भारतीय जनता पार्टी के विघ्नहर्ता मोटा-भाई को बस्तर में ही घेरने की तैयारी की जा रही है. भाजपा यहां से परिवर्तन यात्रा शुरू करने जा रही है. वैसे भाजपा का इरादा चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले-पहले छत्तीसगढ़ में दो परिवर्तन यात्राओं को पूरा करना है. दंतेवाड़ा से इसकी शुरुआत होने वाली है जिसमें गृहमंत्री अमित शाह भाग लेंगे. इससे ठीक पहले बस्तर संभाग के सभी 12 विधायकों ने प्रेस कांफ्रेस कर अमित शाह से आठ सवाल किये हैं जिसमें कई आरोप भी शामिल हैं. ये सभी मामले केन्द्र सरकार की नीतियों से जुड़े हैं. इनमें से प्रमुख है नगरनार स्टील प्लांट को निजी हाथों में सौंपने का मामला. इस प्लांट से समूचे बस्तर के लोगों की आकांक्षाएं जुड़ी हुई हैं. उन्हें डर है कि निजी हाथों में जाने के बाद इस संयंत्र से परिधीय क्षेत्र की जनता को उतना लाभ नहीं मिल पाएगा जितना सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी होने से मिल सकता है. जनभावनाओं से ही जुड़ा हुआ दूसरा मामला है बैलाडीला के नंदराज पहाड़ की माइनिंग लीज का. इस पहाड़ की स्थानीय लोग पूजा करते हैं. भूपेश सरकार ने इसकी लीज को रद्द कर दिया है पर केन्द्र ने इसपर अपना रूख अब तक स्पष्ट नहीं किया है. तीसरा और सबसे बड़ा मुद्दा राजभवन में फंसे आरक्षण विधेयक का है. कांग्रेस के विधायकों ने पूछा है कि आरक्षण संशोधन विधेयक को छत्तीसगढ़ की विधानसभा ने पारित कर राजभवन भेजा है. इसपर हस्ताक्षर क्यों नहीं हो रहे. इस विधेयक में आदिवासी समाज के लिए 32 प्रतिशत, ओबीसी के लिए 27, अनुसूचित जाति के लिए 13 और अनारक्षित वर्ग के गरीबों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. न तो राजभवन विधेयक को लौटा रहा है और न ही उसपर हस्ताक्षर कर रहा है. एक और बड़ा मामला दल्लीराजहरा-जगदलपुर यात्री रेल सेवा का है. स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2021 तक यह लाइन पूरी हो जाएगी और लोगों को यात्री रेल सुविधा का लाभ मिलने लगेगा. पर काम अब तक खत्म नहीं हुआ है. इसके अलावा एनएमडीसी का मुख्यालय बस्तर लाने, जगदलपुर को भारतमाला से जोड़ने की मांग भी रखी गई है. कांग्रेस के विधायकों ने वन अधिकार अधिनियम 2006 में संशोधन के असली उद्देश्य पर भी गृहमंत्री से सवाल किये हैं. साथ ही इसके कारण प्रभावित हुए वनवासियों के अधिकारों का हवाला देते हुए केन्द्र से माफी मांगने को कहा है. धान खरीदी से जुड़े नए निर्देशों को जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वयं चुनौती दी है वहीं आदिवासी अंचलों में वन अधिकार और खनिज के दोहन में निजी क्षेत्र की घुसपैठ भी चुनावी मुद्दा बन गया है. एसईसीएल के खिलाफ भी एक बड़ा आंदोलन खड़ा हो रहा है. एक तरफ जहां भाजपा केन्द्र सरकार की उपलब्धियों को सामने रखकर ये चुनाव लड़ना चाहती है वहीं कांग्रेस ने भी अब केन्द्र को ही घेरने की रणनीति तैयार कर ली है.