भारत में ठगी का इतिहास दो सौ साल से भी ज्यादा पुराना है. ठग पहले लोगों के साथ घुलमिल जाते और फिर मौका देखकर उनकी हत्या कर उनका सबकुछ लूट लेते. इसके बाद लाशों को जमीन में गड़ा देते और खुद गायब हो जाते. 1790 में इसकी शुरुआत बहराम खां और आमिर अली नामक दो ठगों ने की. बहराम खां का नाम 936 हत्याएं करने के लिए सीरियल किलर के रूप में गिनीज बुक में भी दर्ज हुआ. ठगों के इस गिरोह का खात्मा 1835 में विलियम स्लीमैन ने किया. 1837 में 412 ठगों को फांसी दे दी गई. 1839 में बहराम खां को भी फांसी पर लटका दिया गया. लगभग एक हजार ठगों को एक टापू पर छोड़ दिया गया. कुछ को आजीवन कारावास की सजा भी हुई. स्लीमैन ने ठगी पर एक किताब भी लिखी और इसके साथ ही “ठग” शब्द अंग्रेजी शब्दकोश में भी जुड़ गया. पर यह सब इतिहास की बातें हैं. ये ठग अपने अपराध को छिपाते थे. उस समय बिना किसी सोशल मीडिया ऐप या डिजिटल संचार साधन के ठगों ने लगभग 2000 लोगों का ग्रुप बना लिया था. इनकी अपनी कूट भाषा भी थी जो “एंड टू एंड इक्रिप्टेड” जैसी ही थी. ठगों के अलावा इस भाषा को कोई सुन भी लेता तो समझ में कुछ नहीं आता था. पर आज के ठग ऐसे नहीं हैं. वे सुन्दर चेहरा लगाकर, मोटी कमाई के सब्जबाग दिखाकर लोगों को ग्रुप में जोड़ते हैं और फिर उनका “चू..” काटकर गायब हो जाते हैं. पर इस बार ठगों ने जो किया है, वह ठगी के इतिहास में शायद पहली बार है. ठगों ने पहले ग्रुप बनाया. लोगों से छोटे-छोटे इंवेस्टमेंट करवाए, समय पर कमाई सहित पैसा लौटाया भी. विश्वास जीतने के बाद समूह के सदस्यों से मोटी रकम लगवाई और पोर्टल को बंद कर गायब हो गए. जाते-जाते इतना और कर गए कि ठगे गए लोगों को मुंह चिढ़ाते गए. ठगों ने एआई जनरेटेड तीन चेहरे, तीन अलग-अलग संदेशों के साथ समूह में शेयर कर दिया. इसमें तीन कृत्रिम खूबसूरत लड़कियां कृत्रिम आवाज में ही ठगे गए लोगों को बताती गईं कि वे उन्हें ठग चुकी हैं और अब गायब हो रही हैं. ठगी का शिकार हुए लोगों के पास अब केवल यही खूबसूरत चेहरे वालियों का वीडियो रह गया है जिसे वो दिन में कई-कई बार देख रहे हैं. उन्होंने पुलिस को इस घटना के बारे में बताया भी पर साथ ही यह दरख्वास्त भी की है कि उनका नाम सार्वजनिक न किया जाए. पैसा डूबा सो डूबा, कम से कम इज्जत बरकरार रहनी चाहिए. पैसे मिल गए तो ठीक वरना वे डूबी हुई रकम का गम खा लेंगे. ऐसे लोगों को गम ही खाना चाहिए. पुलिस और रिजर्व बैंक का महकमा लोगों को सायबर ठगी के बारे में बताते-समझाते थक चुका है. पर परवानों को शमा से बचाना कब आसान रहा है.