रायपुर। सरगुजा के “जीराफूल” के बाद अब धमतरी के “नगरी दुबराज” को भी जीओ टैग मिल गया है. छोटे दाने के इस सुगंधित चावल की उद्गम सिहावा पर्वत पर श्रृंगी ऋषि के आश्रम को माना जाता है. यह वही आश्रम है जहां प्रभु श्रीराम के पिता राजा दशरथ ने संतान की कामना करते हुए पुत्रेष्टि यज्ञ किया था. छत्तीसगढ़ श्रीराम का ननिहाल है और उनका जन्म सूत्र सिहावा के श्रृंगी ऋषि से जुड़ा है.
ज्योग्राफिकल इंडिकेशन GI Tag के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और राज्य सरकार काफी समय से प्रयासरत था. इससे पहले 2019 में केवल सरगुजा जिले के “जीराफूल” चावल को जीआई टैग प्रदान किया गया था.
दुबराज में कई तरह की खूबियां हैं. दुबराज को नगरी सिहावा के लोगों ने सहेजकर रखा है. अब इसके उत्पादन को लेकर उनके अधिकार सुरक्षित हो जाएंगे. नगरी दुबराज के नाम पर इसे उत्पन्न करने से लेकर बेचने के सभी अधिकार अब सुरक्षित हो गए हैं. धमतरी के नगरी दुबराज उत्पादक मां दुर्गा स्वयं सहायता समूह को नगरी दुबराज हेतु जीआई टैग प्रदान किया गया है.
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने नगरी दुबराज को जी.आई. टैग मिलने पर कृषक उत्पादक समूह को बधाई और शुभकानाएं दी हैं. दुबराज छत्तीसगढ़ का एक सुगंधित चावल है. इसके छोटे दाने पकाने पर नरम रहते हैं. ये एक देशी किस्म है. पहले इसके पौधे छह फुट तक होती थी और धान पकने में 150 दिन लगते थे. कृषि वैज्ञानिकों ने इसमें सुधार कर इसका उत्पादन भी बढ़ा दिया है.
36गढ़ में चावल की 33 किस्में
छत्तीसगढ़ में सुगंधित चावल की 33 किस्में हैं. इनमें बादशाह भोग- बस्तर, चिंदी कपूर – रायगढ़, चिरना खाई-बस्तर, दुबराज-रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, धमतरी, बिलासपुर, महासमुंद, जांजगीर, कोरबा, कांकेर, गंगाप्रसाद-राजनांदगांव, कपूरसार-रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, कुब्रीमोहर-रायपुर, दुर्ग, लोक्तीमांची-बस्तर, मेखराभुंडा-दुर्ग, समोदचीनी-बिलासपुर, सरगुजा, शक्कर चीनी-सरगुजा, तुलसीमित्र-रायगढ़, जीराफूल-सरगुजा प्रमख हैं.
श्रृंगी ऋषि आश्रम के दुबराज को मिला जीआई टैग, श्रीराम से संबंध
