परेड का नाम सुनते ही आंखों के आगे देश के गणतंत्र दिवस परेड का दृश्य घूम जाता है. इसमें देश की सेना अपने दम-खम, अपने सजीले बांकपन का प्रदर्शन करती है. पूरा देश इस परेड को सलामी देता है और ये जवान तिरंगे को सलामी देते हैं. अन्यान्य विधाओं में इस तरह के परेड का चलन रहा है. कभी अखाड़ा पार्टियां भी इस तरह की परेड निकालकर अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करती थी. शस्त्र पूजन किया जाता था. तीन-चार दशक पहले तक भिलाई की सड़कों से होकर भी अखाड़ा पार्टियों को लोगों ने गुजरते देखा है. धार्मिक आयोजनों पर निकलने वाले ऐसे परेडों को हम झांकी कहते हैं. भिलाई की प्रसिद्ध शिवजी की बारात भी लोगों का आकर्षण बनते रहे हैं. इसमें भी भूत-प्रेत, देवी-देवता और वन्यप्राणी का स्वांग भरे लोग नजर आते हैं. छत्तीसगढ़ के खदान क्षेत्र मनेन्द्रगढ़ में इसका आयोजन 30 साल पहले शुरू हुआ और फिर कुछ साल पहले चिरमिरी में शुरू हुआ. भूत-पिशाच, वन्य प्राणी, जोकर, भगवान का स्वांग भरे युवक सड़कों पर उतरकर लोगों को विभिन्न प्रकार के संदेश देते हैं. इनमें पर्यावरण बचाने, वनों की रक्षा करने, वन्यप्राणियों की फिक्र करने, नशाखोरी से दूर रहने, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, मोबाइल फोन और मोबाइल गेम्स से दूरी बनाने जैसे विषय लिये जाते हैं.
इस आयोजन में छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश के कलाकार हिस्सा लेते हैं. पड़ोसी राज्य ओडीशा की बात करें तो शीतल षष्ठी पर्व पर वहां देश भर से वृहन्नलाएं जुटती हैं. ग्रीष्म की तपती दुपहरी में वे भूखी प्यासी नंगे पाव अपनी कला का प्रदर्शन करती हैं.
दुनिया की बात करें तो यूरोप में 17वीं शताब्दी में कार्निवाल का आयोजन प्रारंभ हुआ. 19वीं शताब्दी में यह अमेरिका जा पहुंचा. अपने देश में गोवा का कार्निवाल काफी मशहूर है. कार्निवाल, झांकी या परेड का आयोजन लोगों को जोड़ता है. हजारों की संख्या में लोग यहां अपने-अपने तरीके से अलग-अलग संदेश देने बहुरूपिया भेष में सड़कों पर उतरते हैं. इन्हें देखने के लिए भी लाखों लोग सड़कों के किनारे जुटते हैं. यह एक बढ़िया जरिया है लोगों तक अपने संदेशे पहुंचाने का. कार्निवाल और झांकियां आदिकाल से लोकसंस्कृति का हिस्सा रहे हैं. वक्त के साथ इनपर धूल की परतें जमा हो गई थी जिसे अब युवा स्वयं हटा रहे हैं. यह एक ऐसा मंच है जहां से बड़ी से बड़ी बात बिना किसी लागलपेट के कही जा सकती है. आज जब देश में धर्म और आस्था के विवाद खड़े हो रहे हैं या खड़े किये जा रहे हैं, यह विधा और भी प्रासंगिक हो जाती है. सनातन की अवधारणा “वसुधैव कुटुम्बकम” की है. कहा गया है कि “उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम”. अर्थात चित्त उदार हो तो पूरी दुनिया एक परिवार की तरह है. 12 जनवरी को देश स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाएगा. शिकागो की धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों…”. एक यूरोपीय महिला को उन्होंने मां तो दूसरी को कन्या के रूप में स्वीकार किया था. और हम हिन्दू, मुसलमान, आदिवासी और ईसाई के फेर में पड़े हैं.