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बहुविध अनुभव और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव

Sep 16, 2023
Literary discussion on Ramakant Shrivastava

दुर्ग। छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी और साईंस कालेज दुर्ग हिन्दी विभाग द्वारा वरिष्ठ कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव पर केन्द्रित दो दिवसीय साहित्यिक आयोजन के दूसरे दिन कथाकार के विविध पक्षों पर वरिष्ठ साहित्यकारों, उनके समकालीन रचनाकारों और सजग पाठकों ने गंभीरता से चर्चा की।
रमाकांत श्रीवास्तव का कथा संसार और किषोर मन का यथार्थ पर विषय प्रवर्तन करते हुए उषा आठले ने कहा कि रमाकांत ने संवेदनाओं के साथ मनुष्य और प्रकृति के रिष्ते को महीनता से चित्रात्मक शैली में उभारा है। उनके पास अद्भुत कल्पना शक्ति है। बच्चू चाचा के किस्से और चाचा का कुत्ता संकलन में हम पीछे छूट गयी संस्कृति को देखते है।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुये राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि एक लेखक को हमेषा यह ध्यान रखना चाहिये कि वह क्यों लिख रहा है और किसके लिए लिख रहा है। किशोरों पर केन्द्रित रमाकांत की किताबे लंबी संस्मरणात्मक किताबें है, जिनके माध्यम से लेखक ने सांस्कृतिक बदलाव का जिक्र किया है। रमाकांत की संस्मरणों से हमें कभी कभी अपने से छुट गयी दुनिया को और उसके पास तक जाकर उसे पहचानने का सुख मिलता है। राजीव कुमार शुक्ल ने कहा कि सत्तायें हमें क्या पढ़ने को प्रेरित कर रही है घ् यह हमें सोचना चाहिये। जीवन में एक बेहतर मनुष्य बनने की प्रक्रिया बच्चों में किषोर साहित्य से ही मिलती है। उन्होंने आज के युवाओं को किस तरह पढ़ना और सोचना चाहिये इस पर प्रकाष डाला। अच्छा साहित्य एक दोस्त की तरह होता है। उन्होंने कहा कि रमाकांत की भाषा हमें प्रसन्न करती है। उनकी शैली जीवन सेे लगाव की, उम्मीद की, आषा की और आष्वस्ति की शैली है।
कथेतर साहित्य का वैभव पर केन्द्रित सत्र में उनके साथ लंबे समय तक खैरागढ़ में रहे, जीवन यदु ने कहा कि बच्चों पर लिखने का अर्थ देष को संस्कार देना है। छत्तीसगढ़ी लोक गाथा रमाकांत की अनूठी उपलब्धि है। उन्होंने रमाकांत के व्यक्तित्व के विविध पक्षों पर प्रकाष डाला और उनसे जुड़े संस्मरणों के माध्यम से लेखक की रचना प्रक्रिया का जिक्र किया। वरिष्ठ आलोचक सियाराम शर्मा ने कहा कि स्मृति मनुष्य का अविभाज्य हिस्सा है। मनुष्य अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को साथ साथ जीता है। हम जिन लोगों के साथ जीते है, उनसे प्रेम का, विरोध का और बहस का संबंध होता है। रमाकांत के संस्मरणों में यही उभरता है। उन्होंने कहा कि आज ज्ञान के बीच अंतरक्रिया नही है, यह आज का बहुत बड़ा संकट है। रमाकांत के संस्मरणों में उनके समकालीन काषीनाथ सिंह, स्वयं प्रकाष, नागार्जुन, महावीर अग्रवाल, कमला प्रसाद, ललित सुरजन आदि सहधर्मियों का संस्मरण है। रमाकांत के संस्मरण एक एलबम की तरह है, जिसमें कई तरह के चित्र हंै। वे अपने संस्मरणों में परिचय और भाव भंगिमाओं से पात्र की छवि उभारकर पूरी तरह मूर्त कर देते हंै।
वरिष्ठ कवि एवं समीक्षक बसंत त्रिपाठी ने उनके निबंधों पर केन्द्रित वक्तव्य में कहा कि एक लेखक जिस विधा में जो लिख रहा होता है, उस समय वह मूलतः वही होता है। हमें उनके निबंधों मंे अपने समय, समाज के प्रष्नों की आकुल चिंतायें दिखायी देती है। सिनेमा पर उनके सबसे ज्यादा निबंध है। रमाकांत ने फिल्मों पर लिखते हुए शुध्द मनोरंजन और स्वस्थ मनोरंजन में अंतर स्पष्ट किया है। बसंत त्रिपाठी ने रमाकांत के लेखन के बहाने पूंजी, धर्म और सत्ता के गठजोड़ से सजग रहने आगाह किया।
रमाकांत के व्यक्तित्व के विविध आयामों पर चर्चा करते हुये उषा आठले ने कहा रमाकांत जी अपने संगठन और विचारों के प्रति सदैव प्रतिबध्द रहे, वे बहुत अच्छे संगठक, आयोजक एवं संचालक है। वे दो पीढ़ियों के बीच कभी भेद नही किये। उनका व्यक्तित्व बहुत ही सहज, आकर्षक और सौम्य है। वे बेहतर और पारदर्षी इंसान हैं। रमाकांत की जीवनसाथी दीपा श्रीवास्तव ने उनके व्यक्तित्व के अंतरंग पक्षों पर प्रकाष डाला। पारिवारिक जीवन, लेखकीय दायित्व और सांगठनिक जिम्मेदारियों के बीच उनका संतुलन सदैव बना रहा। उन्हें लेखन की प्रेरणा अपनी मां से मिली। उनके सहपाठी और संगठन में लंबे समय तक साथ साथ रहे वरिष्ठ साहित्यकार रवि श्रीवास्तव ने रमाकांत के साथ अपने छात्र जीवन की यादों को साझा किया। उन्होंने कहा कि जो जीवन उन्होंने रमाकांत के साथ बिताया वे क्षण अत्यंत सुखद थे। उनका ज्ञान, चेतना और जानकारी अद्भुत है। वरिष्ठ रंगकर्मी और पत्रकार राजकुमार सोनी ने कहा कि रमाकांत की बौध्दिकता और संवेदना हमें गहरे तक प्रभावित करती है। उनकी विनोदप्रियता हदय को छूती है। वे कुषल नेतृत्वकर्ता और संगठनकर्ता है। उनका पांच दषकों का गौरवषाली सार्वजनिक जीवन हमें प्रेरित करता है।
सत्रांत में जय प्रकाष और राजीव कुमार शुक्ल ने रमाकांत श्रीवास्तव से विभिन्न पक्षों पर संवाद किये, जिस पर उन्होंने बेबाकी से अपना पक्ष रखा। हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. अभिनेष सुराना ने आयोजन समापन के अंत में आभार ज्ञापन किया। आज के आयोजन में छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी के अध्यक्ष ईष्वर सिंह दोस्त सहित दुर्ग, भिलाई, छत्तीसगढ़ एवं देषभर के विभिन्न शहरों, कस्बों से आये साहित्यकार, रचनाकार एवं पाठकगण उपस्थित रहें। आयोजन को सफल बनाने में महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. आर.एन. सिंह हिन्दी विभाग से डाॅ. बलजीत कौर, डाॅ. कृष्णा चटर्जी, प्रो. थानसिंह वर्मा, प्रो. अन्नपूर्णा महतो, डाॅ. रजनीष उमरे, डाॅ. सरिता मिश्र, डाॅ. ओमकुमारी देवांगन, डाॅ. लता गोस्वामी, डाॅ. शारदा सिंह एवं अन्य विभागों के प्राध्यापकगण, अतिथि व्याख्याता, शोधार्थी, छात्रगण, रासेयो स्वयं सेवक उनके प्रभारी प्रो. जनेन्द्र कुमार दीवान एवं क्रीडा अधिकारी लक्ष्मेन्द्र कुलदीप की सराहनीय भूमिका रही।

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