36-24-36 का फिगर बनाने के लिए लोग जिम तो जाते ही थे, अब योगा भी करने लगे हैं. पर योग इस दिशा में उनकी ज्यादा मदद नहीं कर सकता. योग स्वस्थ रहने की विधा है जिसका फैशन इंडस्ट्री से कोई लेना देना नहीं है. जशपुर में अब गर्भवती महिलाओं को पूरे 9 महीने तक योगाभ्यास कराया जाएगा. इसका उद्देश्य प्रसव से जुड़ी मांसपेशियों को बल देना, सांस की क्षमता बढ़ाना, गर्भावस्था के दौरान होने वाली चिंता और तनाव को कम करना तथा गर्भवती की पर्याप्त निद्रा को सुनिश्चित करना है. यह एक पायलट प्रोजेक्ट है जिसके सफल होने पर अन्य स्थानों पर भी इसकी शुरुआत की जाएगी. इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सिजेरियन से होने वाले बच्चों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. इसके साथ ही समय पूर्व प्रसव के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं. यह ठीक है कि अब गर्भावस्था या प्रसव के दौरान होने वाली जच्चा-बच्चा की मौतें पहले के मुकाबले काफी कम हो गई हैं पर कॉम्पलिकेटेड प्रेगनेन्सी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इसके साथ ही बढ़ रहे हैं बच्चों में जन्मजात आंशिक विकलांगता के मामले. इसके लिए लाइफस्टाइल काफी हद तक जिम्मेदार है. फिटनेस अब शारीरिक मापजोख पर जा टिका है. फिगर का मतलब 36-24-36 हो गया है. लोग फिटनेस का यह स्तर पाने के लिए पागल हुए जा रहे हैं. फैशन इंडस्ट्री की इस मांग पर सभी को खरा उतरना है, यह जरूरी भी नहीं है. स्वस्थ एवं सामान्य प्रसव में इनकी कोई भूमिका भी नहीं है. हम चाहे कितना भी आधुनिक हो जाएं, एक उम्र के बाद विवाह और विवाह के बाद अपनी संतान की चाह हो ही जाती है. अपनी संतान पाने के लिए शारीरिक रूप से सक्षम होना भी जरूरी है. स्त्रियों के लिए यह क्षमता और भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि 39 से 40 सप्ताह तक उसे बच्चे को अपनी कोख में ढोना है. इसके लिए मांसपेशियों के साथ ही कूल्हों में पर्याप्त लचीलापन होना भी जरूरी है. जब देश में झाड़ू-पोंछा-बर्तन-रसोई का काम नीचे बैठकर किया जाता था, तब तक कंधों, कूल्हों, जांघों और घुटनों की वर्जिश अपने आप हो जाती थी. स्त्री हो या पुरुष दोनों ही जमीन पर बैठकर काम करते थे, पालथी मारकर भोजन करते थे. पर अब जबकि लगभग सभी काम खड़े-खड़े किये जाते हैं, भोजन से लेकर पाखाना तक कुर्सियों पर बैठकर किया जाता है तब जोड़ों का लचीलापन स्वयमेव की खत्म हो रहा है. इसी लचीलेपन को अब योगा के द्वारा वापस पाने की जुगत लगाई जा रही है. पर इस उपाय से किसी बड़े नतीजे के आने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. इसकी शुरुआत काफी पहले हो जानी चाहिए. स्कूली शिक्षा में ग्रामीण खेलों को शामिल करना इसका एक अच्छा उपाय हो सकता है. फुगड़ी, बिल्लस और बैठकर खेले जाने वाले खेलों को भी शामिल किया जाना चाहिए. योग शिक्षा महाविद्यालय स्तर से ही अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए. योगाभ्यास के नियमित पीरियड होने चाहिए. विद्यार्थियों के साथ शारीरिक परिवर्तनों को लेकर खुलकर बातें होनी चाहिए. अब जबकि घर में भाभी, जिठानी, सास जैसे किरदार नहीं होते, यह भूमिका किसी को तो लेनी ही होगी. तैयारी अच्छी होगी तो दहशत भी कम होगी.
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