छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव पहले भूपेश बनाम मोदी का आभास करा रही थी. केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बार-बार छत्तीसगढ़ आने से ऐसे संकेत मिल रहे थे कि इस बार चुनाव की पूरी कमान भाजपा के ट्रबल शूटर अमित शाह के हाथ में है. पार्टी ने इसके बाद अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्षों को भी छत्तीसगढ़ भेज दिया. इससे भी ऐसा लगा कि पूर्व मुख्यमंत्री को हाशिए पर डालने की कोशिश की जा रही है. पर टिकट वितरण के बाद कोहरा छंट गया. यह साफ हो गया कि छत्तीसगढ़ में भाजपा डॉ रमन सिंह को इग्नोर करने का खतरा नहीं उठा सकती. डॉ रमन सिंह को उनकी सीट राजनांदगांव से पुनः प्रत्याशी बनाने के साथ ही उनके लगातार तीन कार्यकाल के 16 मंत्रियों को भी चुनाव मैदान में उतारा गया है. इनमें आठ पूर्व मंत्री ऐसे हैं, जो पिछला विधानसभा चुनाव हार गए थे. इसके साथ ही केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह, सांसद गोमती साय, सांसद व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव, सांसद विजय बघेल और पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय को भी चुनाव मैदान में उतार दिया गया है. दरअसल, 2018 का चुनाव भाजपा भले ही बुरी तरह हारी हो, पर इससे डॉ रमन सिंह का कद छोटा नहीं हो जाता है. वे छत्तीसगढ़ के प्रथम निर्वाचित मुख्यमंत्री थे. उन्होंने लगातार तीन कार्यकाल तक छत्तीसगढ़ की बागडोर संभाली. केन्द्रीय राज्यमंत्री रहते हुए उन्होंने छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष की जिम्मेदारी स्वीकार की थी. तब प्रदेश में पूर्व आईएएस अधिकारी अजीत जोगी की सरकार थी. जोगी प्रशासकीय निपुणता और सख्ती के साथ सरकार चला रहे थे. 2003 के पहले चुनाव में रमन के नेतृत्व में भाजपा ने 50 सीटें जीतकर सरकार बनाई. तब भी रमन सांसद थे. 7 दिसम्बर 2003 में शपथ लेने के बाद उन्होंने जनवरी 2004 में डोंगरगांव सीट से उपचुनाव लड़ा और विधायक बने. इसके बाद 2008, 2013 और 2018 में वे राजनांदगांव से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं. कांग्रेस के हर फार्मूले को उन्होंने ध्वस्त किया. डोंगरगांव चुनाव में जहां उनका मुकाबला महिला प्रत्याशी गीता देवी सिंह से था वहीं राजनांदगांव से उन्हें उदय मुदलियार ने चुनौती दी. मुदलियार के झीरम में शहीद होने के बाद उनकी पत्नी अलका को रमन के खिलाफ उतारा गया. सहानुभूति लहर के बावजूद रमन ने यह चुनाव लगभग 36 हजार वोटों से जीत लिया. प्रत्येक चुनाव में रमन पहले से भी ज्यादा अंतर से जीतते रहे. यहां तक कि 2018 में हुए चुनाव में उन्होंने भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुई करुणा शुक्ला को भी लगभग 17 हजार मतों के अन्तर से हरा दिया. रमन इनमें से प्रत्येक चुनाव को सीधा मुकाबला बनाए रखने में सफल हुए. आज भी प्रदेश में वो भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा हैं. रमन पहले ही बता चुके हैं कि किसानों को दो साल तक धान का बोनस नहीं देना ही पिछले चुनाव में पराजय का कारण बना था.