव सोसायटी के संस्थापक सचिव तथा भिलाई नागरिक सहकारी बैंक के संस्थापक अध्यक्ष रहे। 1980 के दशक में जब सेवानिवृत्ति दस्तक देने लगी तो स्वयं के आवास की समस्या भी उठ खड़ी हुई। उन्होंने इसका भी हल ढूंढ निकाला और स्मृति गृह निर्माण सहकारी संस्था की नींव रखी। वे इसके संस्थापक अध्यक्ष थे। भिलाई टाउनशिप की सुविधाओं से प्रेरित यह शहर की एकमात्र सुव्यवस्थित कालोनी है।
वे क्षत्रिय कल्याण सभा के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। इसका मूल उद्देश्य समाज की नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से परिचित कराने के साथ साथ वैवाहिक संबंधों को सहज बनाने के लिए एक मंच प्रदान करना रहा। यह भिलाई के सबसे पुराने सामाजिक संगठनों में से एक है।