दुर्ग। फंगस भी आज महामारी की तरह फैल रहा है। 70 फीसद आबादी इसकी चपेट में है। मानसून में इसका खतरा और बढ़ जाता है। इसका इलाज आसान नहीं है। ठीक होने के बाद भी एक माह तक दवा का सेवन जारी रखना चाहिए। उक्त जानकारी प्रसिद्ध चर्मरोग विशेषज्ञ डॉ राजेन्द्र एम टुटेजा ने बुधवार को हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग द्वारा आयोजित “मीट द डॉक्टर” वेबिनार में दी। उन्होंने जोर देकर कहा कि बेटनासोल टैबलेट का उपयोग बिना डाक्टरी सलाह के न करें। इसके बाहद खतरनाक साइड इफेक्ट्स हैं।कुलपति डॉ अरुणा पल्टा की पहल “मीट द डॉक्टर” श्रृंखला का यह आठवा संस्करण था। डॉ टुटेजा ने कहा कि मानसून में धूप के अभाव में त्वचा एवं वस्त्रों को पराबैंगनी किरणों का आवश्यक डोज नहीं मिल पाता। इसके चलते बैक्टीरिया और फंगस का प्रकोप बढ़ जाता है। मानसून में इम्युनिटी भी थोड़ी मंद पड़ जाती है जिसका लाभ इन्हें मिलता है। नमी के कारण बैक्टीरिया वस्त्रों, बिस्तर और शरीर के संधिस्थलों में पनपने लगते हैं। बच्चों से लेकर बड़ों तक यह सभी को प्रभावित करता है। इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज वाले मरीजों को यह ज्यादा प्रभावित करते हैं। इसके चलते त्वचा खुश्क हो जाती है और खुजली होती है। इससे बचने के लिए त्वचा को नम रखें। त्वचा और नाखूनों पर नारियल का तेल लगाएं। पर्याप्त पानी पियें, फलों का सेवन करें। उन्होंने बताया कि बारिश के समय खाने की दवाई और लगाने की दवाई दोनों जरूरी हो जाती है।
बारिश के दिनों में उमस बढ़ जाती है और पसीना खूब आता है। इससे कांख, जांघों के जोड़, स्तनों के बीच जहां जहां त्वचा त्वचा से चिपकती है, वहां फंगस का खतरा ज्यादा होता है। नमी, टाइट फिटिंग वाले कपड़े इस खतरे को बढ़ा देते हैं। बारिश के दिनों में जांघिये की बजाए बरमूडा टाइप अंडरगारमेन्ट्स का प्रयोग करें। हमेशा सूती कपड़े पहनें, जो ढीले ढाले हों ताकि अंगों को हवा लगे। इससे संधि स्थल छिलने से बचा रहेगा। कपड़े साथ धुलने पर, एक ही तौलिये, बिस्तर, चादर का इस्तेमाल करने पर यह घर वालों में भी फैल जाता है। फंगस इतनी आसानी से नहीं जाता है। यह भी एक एपिडेमिक की तरह फैला हुआ है। 70 फीसदी लोगों को फंगस की परेशानी। पूरा ठीक होने के बाद भी एक महीने तक दवाई खाएं।
सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि 40 साल के बाद त्वचा इसलिए झूल जाती है क्योंकि इन 40 सालों में हमने उसपर केवल अत्याचार किया होता है। हम अपने भोजन में त्वचा की जरूरतों का ख्याल नहीं रखते। उसे धूल-धूप से बचाने की खास कोशिशें नहीं होतीं। ऊपर से तरह तरह के रसायनों का उपयोग करते हैं। इसलिए त्वचा समय से पहले बूढ़ी हो जाती है। डैंड्रफ से जुड़े एक सवाल पर उन्होंने कहा कि कोई भी शैम्पू इसका स्थायी समाधान नहीं है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसका प्रबंधन जरूरी होता है। मेहंदी लगाने से फायदा होता है।
बारिश के दिनों में आर्टिफिशल जूलरी का उपयोग नहीं करने की सलाह देते हुए डॉ टुटेजा ने कहा कि इसका निकल क्रोम एंटीजन के रूप में त्वचा में प्रवेश कर जाता है और परेशानी पैदा करता है।
फटी एड़ियों की चर्चा करते हुए उन्होंने पैरों को बार-बार पानी लगाने से मना किया। उन्होंने कहा कि पैरों को भिगोकर उन्हें घिसकर, छीलकर चिकना करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह उलटे नुकसान ही करता है। त्वचा तक नमी शरीर के भीतर से आनी चाहिए। खान-पान का ध्यान रखें, नंगे पांव फर्श पर न चलें।
इससे पहले हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ अरुणा पल्टा ने स्वागत भाषण देते हुए खान-पान को लेकर अपनी बात रखी। वे एक प्रख्यात न्यूट्रिशनिस्ट भी हैं। उन्होंने खूबसूरत कंचन सी दमकती काया के लिए फल और सब्जियों का सही अनुपात में सेवन करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि गाजर, संतरा, टमाटर, सभी तरह के बेरीज, हरी पत्तेदार सब्जियां, बीन्स तथा अऩ्य बीज वाली सब्जियां, लेन्टिल के अलावा मछली, मक्खन, दूध और दही का सेवन करने से हमारी सेहत अच्छी बनी रहती है। शरीर में नमी का स्तर ठीक रहता है और अच्छी सेहत हमारी अच्छी त्वचा और चेहरे की निखार में झलकती है।
ऑनलाइन आयोजित इस श्रृंखला का संचालन करते हुए विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने डॉ टुटेजा के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि आज का यह सत्र सभी के लिए बेहद उपयोगी रहा है और अनेक भ्रांतियां टूटी हैं। उन्होंने कुलपति डॉ अरुणा पल्टा के प्रति भी आभार व्यक्त किया जिनकी सकारात्मक सोच के कारण “मीट द डॉक्टर” श्रृंखला का सफल आयोजन हुआ। उन्होंने प्रतिभागियों का भी आभार माना जिन्होंने अपनी सक्रिय भागीदारी से इसे जीवंत बना दिया।