राजनीतिक दलों में पार्टी का झंडा-डंडा उठाने वाले सिर्फ और सिर्फ कार्यकर्ता होते हैं. कार्यकर्ता कभी नेता नहीं होता. नेतृत्व के गुण स्वाभाविक होते हैं जिन्हें लोग लेकर पैदा होते हैं. कुछ लोगों को जबरदस्ती नेतृत्व सौंप दिया जाता है पर विपरीत परिस्थितियों में वो ‘हुआ-हुआ’ करने लगते हैं और भेड़िये की खाल अपने आप उतर जाती है. भाजपा ने चुनाव की घोषणा से भी काफी पहले अपने कुछ प्रत्याशियों की घोषणा कर दी. उम्मीद थी कि इससे उन्हें चुनावी तैयारियों के लिए अच्छा खासा वक्त मिल जाएगा. कर्नाटक में कांग्रेस ने यही फार्मूला अपनाया था. पर इसका एक पहलू और भी है. वक्त काफी होने के कारण इससे प्रत्याशियों से असंतुष्ट लोगों को भी अपनी बात रखने का मौका मिल जाता है. दुर्ग में कांग्रेस तो गरियाबंद में भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ आक्रोश सामने आ रहा है. गरियाबंद में तो स्थिति विकट हो रखी है. यहां एक पूर्व कांग्रेसी को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है. छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी का करीबी रहा यह कार्यकर्ता बाद में जोगी कांग्रेस में शामिल हो गया. पिछले चुनाव में इसने अच्छे खासे वोट भी हासिल किए. जोगी कांग्रेस का प्रभाव कम होते ही दो साल पहले उसने भाजपा प्रवेश कर लिया. अब भाजपा ने उसे ही प्रत्याशी बना दिया है. भाजपाइयों का नाराज होना तो बनता है. इसलिए जब प्रदेश अध्यक्ष राजिम पहुंचे तो वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने एक तरह से उनका बहिष्कार ही कर दिया. पर कार्यकर्ताओं को किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए. यह ग्रैंड ओल्ड पार्टी नहीं है जहां लोगों को मनाने के लिए इमेशनल ब्लैकमेलिंग का सहारा लिया जाता है. यहां तो अनुशासन का डंडा चलता है. बेटा, अभी अध्यक्षजी कह रहे हैं तो मान जाओ. नहीं मानोगे तो मोटा भाई बात करेंगे. फिर भी नहीं माने तो ईडी-आईटी का डंडा चलाकर प्रेजेन्ट और फ्यूचर दोनों बर्बाद कर देंगे. गुस्सा दिखा रहे हो ठीक है पर पार्टी की मजबूरी को भी तो समझो. पार्टी इस बार किसी भी कीमत पर अपना पिछला प्रदर्शन सुधारना चाहती है. उसे पता है कि कोई करिश्मा ही उसे छत्तीसगढ़ में दोबारा सत्तासीन कर सकती है पर वह उम्मीद तो नहीं छोड़ सकती. कम से कम टक्कर तो दे ही सकती है. 90 सीटों वाली विधानसभा में एक सम्मानजनक स्थिति तो बना ही सकती है. ऐसे में वह जीतने वाले प्रत्याशी ढूंढ रही है. भाजपाई, कांग्रेसी कुछ नहीं होता. ऐसा सोचने वाले हमेशा पिछली सीटों पर बैठे रह जाते हैं. यह राजनीति है, अवसर को पहचानकर चोट करने वाले ही विजयी होते हैं. वैसे भी योग्य लोगों को ही विधानसभा-लोकसभा में होना चाहिए. भाजपा ऐसे लोगों को चुन-चुन कर अपने साथ कर रही है, इसके लिए उसे धन्यवाद देना चाहिए. जब देश की बात आती है तो वह पार्टी लाइन से ऊपर उठ जाती है. लोगों को अपने दल में शामिल करती है और भाजपा का ठप्पा लगा देती है.