छत्तीसगढ़ में अब दाढ़ी मूंछ की राजनीति शुरू हो गई है. भाजपा नेता नंद कुमार साय ने कहा है कि जब तक प्रदेश से कांग्रेस की सरकार नहीं हटती वे बाल नहीं कटवाएंगे. वैसे भी बड़े बाल साय की पहचान बन चुके हैं. इसके जवाब में प्रदेश के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने कहा है कि यदि कांग्रेस चुनाव हार जाती है तो वे अपनी मूंछ मुंडवा लेंगे. इससे पहले 20 साल से मनेन्द्रगढ़ को जिला बनाने की मांग कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता रमाशंकर ने दाढ़ी नहीं बनवाने की कसम खाई थी. मनेन्द्रगढ़ के जिला बनने के बाद ही उन्होंने दो साल पहले अपनी दाढ़ी मुंडवाई. दाढ़ी-मूंछ और केश इन दिनों भारतीय राजनीति में अपना अलग जलवा बिखेर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में 18 दाढ़ी मूंछ वालों को मंत्रिमंडल में मौका दिया. 57 मंत्रियों की इस फौज में केवल 6 महिलाएं थीं. अब मोदी स्वयं भी एक शानदार दाढ़ी के मालिक हैं. आजाद भारत ने अब तक 14 पुरुष प्रधानमंत्री देखे हैं. इनमें से इंद्रकुमार गुजराल और चंद्रशेखर दाढ़ी रखते थे. वहीं मनमोहन सिंह सिख थे. भारतीय क्रिकेट में भी माचो लुक वाले क्रिकेटर्स की संख्या बढ़ती जा रही है. कुछ लोगों को दाढ़ी रौबदार शख्सियत देती है वहीं अधिकांश लोग दाढ़ी वालों को साधु संत के रूप में देखते हैं. प्रधानमंत्री मोदी पर ये दोनों बातें फिट बैठती हैं. इधर कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी ‘उस्तरा छोड़ो-भारत जोड़ो’ के बाद से दाढ़ी में ही नजर आ रहे हैं. दाढ़ी ने उनके व्यक्तित्व में थोड़ा वजन भी पैदा किया है. वैश्विक राजनीति की बात करें तो कई बड़े नेता अपनी दाढ़ी के कारण ही पहचाने जाते थे. 1860 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए अब्राहम लिंकन बेहद दुबले पतले थे. एक बच्ची ने उन्हें चिट्ठी लिखकर दाढ़ी रखने की सलाह दी ताकि उनका व्यक्तित्व भरा-भरा सा लगे. उन्होंने दाढ़ी रख ली और आज दुनिया उनको उनके दाढ़ी के कारण ही तस्वीरों में पहचान पाती है. रूस के नेता व्लादिमीर इलिच लेनिन भी दाढ़ी रखते थे. जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में दाढ़ी रख ली थी. अफगानिस्तान में तालिबान का हुक्म है कि मर्द लंबी दाढ़ी रखें. दाढ़ी इतनी लंबी होनी चाहिए कि मुट्ठी में पकड़ने के बाद भी नीचे से नजर आए. चन्द्रशेखर के बारे में यह कहा जाता है कि जिस होस्टल में रहते थे वहां रोज सुबह नाई आता था. एक बार वे अपने दोस्त के साथ किसी शहर में गए और होटल में ठहरे. वहां उन्हें नाई की दुकान नहीं मिली. दो चार दिन में उनकी दाढ़ी बढ़ गई तो लोगों ने उनके नए लुक की तारीफ की. इसके बाद उन्होंने कभी दाढ़ी नहीं मुंडवाई. वैसे दाढ़ी समाजवादियों की भी पहचान रही है. कहा जाता है कि समाजवादी बेकार के कामों में अपना वक्त बर्बाद नहीं करते. तो क्या देश गुपचुप समाजवाद की ओर लौट रहा है?