अजीब विडम्बना है कि जिसे धोकर हाथ साबुन से धोया था वह पाइप-लाइन के जरिये वापस थाली तक पहुंच गया. कोटा सहित बिलासपुर की कई बस्तियों के पेयजल में मानव मल के अंश मिले हैं. जब इन इलाकों में डायरिया फैलने लगी और मरीजों के लिए बिस्तर जुटाना मुश्किल हो गया तब इन इलाकों का सर्वे किया गया. यहां से पेयजल के सैम्पल लिये गये और उन्हें सिम्स के माइक्रोबायोलॉजी लैब में टेस्ट किया गया. यह देखकर वैज्ञानिकों की आंखें फटी रह गईं कि पीने के पानी में मानव मल के अंश तैर रहे हैं. इसे ही डायरिया की मुख्य वजह माना गया. अब दोषियों की पड़ताल शुरू हो गई है. पता चला है कि पेयजल के पाइपलाइन खुले ड्रेनों से होकर गुजरते हैं. इन खुले ड्रेनों पर कई लोगों ने शौचालय बना रखे हैं. इन शौचालयों से मल-मूत्र पानी में घुल जाता है और पाइप लाइन में प्रवेश कर जाता है. ऐसा पाइप लाइन में लीकेज की वजह से होता है. पेयजल को दूषित होने से बचाने के लिए पिछले कुछ वर्षों में कई उपाय किये गये हैं. पहले आदतन लोग खेतों में या तालाबों के किनारे, जहां जलस्रोत उपलब्ध है, शौच किया करते थे. बारिश के दिनों में यह मल जल के खुले स्रोतों में मिल जाता था. खेतों के मल से भी कीटाणु किसानों के शरीर में प्रवेश कर जाते थे. इसलिए सरकार ने शौचालय बनवाने पर जोर दिया और इसके लिए महा-अभियान चलाया. पर इतने छोटे आकार के देश की इतनी बड़ी आबादी के लिए शौचालय की व्यवस्था करना कोई हंसी-ठट्ठा का विषय तो नहीं था. घनी बस्तियों में सीवेज लाइन और पाइप लाइन को एक दूसरे से अलग करना हो ता सड़कें केवल नक्शे में ही सुरक्षित रह सकती हैं. इसलिए दोनों पाइपलाइन साथ-साथ चलती हैं और नालों से होकर गुजरती है. यह समस्या अकेले कोटा या बिलासपुर की नहीं है. यही स्थिति पूरे प्रदेश, या यूं कहें कि पूरे देश की है. जिनके घर बोरिंग है, वो भी कोई ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं. लोग घर की साज सज्जा पर भले ही खुले हाथों से खर्च करते हों, पर सेप्टिक टैंक की निर्माण गुणवत्ता पर वो ज्यादा ध्यान नहीं देते. 1200-2400 वर्गफुट के प्लाट में घर फैलाने के बाद सेप्टक टैंक और बोरिंग के बीच ज्यादा फासला नहीं रह जाता. लीकेज यहां भी हो सकता है. कुछ हद तक वो ही परिवार सुरक्षित हैं जो बोरिंग के पानी का उपयोग भी फिल्टर के जरिए करते हैं. पर ऐसे घरों की भी कमी नहीं है जहां आरओ लगा भले ही हो पर उसके नियमित रखरखाव पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. बावजूद इसके सभी लोग बीमार नहीं पड़ते. डायरिया और डेंगू भी सबको नहीं होता. ऐसे में एक बार फिर साधारण स्वास्थ्य और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता की तरफ ध्यान जाता है. ये जिम जाकर मसल्स बनाने से कहीं ज्यादा जरूरी है.