दुर्ग. हरिजनों के उद्धार के लिए महात्मा गांधी ने देशव्यापी अभियान की शुरुआत 22 नवम्बर 1933 में दुर्ग से की थी. दुर्ग के मोती बावली के पास उन्हें मंच दिया गया. मोती बावली के इलाके को आज मोती काम्पलेक्स, इंदिरा मार्केट के नाम से जाना जाता है. मंच पर पहली बार एक रिवाल्विंग चेयर को रखा गया. महात्मा गांधी इसी घूमती कुर्सी पर बैठ घूम-घूम कर लोगों से बातचीत करते रहे. लोगों ने उन्हें चारों तरफ से घेर रखा था.
दुर्ग पहुंचने के बाद गांधी जी सीधे हरिजन मोहल्ला पहुंचे और सभा को संबोधित किया. उन्होंने यहां हो रहे खादी के काम को भी देखा और उसकी सराहना की. 23 नवम्बर को वे बैथड स्कूल पहुंचे. अब यह स्कूल सरदार वल्लभ भाई पटेल शासकीय अंग्रेजी माध्यम स्कूल बन गया है. मोती बावली की सभा में लगभग एक लाख लोग शामिल हुए थे.
गांधीजी ने दुर्ग में घनश्याम सिंह गुप्त का आतिथ्य स्वीकार किया था. वे दुर्ग नगर पालिका के अध्यक्ष थे. उन दिनों प्रदेश का नाम सेन्ट्रल प्राविंस एंड बरार था. श्री गुप्त बाद में सीपी-बरार विधानसभा के स्पीकर भी रहे. गांधी जी से बेहद प्रभावित रामप्रसाद गुप्त ने उन्हें अपनी जेबी घड़ी भेंट की. गांधीजी ने उसे वहीं नीलाम कर दिया. इससे मिली राशि को किसी नेक काम में लगाने का आग्रह किया.
साहित्यकार विनोद साव के फेसबुक पोस्ट के मुताबिक 25 नवम्बर को प्रात: साढ़े दस बजे गांधीजी की सभा धमतरी में हुई. नगर निगम की ओर से उन्हें मानपत्र भेंट किया गया. गांधीजी ने सभा में ही मानपत्र को नीलाम कर दिया. इस मानपत्र की सबसे ऊंची बोली 15 रुपए की लगी थी. सभा के पश्चात् वे नत्थूजी जगताप के घर गए. वहां उन्होंने दूध और मेवा ग्रहण किया. जगताप के घर से गांधीजी छोटेलाल श्रीवास्तव के घर पहुंचे. उनके घर के सामने महिलाओं की सभा हुई. सभा के बाद सतनामी समाज के मुखिया चरण द्वारा लाया गया भोजन ग्रहण किया. वे हरिजन मुहल्ले की स्वच्छता से बहुत प्रभावित हुए और उनकी तारीफ भी की.