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लेख : बच्चो में भी प्राइवेसी का आग्रह

Nov 14, 2014

nuclear familyनागेश्वर प्रसाद साह/सभ्यता और संस्कृति के विकास का आरंभ परिवार संस्था के साथ जोड़ा जा सकता है। पौराणिक और आध्यात्मिक दृष्टि से इसके उद्भव की जो भी गाथायें या कारण हैं, समाज शास्त्रीय दृष्टि से मनुष्य के भीतर जन्मे सहयोग और अनुराग को परिवार का आधार कहा जाता है। सहयोग और सदभाव का जन्म ना होता तो न स्त्री-पुरुष साथ रहते, न संतानों का जिम्मेदारी से पालन होता और न ही इस तरह बनें कुटुंब के निर्वाह के लिए विशिष्ट उद्यम करते बनता।
बच्चों को जन्म और प्राणी भी देते है, एक अवस्था तक वे साथ रहते हैं और अपना आहार खुद लेने लायक स्थिति में पहुचने पर अपने आप अलग हो जाते हैं, उन्हे जन्म देने वाले को भी तब उनकी चिंता नहीं रहती। विकास की इसी यात्रा के पीछे कहीं न कहीं परिवार संस्था ही विद्यमान है। यदि वह संस्था ना होती तो सीधे प्रकृति से आहार लेने और अपने शरीर का रक्षण करने के सिवा कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं थी। मनुष्य सभ्यता का इतिहास परिवार बसाने और उसकी आवश्यकता पूरी करने, उसके सदस्यों में विकास की चिंता करने के बिंदु से आरंभ होता है। एक दूसरे के लिए त्याग, बलिदान, उदारता, सहिष्णुता, सेवा और उपकार जैसे मानवीय आध्यात्मिक मूल्यों की प्रयोगशाला भी परिवार का परिकार ही है। अब परिवार संस्था टूटने के कगार पर है।
समाजशास्त्री कहते हैं कि इस दुर्घटना के कारण परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति सेवा की भावना कम करते जा रहे हैं और समाजशास्त्री मानते हैं कि समाज, देश और विश्वमानवता जैसी धारणाएं भी परिवार का ही विकसित रुप हैं। पति-पत्नी और उनकी संतान से बनी इकाई में जब संतानो के पत्नी-बच्चे भी जुड़े तो संयुक्त परिवार का उदय हुआ। संयुक्त परिवारों के समूह ने बस्ती, ग्राम और नगर के रुप में उत्सर्ग का भाव रखने के स्थान पर स्वार्ती-संकीर्ण होने लगे हैं। अपने सुख और भोग के लिए अंत्यन्त आत्मीय स्वजन की बलि चढ़ाने में अब हिचक नहीं होती। रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों से अच्छे संबंध होने पर न केवल हमें भावनात्मक सुरक्षा मिलती है, बल्कि इसका पॉजीटिव असर हमारी कार्यक्षमता पर भी पड़ता है।
भारतीय संस्कृति के अनुसार यह रिवाज है कि किसी भी व्रत में पूजा करके बुजुर्गों का आशीर्वाद लेने के बाद ही हम कुछ खा सकते हैं, इसलिए जब कभी ऐसा अवसर आता है हम फोन पर उनसे आशीर्वाद लेने के बाद ही अपना व्रत तोड़ते हैं, वाकई वक्त की कमी तो केवल बहाना है। यह सही है कि आज हम सब बहुत व्यस्त हैं, लेकिन माडर्न टेक्नोलॉजी ने हमारे लिए सामाजिक संबंधों को निभाना बहुत आसान बना दिया है। मोबाइल, इंटरनेट और वैबकेम जैसी चीजों के इस्तेमाल से हम अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के संपर्क में बने रह सकते हैं। आजकल महानगरों में दूसरे शहरों या कस्बों से आकर बसने वालों की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है। यहां ऐसे लोगों के रिश्तेदार कम ही होते हैं। ऐसी स्थिति में अपने रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए ज्यादातर लोग इन आधुनिक तकनीकी का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। एकल परिवार में रहकर हम बारी-बारी दादा-दादी और नाना-नानी को अपने घर बुलाते हैं। साथ ही हर बार हमारी यह कोशिश होती है कि हम उसके कजिंस से भी मिले तो चाचा, मामा, बुआ, और मौसी के घर जरूर जाना चाहते हैं ताकि बच्चों को अपने घर परिवार से दूर रहने का अहसास न हो। भरे पूरे परिवार और रिश्तेदारों के बीच पले बड़े और न्यूक्लियर फैमिली के बच्चों की पर्सनालिटी का फर्क साफ नजर आता है। रिश्तों के बीच रहकर हम सभ्य और शालीन जिन्दगी जीना सीखते हैं।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार पश्चिमी देशों में टीनएजर बच्चों में हिंसक व्यवहार का सबसे बड़ा कारण उनका अकेलापन है। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक कहते हैं, बच्चे अपने अकेलेपन की वजह से डिप्रेशन और तनाव जैसे मानसिक समस्याओं के शिकार होते हैं। संयुक्त परिवारों में पलने वाले बच्चों में ऐसी समस्या बहुत कम देखने को मिलती है। अगर आप न्यूक्लियर फैमिली में हैं तो बच्चे के लिए आपका साथ बहुत जरूरी है। बच्चों के साथ ऐसे दोस्ताना संबंध विकसित करने चाहिए कि वे खुलकर आपसे दिल की बात कह सके। एकल परिवारों के बच्चे अक्सर अपने रिश्तेदारों से भी अच्छी तरह घुल मिल नहीं पाते। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि माता-पिता पहले खुद रिश्ते निभाने में दिलचस्पी दिखाएं तभी उनके बच्चे भी लोगों के साथ मिक्सअप होना सीखेंगे। बदलते वैश्विक परिदृश्य में नौकरी के लिए बाहर जाने से संयुक्त परिवार एकल परिवारों में तब्दील हो रहे हैं।
संयुक्त परिवारों की सबसे बड़ी विशेषता उससे मिलने वाला भावनात्मक और नैतिक सहारा है। एकल परिवारों की संख्या में बढ़ोतरी के कारणों पर चर्चा की जाये तो, आज लोगों की बदलती प्राथमिकताएं और जरूरतें संयुक्त परिवारों के टूटने के लिए जिम्मेदार हैं। (डीएमआईआईटी, रामनगर भिलाई)

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