भिलाई। इन दिनों सोशल मीडिया पर घुटने में ग्रीस डालने के बहुत सारे वीडियो चल रहे हैं। बताया जा रहा है कि घुटनों में ग्रीस डलवाने के कुछ ही दिन बाद लोग ठीक से चलने फिरने लग जाते हैं। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ राहुल ठाकुर ने इसके बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा कि यह कोई जादुई दवा नहीं है। इसे लगाने के लिए भी विशेषज्ञता की जरूरत पड़ती है और सबको एक जैसा लाभ नहीं होता।
डॉ राहुल ठाकुर ने बताया कि 50 की उम्र के बाद बड़ी संख्या में लोगों को घुटने की तकलीफ घेर लेती है। इसके कई कारण हो सकते हैं पर इसमें सबसे सामान्य कारण आर्थराइटिस है। जोड़ों के संचालन को सुचारू बनाने एक गद्दी नुमा संरचना होती है जिसमें एक तरल भरा हुआ होता है। यह जोड़ों के संचालन के साथ ही शॉक एब्जार्बर का भी काम करती हैं। उम्र के साथ यह तरल सूखने लगता है। इससे हड्डियां आपस में रगड़ खाने लगती हैं। जोड़ों को मोड़ना या उसपर वजन डालना मुश्किल हो जाता है। ऐसे जोड़ों की जांच के बाद उनकी ग्रेडिंग की जाती है और अलग-अलग ट्रीटमेंट प्लान किया जाता है।
डॉ ठाकुर ने बताया कि यदि हम घुटनों को हो चुके नुकसान को चार ग्रेड में बांटें तो इसमें से पहली स्थिति में घुटनों में ग्रीस डाली जा सकती है। इसे विस्कोसप्लीमेंटेशन कहते हैं। जोड़ों की थैली में साइनोवियल फ्लूइड होता है। इसमें एक तत्व हायालुरोनिक एसिड होता है जो चिकनाई प्रदान करता है। वैसे तो इसे शरीर खुद बनाता है पर बुढ़ापे में इसे इंजेक्शन द्वारा सप्लिमेंट किया जा सकता है। सेकंड ग्रेड के नुकसान में भी यह काम कर सकता है पर तीसरे या चौथे ग्रेड में इसका कोई लाभ नहीं होता।
उन्होंने बताया कि खराब घुटनों की ग्रेडिंग और हायूलुरॉनिक एसिड इंजेक्शन किसी विशेषज्ञ की देखरेख में किसी सुविधा सम्पन्न अस्पताल में ही लगवाना चाहिए। जरा सी गलती आपको मुसीबत में डाल सकती है। दर्द ज्यादा होने पर स्टेरोईड का इंजेक्शन भी दिया जा सकता है लेकिन उसक़े पेहले पेशंट की अन्य बीमारी मधुमेह, आदि की भी जानकारी लेना अवस्यक है जिससे उस बीमारी के सवम्भावित ख़तरों से बचा जा सके। इंजेक्शन से सूजन और दर्द में राहत मिलती है। इसका असर थोड़े लंबे समय तक चलता है। लेकिन यह कोई पूर्ण इलाज नहीं है। इस से कुछ समय के लिए राहत मिल सकती है। जोड़ों में डैमेज ज्यादा हो तो उन्हें बदल देना ही अंतिम विकल्प होता है। पर किस मरीज के लिए क्या सबसे अच्छा है इसका फैसला कोई विशेषज्ञ चिकित्सक पर ही छोड़ना चाहिए।