दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग के द्वारा (एक्सप्लोरेशन एण्ड रिस्टोसरेशन) पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की संयोजक प्राणी शास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. उषा साहू एवं आयोजन सचिव, डाॅ. संजू सिन्हा एवं डाॅ. अलका मिश्रा थे। संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ में उपलब्ध आद्र भूमि की स्थिति तथा उनके संरक्षण के संबंध में जनजागरूकता उत्पन्न करना एवं संभावित रामसर साईट्स घोषित कराने की दिशा में कार्य करना था।
इस संगोष्ठी का उद्घाटन डाॅ. सुशील चन्द्र तिवारी, अपर संचालक, क्षेत्रीय कार्यालय, दुर्ग संभाग, दुर्ग के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ। औपचारिक उद्घाटन में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. आर.एन. सिंह ने विश्व में वेटलैण्ड्स की स्थिति, वेटलैण्ड्स का महत्व, वैटलैण्ड्स के लिए हानिकारक कारकों तथा इनकी सुरक्षा की आवश्यकताओं पर प्रकाश डाला।
की-नोट स्पीकर प्रोफेसर एम.एल. नायक ने अपने उद्बोधन में आद्र भूमि से संबंधित सभी आयामों पर विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने वेटलैण्ड्स के प्रकार, रामसर कन्वेंशन, रामसर साईट्स के क्रायटेरिया की-स्टोन प्रजाति के साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य में संभावित रामसर साईट्स इको सिस्टम सर्विसेस को बहुत ही रोचक तरीके से समझाया।
प्रथम तकनीकी सत्र में अहमदाबाद के डाॅ. केतन टाटू ने वेटलैण्ड के बारे में बहुत ही बेसिक जानकारियां प्रतिभागियों को दी। इसके पश्चात् कोयमबटूर के डाॅ. गोल्डिन क्वार्डोस ने वेटलैण्ड के संरक्षण हेतु भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के द्वारा किए जाने वाले प्रयासों के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने भारत सरकार के अमृत धरोहर एवं मिष्ठी योजना के बारे में बताया। इसके पश्चात् शोध विद्यार्थियों के द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। द्वितीय तकनीकी सत्र में नागपुर के श्री राहुल सतपुते ने धार्मिक क्रियाकलापों जैसे मूर्ति विसर्जन, फूल एवं अन्य पूजन सामग्री विसर्जन के कारण पानी के प्रदूषण को रोकने के लिए अनेक उपाय बताये, जिसमें धूप अगरबती बनाना, अर्थ आवर्स मनाना तथा जलीय सिस्टम की मिट्टी का पुनः उपयोग करना प्रमुख है। पंडित रविषंकर शुक्ल विष्वविद्यालय, रायपुर के डाॅ. अषोक प्रधान ने वेटलैण्ड कर्नर्वेषन में आदिवासियों जनजातियों के पारंपरिक ज्ञान की भूमिका पर प्रकाष डाला। साथ ही उन्होंने यह बताया कि जनजातियों के विकास एवं उत्थान में वेटलैण्ड्स का क्या महत्व होता है। इसके पश्चात् शोधार्थियों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
दूसरे दिन तृतीय तकनीकी सत्र में छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के वैज्ञानिक डाॅ. प्रशांत कविश्वर ने सैटेलाइट इमेजरी के उपयोग से राज्य के सभी वैटलैण्ड्स की मैपिंग पर जानकारी दी। उन्होंने वैटलैण्ड् कोडिंग सिस्टम, लोकेषन तथा क्षेत्र सांख्यिकी एवं मैपिंग स्केल से संबंधित विद्यार्थियों के जिज्ञासाओं का बहुत ही मनोरंजक तरीके से समाधान किया। इसके पश्चात् इंदौर, मध्यप्रदेष के डाॅ. युवराज अर्जुन षिंडे ने मौसम परिवर्तन का वैटलैण्ड्स के उपर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी दी। उन्होंने ने बदलते मौसम के कारण ग्लेषियर्स के टूटने एवं उससे उत्पन्न होने वाले आपदाओं पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी। इसके पश्चात् विभिन्न क्षेत्रों से आये हुए शोधार्थियों ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। चतुर्थ एवं अंतिम सत्र में डाॅ. गोल्डिन ने समुद्री तटीय इलाकों में पाये जाने वाले मैंगू्रव्स पर बहुत ही उत्कृष्ट व्याख्यान दिया। इसके पश्चात् प्रोफेसर एम.एल. नायक ने छत्तीसगढ़ के वैटलैण्ड्स में पाये जाने वाले जीव जंतुओं पर आकर्षक फोटोग्राफस के साथ अपना व्याख्यान दिया। इस सत्र के अंत में शोध विद्यार्थियों एवं स्नाकोत्तर विद्यार्थियों के लिए अलग-अलग पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ राज्य जैव विविधता बोर्ड के मेेंबर सेक्रेटरी डाॅ. प्रभात मिश्रा थे। उन्होंने अपने व्याख्यान में छत्तीसगढ़ के जलीय धरोहरों को सहजने एवं संरक्षित करने की अपील सभी से की। उन्होंने बताया कि मानव प्रजाति का विकास सनातन काल से किसी न किसी नदी या जलीय तंत्र के आसपास ही होता रहा है। इसीलिए हमें अगर सतत् रूप से उन्नति करना है, तो अपने इन जलीय घरोहरों को स्वच्छ एवं पवित्र रखना आवष्यक है। इस संगोष्ठी में महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेष, उड़ीसा, मध्य प्रदेष, उत्तर प्रदेष, उत्तराखंड एवं छत्तीसगढ़ के लगभग 180 प्रतिभागियों ने भाग लिया। संगोष्ठी में मौखिक शोध पत्र प्रस्तुतिकरण एवं पोस्टर प्रस्तुतिकरण के लिए उत्कृष्ट शोधपत्र एवं पोस्टर को अलग-अलग प्रथम एवं द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार प्रदान किए गए। संगोष्ठी के सफल आयोजन में प्राणी शास्त्र विभाग के डाॅ. दिव्या मिंज, डाॅ. नीरू अग्रवाल, डाॅ. मौसमी डे, कु. प्रीति चन्द्राकर, कु. ज्योति देवांगन, श्री गोपाल राम, श्रीमती चमेली साहू , श्री छोटेलाल एवं सभी स्नातकोत्तर विद्यार्थियों का सक्रिय सहयोग रहा।
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इससे पहले ही शरीर जड़ हो जाए, चेत जाएं – डॉ दीक्षित
भिलाई। सुप्रसिद्ध फिटनेस कोच एवं त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ आलोक दीक्षित ने आज कहा कि इससे पहले कि शरीर जड़ हो जाए, हमें चेत जाना चाहिए. उन्होंने चेतावनी दी कि बिगड़ी हुई जीवन शैली कहीं हमें पंगु न बना दे क्योंकि प्रकृति हमसे हर वह चीज वापस ले लेती है जिसका हम उपयोग नहीं करते. वे एमजे फार्मेसी कालेज में नवप्रवेशियों के अभिविन्यास कार्यक्रम “प्रारंभ” को मुख्य वक्ता की आसंदी से संबोधित कर रहे थे.
डॉ दीक्षित ने कहा कि विकासक्रम में मनुष्य जब पेड़ों से उतर कर दोनों पैरों पर चलने लगा तो उसकी पूंछ झड़ गई, बांहें छोटी हो गईं और पैर बड़े हो गए क्योंकि उसकी जरूरतें बदल चुकी थीं. इसी तरह यदि हम दिन भर बैठे रहे और लैपटॉप या कम्प्यूटर पर काम करते रहे तो हमारे पैर कमजोर हो जाएंगे, बांहें छोटी हो जाएंगी और गर्दन झुक जाएगी. धीरे-धीरे पूरी नस्ल ऐसी ही हो जाएगी. उन्होंने कहा कि प्रतिदिन 10 हजार कदम चलना भी एक मिथक है. हमें इससे काफी ज्यादा चलने की जरूरत है. उल्लेखीय है कि डॉ आलोक दीक्षित एक “सर्टिफाइड ची रनिंग ट्रेनर” भी हैं. वे स्वयं 80 किलोमीटर का अल्ट्रामैराथन दौड़ चुके हैं. उनकी कोशिश 100 किलोमीटर दौड़ पाने की है जिसके लिए वे सतत् प्रयत्नशील हैं.
डॉ दीक्षित ने प्रागैतिहासिक “स्फिंक्स” का उदाहरण देते हुए कहा कि यह विशालकाय पक्षी अंतकाल आने पर स्वयं को जलाकर भस्म कर देता था और फिर उस राख से एक नए स्फिंक्स का जन्म होता था. व्यक्ति को अपने जीवन में इससे सीख लेनी चाहिए और पूरी तरह बर्बाद होने पर भी फिर उठ खड़े होने की हिम्मत रखनी चाहिए.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एमजे शिक्षण समूह की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर ने कहा कि विद्यार्थी लोगों को जज करने से बचें. बिना पूरी बात जाने किसी के प्रति गलत धारणा बनाना कभी-कभी सच्चाई जानने के बाद प्रायश्चित्त करने का मौका तक नहीं देता. कथा के माध्यम से अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि डूबते जहाज में सवार एक व्यक्ति अपनी पत्नी को छोड़कर अपनी जान बचा लेता है. उसकी बेटी को हमेशा इस बात का अफसोस रहता है. पर जब उसे पता चलता है कि उसकी मां बहुत बीमार और अल्प दिनों की मेहमान थी और उसके पिता ने केवल उसकी परवरिश के लिए स्वयं को जीवित रखने का विकल्प चुना था तो वह आत्मग्लानि से भर जाती है. अच्छी परवरिश के साए में चिकित्सक बन चुकी बेटी को यह बात अपने पिता के देहांत के बाद उनकी डायरी से पता चली. तब वह सिवा अफसोस करने के लिए कुछ नहीं कर सकती थी.
महाविद्यालय के प्राचार्य राहुल सिंह ने विद्यार्थियों को प्रतिदिन कालेज आने, मन लगाकर पढ़ने तथा महाविद्यालय की गतिविधियों में भागीदारी देने की समझाइश दी. उन्होंने कहा कि महाविद्यालय का एक अच्छा ट्रैक रिकार्ड है और उन्हें उम्मीद है कि नव प्रवेशी विद्यार्थी अपनी मेहनत और लगन से इसमें चार चांद लगाएंगे.
इस अवसर पर एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे, एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग के प्राचार्य प्रो. डैनियल तमिल सेलवन, सहायक प्राध्यापक एवं व्याख्यातागण सहित नवप्रवेशी छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे. कार्यक्रम का कुशल संचालन माधवी वर्मा और आकांक्षा सिंह ने किया.