भिलाई। गिलोय और डिटॉक्स की नई तकनीक ने लोगों का जितना भला किया है, उससे कहीं अधिक नुकसान कर रहा है। गिलोय का प्रतिदिन सेवन करने वाले लोगों पर किए गए एक शोध में इनमें से 67.4 प्रतिशत लोगों में लिवर एंजाइम बढ़ा हुआ मिला। भारत में किया गया यह शोध अमेरिकी शोध पत्रिका एएएसएलडी में प्रकाशित हुआ है। उक्त जानकारी गैस्ट्रो विशेषज्ञ डॉ आशीष कुमार देवांगन ने वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे के अवसर पर दी।
हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ आशीष कुमार देवांगन ने बताया कि पिछले कुछ समय से हेपेटाइटिस के मरीजों में तेजी से वृद्धि हुई है। इसका एक कारण है कोविड काल में लोगों का काढ़ा के प्रति बढ़ा रुझान। इस दौरान गिलोय का जूस पीने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई। अब लिवर के मरीजों की संख्या में उछाल आ गया है। अधिकांश ऐसे मरीजों की जांच करने पर लिवर एंजाइम बढ़ा हुआ आ रहा है। कुछ मरीजों में तो गिलोय का सेवन बंद करने के बाद टेस्ट नार्मल आ जाता है पर जिनका लिवर डैमेज हो गया है, उन्हें सामान्य स्थिति में लाना काफी मुश्किल होता है। हेपेटाइटिस के ऐसे मामले उनके पास प्रति सप्ताह 4 से 5 तक आ रहे हैं।
उन्होंने बताया कि लिवर के सूजन को हेपेटाइटिस कहते हैं। यह हेपेटाइटिस ए, बी, सी और ई वायरस के संक्रमण से हो सकता है। किसी दवा के साइड इफेक्ट या शराब के अत्यधिक सेवन से भी हो सकता है। कुछ रसायनों का संतुलन बिगड़ने से भी लिवर में सूजन आ सकती है। अच्छी बात यह है कि हेपेटाइटिस ‘ए’ और ‘बी’ का टीका आ चुका है। जिन्हें यह टीका नहीं लगा है, खास कर वे लोग जिनकी उम्र 40 से ऊपर हो चुकी है, उन्हें यह टीका लगवा लेना चाहिए।
डॉ देवांगन ने बताया कि वेट लॉस प्रोग्राम के तहत भी लोग डिटॉक्स का जमकर उपयोग कर रहे हैं। एसिडिटी की रामबाण दवा के नाम पर भी ये दवाइयां खूब बिक रही हैं। इन दवाइयों का कुछ दिन तक तो फायदा दिखता है पर जल्द ही यह लिवर को डैमेज करने लगता है। देश में दवाओं की ओवर द काउंटर बिक्री पर कोई रोक टोक नहीं है। इसलिए होमियोपैथी और आयुर्वेदिक दवाइयां भी अब आसानी से मिल जाती हैं। लोग इनका बेतहाशा उपयोग करने लगते हैं जबकि इन दवाइयों का भी उपयोग केवल कुशल चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।